एक सन्देश-

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बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

अबीर गुलाल
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तेरा अबीर ,तेरी गुलाल,
सब लाल लाल, सब लाल लाल
उस मदमाती सी होली में
जब ले गुलाल की झोली मै
       आया तुम्हारा मुंह रंगने
तुम सकुचाई सी बैठी थी
कुछ शरमाई  सी बैठी थी
      मन में भीगे भीगे सपने
मैंने बस हाथ बढाया था
तुमको छू भी ना पाया था
      लज्जा के रंग  में डूब गये,
      हो गये लाल,रस भरे गाल
तेरा अबीर ,तेरी गुलाल
सब लाल लाल,सब लाल लाल
मेंहदी का रंग हरा लेकिन,
जब छूती है तुम्हारा  तन,
       तो लाल रंग आ जाता है
इन काली काली आँखों में,
प्यारी कजरारी आँखों में,
      रंगीन जाल छा जाता  है
चूनर में लाली लहक रही,
होठों पर लाली दहक  रही
     हैं खिले कमल से कोमल ये,
      रखना  संभाल,पग  देख भाल
तेरा अबीर,  तेरी गुलाल
सब लाल लाल,सब लाल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

अबकी होली

अबकी होली में हो जाये,कुछ एसा अदभुत चमत्कार
 हो जाये भ्रष्टाचार स्वाहा, महगाई,झगड़े, लूटमार
सब लाज शर्म को छोड़ छाड़,हम करें प्रेम से छेड़ छाड़
गौरी के गोरे गालों पर ,अपने हाथों से मल गुलाल
जा लगे रंग,महके अनंग,हर अंग अंग हो सरोबार
इस मस्ती में,हर बस्ती में,बस जाये केवल प्यार प्यार
दुर्भाव हटे,कटुता सिमटे,हो भातृभाव का बस प्रचार
अबकी होली में हो जाये,कुछ एसा अदभुत चमत्कार

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

बचपन

सोचा न था इस तरह चला जायेगा वो
इन्तजार कर लें चाहें जितना ,
पर अब लौट के न आयेगा वो ,
कभी रोता कभी हँसता ,मुस्कुराता हुआ शरारतों से भरा
इस तरह बिछड़ जायेगा वो,
मांगते रह जायेंगे हम, पर अब न मिल पायेगा वो
यादों की दुनिया में जाके चुप गया है इस तरह की ,
अब ढूँढने पर भी नजर नहीं आयेगा वो ,
उस बचपन को अब यादों में ही तलाशना ,
क्योकि इस जनम में तो दोबारा नहीं मिल पायेगा वो ,
वो बचपन जो बिछड़ गया है हमसे सदा के लिए ,
यादों की दुनिया में ही मुस्कुराएगा वो,
सोचा न था इस तरह चला जायेगा वो
इन्तजार कर लें चाहें जितना ,
पर अब लौट के न आयेगा वो |


                                        अनु डालाकोटी

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

ब्रह्मा विष्णु महेश

ब्रह्मा विष्णु महेश
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भारत की सीमा पर,
तीन तरफ समंदर,
और एक तरफ पहाड़ है
और  हमारे त्रिदेव ,
ब्रह्मा,विष्णु महेश पर,
इसकी सुरक्षा का भार है
उत्तर में कैलाश पर्वत पर,
बिराजे है शिव शंकर,
चीन की सभी गतिविधियों पर,
रखे हुए है नज़र
और सुरक्षा समंदर की,
कर रहे है  विष्णु भगवान
उन्होंने तो समंदर के अन्दर ही,
बना लिया है रहने का स्थान
शेषनाग की शैया पर विराजते है
और भारत की,तीन तरफ की ,
सुरक्षा को, वो ही सँभालते है
यहाँ तक कि उनकी पत्नी लक्ष्मी जी,
भारत के आर्थिक विकास में है लगी
और तीसरे देव ब्रह्मा जी,
कमल नाल पर बैठे हुए,
अपने चारों मुखों से,
देश कि आतंरिक सुरक्षा पर,
पूरी नज़र रखें है
और सरस्वती के साथ,
देश कि बौद्धिक और सांस्कृतिक,
विरासत कि सुरक्षा में लगे  है
इन तीनो देवताओं का वरदान,
और आशीर्वाद हम पर है
इसीलिए तो आज  भारत ,
प्रगति के पथ पर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नसीब

हर कोई इस दुनिया में अपना नसीब लेकर आता है ,
किसी को मिलता है सब कुछ , 

तो कोई अपने नसीब से कुछ नहीं पाता है |
हर कोई इस दुनिया में अपना नसीब लेकर आता है |
कोई खुश है अपने नसीब पर ,
तो कोई बस अपने नसीब को कोसता रह जाता है |
हर कोई इस दुनिया में अपना नसीब लेकर आता है |
ये नसीब का ही खेल है शायद !
की कोई तो हार रहा है पल पल  ,
और कोई हर लम्हे को जीत के बैठ जाता है |
हर कोई इस दुनिया में अपना नसीब लेकर आता है |
हर किसी का नसीब लिखा है ऊपर वाले ने ,
अब देखना बस ये है ,

की कौन अपने नसीब को कितना बदल पाता है |
हर कोई इस दुनिया में अपना नसीब लेकर आता है |

                                                                        अनु डालाकोटी




शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

संतरा

            संतरा
            -------
धरा सा आकार सुन्दर,अरुण सी आभा सुशोभित
वेद का,उपनिषद का सब,ज्ञान फांकों सा सुसज्जित
और फांकों में समाये, वेद सब ,सारी ऋचायें
ज्ञान कण कण में,वचन से ,प्यास जीवन की बुझाये
फांक का हर एक दाना, मधुर जीवन रस भरा  है
संत के सब गुण  समाहित,इसलिए ये संतरा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

होली

खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया ,
जाने न दूंगी तोहे आज पिया |
झूम झूम के डारू तुझपे रंग पिया ,
भीजूंगी आज तोहरे ही संग पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
लगाऊं अबीर लगाऊं गुलाल गालो में तोहरे ,
ये मौका न जाने दू हाथ से पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
बाँधी है प्रीत की डोरी जो तुझसे ,
उस प्रीत पे आने न दूंगी आंच पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
छुडाये न छूटेगा ये
रंग पिया ,
इस प्रीत से भीज जायेगा तोहरा अंग पिया ,
खेलूंगी होली तोहरे ही साथ पिया |
खुली आँख और टूटा सपना ,
तू खड़ा है सरहद के पास पिया ,
अब कैसे खेलूंगी होली तोहरे साथ पिया ?
अब कैसे खेलूंगी होली तोहरे साथ पिया ?

                                                          अनु डालाकोटी                



शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

भविष्य का सपना

भविष्य का सपना 
मन पखेरू उड़ने लगा है 
नए नए सपने संजोने लगा है 
दिल में एक नया एहसास उमंगें ले रहा है 
नई पीढ़ी का भविष्य भी अब सुनहरा हो रहा है 
आगे पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाइये और अपने सन्देश जरुर दीजिये /आभार/

क्या मैं अकेली थी

सुनसान सी राह
और छाया अँधेरा
गिरे हुए पत्ते
उड़ती हुयी धूल
उस लम्बी राह में
मैं अकेली थी ।

चली जा रही
सब कुछ भूले
ना कोई निशां
ना कोई मंजिल
उस अँधेरी राह में
मैं अकेली थी ।

तभी एक मकां
दिखा रस्ते में
बिन सोचे मैं
वहाँ दाखिल हुयी
उजाला तो था
चिरागों का पर
उन चिरागों में
मैं अकेली थी ।

रुकी वहाँ और
सोचा मैंने है कोई
नहीं यहाँ तो चलूं
आगे के रस्ते में
फिर निकल पड़ी
पर उस रस्ते पर
मैं अकेली थी ।

छोड़ दिया उस
मकां का रस्ता
देखा बाहर जो मैंने
उजाला था राह में
लोग खड़े थे
मेरे इंतजार में

वहाँ ना अँधेरा था
ना ही विराना
बस था साथ
और विश्वास
उन सबके साथ
उस साये में
आकर फिर

मैंने सोचा
क्या सच में
मैं अकेली थी
या ये सिर्फ
एक पहेली थी ।

©.दीप्ति शर्मा

दिल के अहसास

1. हर इक रस्म निभा जाना आसान नहीं,
बस सोचना ही आसान होता है ।

2. तस्वीरें अहसास कराती हैं
अपनों के पास होने का
उसकी अहमियत कोई समझे
ये जरूरी तो नहीं ।

3. दिल जल जाते हैं
हाथों को जलाने से क्या होगा
गर चाहे वो मुझे
तो याद आयेगी उसे
मेरे याद दिलाने से क्या होगा ।

4. जब नाम दिल पर लिखा हो
कागज से मिटाकर क्या पा लोगे
हस्ती है मेरे प्यार की रौशन
ख़्वाबों में जो तुम मुझे ना पाओ
तो ख़्वाब सुनहरे कैसे सजा लोगे ।

कल्कि अवतार का मत करो इन्तजार

कल्कि अवतार का मत करो इन्तजार
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पुराण बतलाते है
जब जब धर्म की हानि होती है,
भगवान अवतार ले कर आते है
त्रेता में राम का रूप धर कर अवतार लिया
द्वापर में कृष्ण रूप में प्रकटे,
और दुष्टों का संहार किया
पर आजकल,इस कलयुग में,धर्म की हानि नहीं,
धर्म का विस्तार हो रहा है
जिधर देखो उधर धर्म ही धर्म,
का प्रचार हो रहा है
भागवत कथाएं,
गाँव गाँव शहर,कस्बो में,
टी.वी. के कई चेनलों में,
साल भर चलती है
कितनी भीड़ उमड़ती है
भागवत कथा सुन कर कितने ही श्रोताओं में,
मोक्ष की आस जगी है
तीर्थो में उमड़ती भीड़ को देखो,
सब में पुण्य कमाने की होड़ लगी है
मंदिरों में आजकल इतने लोग जाते है
कि भक्तों को दर्शन देते देते,
भगवान भी थक जाते है
तब सांवरिया सेठ का रूप धर,
भगवान ने नानीबाई का मायरा भरा था
अपने भक्त नरसी मेहता पर उपकार करा था
आज कल कई सेठ,
कितनी ही गरीब कन्याओं का,
सामूहिक विवाह करवाते है
और भरपूर पुण्य कमाते है
तब एक श्रवण कुमार ने,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाई थी,
कांवड़ में बिठा कर
आज कितने ही श्रवण  कुमार,
अपने बूढ़े माता पिता को,
तीर्थ यात्रा करवाते है,
हेलिकोफ्टर  में बिठा कर
पहले आदमी जब गया तीर्थ था जाता,
तो गया गया सो गया ही गया था कहा जाता
और आज कल गया जानेवाला,
सुबह गया जाता है,
और शाम तक वापस भी लौट आता है
धर्म का लगाव बढ़ता ही जा रहा है
लोगों में भक्ति भाव ,बढ़ता ही जा रहा है
तो जो लोग कल्कि अवतार का इन्तजार कर रहें है
बेकार कर रहे है
क्योंकि जब इतनी धार्मिक भावनायें,
भारत में जागृत है
तो भगवान को अवतार लेने की क्या जरुरत है?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

जिनके गलत सुलूक रहे हैं।
शंख वही अब फूक रहे हैं।

भरा गन्‍दगी से अन्‍तर्मन,
वो औरों पर थूक रहे हैं।

कोयल तो आश्‍चर्यचकित है,
सारे कौवे कूक रहे हैं।

राम बने फिरते हैं अब वो,
कल तक जो शम्‍बूक रहे हैं।

निकले हैं सागर मन्‍थन को,
कभी कूप मन्‍डूक रहे हैं।

काटे गये अँगूठे फिर भी,
कहॉं निशाने चूक रहे हैं। 

रचनाकार-नागेन्‍द्र अनुज,
प्रतापगढ़ ।

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

नारी

क्यों भूल जाते हैं उस सत्य को जो,
हर किसी के जीवन का अंश है,
जिसके होने से ही दुनिया है,
देश है,परिवार है और आने वाला वंश है |

उसके जीवित रहने पर दुखी होने वाले इंसान,
क्यों नहीं सोचते वो है एक नन्ही जान |
मार डालते हैं उसे अपने क्रूर हाथों से,
जीवित रहने पर जलाते हैं अपनी कडवी बातों से |

जबकि जानते हैं वही तो लक्ष्मी है,वही तो सरस्वती है,
फिर भी आज तक इस दुनिया में वही होती सती है | 
क्यों न उसे मिलता वह सम्मान है,
जिसके कारन इस दुनिया में जान है |

वह जननी है,वह माता है,वह बेटी है और वही विधाता है,
पर इस बात को कोई क्यों समझ नहीं पाता है ?
वह कल भी सहती थी ,आज भी सहती है,
पर कल न सहेगी,क्यूकि कल की नारी इस दुनिया से अकेली ही लड़ेगी |

रचनाकार-अनु डालाकोटी
उधम सिंह नगर
उत्तराखंड

रखकर सर पर पैर, सयाना सरपट भागै--

प्रवीण जी ने फेसबुक से विदा ली


क्षण भर चेहरे देख के, करें जरूरी काम |
बड़ा मुखौटा काम का, छूटे नशे तमाम |

छूटे नशे तमाम, नशे का बनता राजा |
छोड़ जरुरी काम, बुलाये आजा आजा |

कह रविकर रख होश, मुखौटा खोटे लागै |
रखकर सर पर पैर, सयाना सरपट भागै ||

सत्तरवें जन्म दिन पर

सत्तरवें जन्म दिन पर


पल पल करके ,गुजर गए दिन,दिन दिन करके ,बरसों बीते
अब सित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते
जीवन की आपाधापी में ,पंख लगा कर वक्त उड़ गया
छूटा साथ कई अपनों का ,कितनो का ही संग जुड़ गया
सबने मुझ पर ,प्यार लुटाया,मैंने प्यार सभी को बांटा
चलते फिरते ,हँसते गाते ,दूर किया मन का सन्नाटा
भोला बचपन ,मस्त जवानी ,पलक झपकते ,बस यों बीते
अब सित्तर की उमर हो गयी ,लगता है कल परसों बीते
सुख की गंगा ,दुःख की यमुना,गुप्त सरस्वती सी चिंतायें
इसी त्रिवेणी के संगम में ,हम जीवन भर ,खूब नहाये
क्या क्या खोया,क्या क्या पाया,रखा नहीं कुछ लेखा जोखा
किसने उंगली पकड़ उठाया,जीवन  पथ पर किसने रोका
जीवन में संघर्ष बहुत था ,पता नहीं हारे या जीते
अब सित्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीत

मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

मै बसंती,तुम बसंती

मै बसंती,तुम बसंती
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मौन मन ही मन मिलन की,कामनाये बलवती थी
तुम्हारा सानिध्य पाने की लगन मन में लगी थी
बात दिल की कह न पाया था तुम्हे संकोच वश मै
भावना के ज्वार के आगे हुआ था पर विवश  मै
और जब मदमस्त आया,फाग का मौसम सुहाना
देख पुष्पित वाटिका को ,भ्रमर था पागल,दीवाना
मदन उत्सव पर्व आया,रंग छलके होलिका के
देख कर यौवन प्रफुल्लित,हो गयी बेचैन आँखें
ऋतू बासंती सुहानी,और मौसम मदभरा सा
देख कर के रूप तुम्हारा हुआ मै बावरा  सा
ज़रा सी गुलाल लेकर ,गाल पर मैंने  लगा दी
हो गए शर्मो हया से,गाल तुम्हारे   गुलाबी
नज़र जब तुमने झुका ली,लगी मुझको बात बनती
हो गयी तुम भी बसंती,हो गया मै भी बसंती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

गीत

                   गीत
मक्की  की  रोटी सरसों का साग,
माँ के प्यार वाला मिठ्ठा वो राग.
आता है याद बहुत आता है याद........
बदले हैं दिन  चाहे  बदली  है  रातें,
जेहन में तरोताजा गुजरी वो बातें,
धुँआ उठ रहा चाहे बुझा  है चिराग.
आता है याद बहुत आता है याद.......
बेशक  उम्र  हो  गई  है पचपन की,
फिर  भी  न भूले  यादें बचपन की,
तालाब  किनारे  वाला  वो   बाग.
आता है याद बहुत आता है याद..........
जवानी  में  आँखें भी  चार  हुई   थी,
किसी के लिए हसरत बेकरार हुई थी,
मिटा  नही  दिल  पे  लगा  वो  दाग.
आता है याद बहुत आता है याद........"raina" 

मस्जिद में अल्ला हूँ

मस्जिद   में  अल्ला  हूँ  गूंजे,
मन्दिर  में   राम  श्याम   जपे,
एक ही मंजिल डगर अलग सही,
सब  उस  मालिक  का  नाम जपे.
                            राजिंदर शर्मा "रैना"
                             बराड़ा अम्बाला हरियाणा 

वैवाहिक जीवन की सफलता के सात सूत्र

वैवाहिक जीवन की सफलता के सात सूत्र
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                        १
सुखमय परिवार का पहला मन्त्र यही है
जो कुछ भी पत्नी कहती कहती है,वही सही है
                        २
पत्नी दुबली हो तो बोलो कनक छड़ी हो
मोटी हो तो यौवन से भरपूर  भरी हो
रूप प्रसंशा कर पत्नी की कहते रहिये,
कभी'चाँद हो,'कभी'फूल हो',कभी'परी हो'
                       ३
सजधज पत्नी पूछे मै लगती हूँ कैसी
कहो न जग में कोई कोई है तुम्हारे जैसी
फ़िल्मी हिरोईन परदे पर लगे  सुहानी
पर तुम्हारे आगे  सब भरती है पानी
                          ४
सुखी रहोगे यदि पत्नी से यह कह पाये
तुमसे अच्छा खाना कोई बना ना पाये
बाकी सब है यूं ही,तुम्हारी बात और है
तुम्हारे खाने का होता स्वाद   और है
                          ५
साला,सास,सालियाँ ये सब पूजनीय है,
इनकी तारीफ़ करिए,इनको आप साधिये
सुख से करना पार अगर जीवन बेतरनी,
पत्नी की तारीफों के पुल,आप बांधिये
                           ६
किसी और औरत की तारीफ़ कभी न करना
सोफे पर सोना पड़ सकता,तुमको   वरना
                            ७
ऑफिस में 'यस सर'यस सर',घर में 'यस मेडम'
तो खुशियों से भरा  रहेगा जीवन  हरदम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

पलाश के फूल

पलाश के फूल
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हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में
खिल कर महके,सूख,गिर गये,फिर रस्ते में
वृक्ष खाखरे के थे ,खड़े हुए  जंगल में
पात काम आते थे ,दोने और पत्तल में
जब बसंत आया,तन पर कलियाँ मुस्काई
खिले मखमली फूल, सुनहरी आभा  छाई
भले वृक्ष की फुनगी  पर थे हम इठलाये
पर हम पर ना तितली ना भँवरे मंडराये
ना गुलाब से खिले,बने शोभा उपवन की
ना माला में गुंथे,देवता  के  पूजन की
ना गौरी के बालों में,वेणी  बन निखरे
ना ही मिलन सेज को महकाने को बिखरे
पर जब आया फाग,आस थी मन में पनपी
हमें मिलेगी छुवन किसी गौरी के तन की
कोई हमको तोड़,भिगा,होली खेलेगा
रंग हमारा भिगा अंग गौरी के देगा
तकते रहे राह ,कोई आये, ले जाये
बीत गया फागुन, हम बैठे आस लगाये
पर रसायनिक रंगों की इस चमक दमक में
नेसर्गिक रंगों को भुला दिया है सबने
जीवन यूं ही व्यर्थ  गया,रोते.हँसते में
हम पलाश के फूल,सजे ना गुलदस्ते में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मैं क्यों लिखता हूँ

मैं क्यों लिखता हूँ ,
सच तो यह है ,
कि मैं खुद भी नहीं जानता ,
विचारों को शब्दों में ढाल कर ,
कुछ कहने की कोशिश करता हूँ ,
मैं कुछ नया नहीं गढ़ता ,
वही जो पहले भी सुना औए लिखा होता है ,
वही सब स्मरण कराता हूँ ,
मैं नहीं जानता मेरे लिखने से क्या होगा ,
पहले भी बहुत कुछ लिखा गया है ,
उसका क्या कोई सार्थक परिणाम हुआ ,
शायद नहीं ,
लोग पढ़ते रहे ,
कुछ तारीफ़ के पुल गढ़ते रहे ,
जीवन में कौन उतार पाया ,
अच्छी बाते पढने में अच्छी लगती है ,
अमल कब हो पता है ,
शायद इसीलिए मैं सोचता हूँ ,
मैं क्या और क्यों लिखता हूँ ,
पर लिखना मेरा कर्म है ,
फल की इच्छा ना करूँ ,
तो लिखना जारी रहेगा ,


रचनाकार:-विनोद भगत
काशीपुर, उत्तराखंड

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

हम बच्चे एक ही माँ के (अनमोल बोहरा "अमोल")

हम बच्चे एक ही माँ के नाम उसका भारत माई ………….

हम हूण- द्रविड़ -मंगोल तो सब बाद में है
याद रखो सबसे पहले तो हम एक इंसान है

कौम के झगड़ों में मिट गए बड़े- बड़े तुर्रम खाँ
अमर कहलाये सिर्फ वही जो वतन पे लुटा गए
अपनी जाँ........अपनी जाँ .................

आओ मिलकर छेडें दोस्तों सब एकता की जंग
आओ कंधे से कन्धा मिलाकर एक सुर में बोलें
हम वन्दे मातरम .......वन्दे मातरम ....

क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख औ ईसाई
हम बच्चे एक ही माँ के नाम उसका भारत माई |

आओ "अमोल" सब मिलकर पूरी करें शहीदों की अधूरी जंग
शहीदों के अधूरे सपनों में आज भर दे हमारे लहू का रंग |
रचनाकार:-
अनमोल बोहरा "अमोल"

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

खुशियों के क्षण

खुशियों के क्षण
-------------------
नौ महीने तक रखा संग में ,पिया,खाया
जिसकी लातें खा खा कर के,मन मुस्काया
माँ जीवन में,खुशियों का पल ,सबसे अच्छा
रोता पहली बार,जनम लेकर जब  बच्चा
एक बार ही आता है  ये पल जीवन में
जब बच्चा रोता और माँ खुश होती मन में

मदन मोहन बहेती'घोटू'

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

दीन-हीन परदेश, छकाते छोरी-छोरा

दीन-हीन परदेश, छकाते छोरी-छोरा

छोरा होरा भूनता, खूब बजावे गाल ।
हाथी के आगे नहीं, गले हाथ की दाल ।

गले हाथ की दाल, गले तक हाथी डूबा ।
कमल-नाल लिपटाय, बना वो आज अजूबा ।

करे साइकिल  रेस, हुलकता यू पी मोरा ।
दीन-हीन परदेश,  छकाते छोरी-छोरा ।। 

प्रेमोत्सव या प्रेम का व्यापार


आज सुबह समाचार पत्र पर अचानक से नजर पड़ी,
"वेलेनटाईन डे की तैयारी" शीर्षक कुछ अटपटा सा लगा।
हृदय मे कुछ दुविधा उठी,
मन ही मन मै सोचने लगा|

वेलेनटाईन डे के नाम पर ये क्या हो रहा है?
कई फायदा उठा रहे है कईयों का कारोबार चल रहा है।
एक खाश दिन को प्रमोत्सव पता नहीं किसने चुना,
प्रेम अब हृदय से निकल के बाजार मे आ गया है।
व्यापारीकरण के दौर मे प्यार भी व्यापार हो गया है।
ग्रिटिंग्स कार्ड, बेहतरीन गिफ्ट्स, यहाँ तक की फूलो के भी दाम है
हर चीज अब खाश है बस प्रेम ही आम है।

कुछ इसे मनाने की जिद मे अड़ते रहते है,
कुछ संस्कृति के नाम पे इसे रोकने को लड़ते रहते है।
पर सोचने वाली बात है कि सच्चा प्रेम है कहाँ पे?
पार्क में घुमना, होटल में खाना प्रेम का ही क्या रूप है?
भेड़ों की चाल में शामिल हो जाना ही जिन्दगी है तो,
ऐसी जिन्दगी में सोचने की जगह ही कहाँ है?

अगर सच्चा प्रेम है तो क्या उसका कोई खाश दिन भी होता है?
हर दिन क्या प्रेम के नाम नहीं हो सकता?
क्या मानव होकर हर दिन हम मानव से प्यार नहीं कर सकते?
हर दिन किसी  से या देश से प्यार का इजहार नहीं कर सकते?
जो भी हो पर मष्तिष्क की स्थिति यथावत ही है,
मतिभ्रम है और ना थोड़ी सी राहत ही है।
पर किसी न किसी को तो सोचना ही होगा,
आगे आके गलतियों को रोकना ही होगा|
मष्तिष्क मे आया कि जेहन मे ये ना ही आता तो अच्छा था।

लड्डू चालीसा

लड्डू  चालीसा
---------------
प्रस्तावना
चंदा गोल,गोल है सूरज,धरा गोल है प्यारे
इन सब की गोलाई लेकर,लड्डू देव पधारे
इनका ही प्रतिरूप मान कर,हम लड्डू को ध्यायें
एक बार फिर पेट -गुहा में,लड्डू ध्वज फहरायें

श्री लड्डू चालीसा
   --दोहा-
खा चूरन पत्थर हज़म,अपनों पेट सुधार
दो दिन तक उपवास रख,यदि लड्डू से प्यार
घर जा कर जजमान के,बैठो पाँव पसार
सौ लड्डू का भोग कर,लेना मती डकार
      चोपाई
      ---------
जय मोदक ,जय मोतिचूरा
प्यारा लगता लड्डू पूरा
सभी प्यार से तुमको खाते
खाकर तुम्हे तृप्त हो जाते
क्या क्या गाँउ गुण तुम्हारे
हो मिष्ठान बड़े ही प्यारे
पेढा,बर्फी,घेवर फीनी
तुम्हारे आगे है भीनी
रसगुल्ले ,चमचम भी चाखे
मज़ा न आया लेकिन खा के
सोहन हलवा हमने खाया
पर मनमोहन हमें न भाया
केला,आम,सेव,नारंगी
तुम्हारे आगे बेढंगी
काजू,किशमिश,सूखा मेवा
लगे न अच्छा लड्डू देवा
जब थाली में आप बिराजे
क्यों कर चीज दूसरी खाजे
महिमा अहे तुम्हारी ,न्यारी
जाऊं तुम पर मै बलिहारी
आगम निगम पुराण बखाना
लड्डू ,मिष्ठानो के  मामा
श्री गणपति ,गजानन देवा
करे आपका रोज कलेवा
करे आचमन श्री भगवाना
तुम हो अति प्यारे पकवाना
ले बरात शिव चले ब्याहने
हुए इकट्ठे सभी पाहुने
नये नये पकवान बनाये
आप सभी के मन को भाये
पिता आपके श्री हलवाई
चाची है श्री चीनी  माई
चंदा सूरज से  चमकीले
मीठे भी हो,बड़े रसीले
गोल गोल हो पृथ्वी जैसे
करूं बखान कीरती कैसे
मोती सी है सूरत  प्यारी
धन्य धन्य हो तुम अवतारी
है कितने  अवतार तुम्हारे
सभी रूप में लगते प्यारे
भक्त गजानन ,मोदक रूपा
भोग करे जगती के भूपा
न्यारा रूप ,धन्य पंचधारी
मोतीचूर रूप सहकारी
बूंदी ने मिल संघ बनाया
मोतीचूर सामने  आया
हर बूंदी है रस का प्याला
स्वाद आपका बड़ा निराला
बेसन,मूंग,गोंद भी प्यारा
मगद ,चासनी और कसारा
माखन मिश्री ,मोदक,मावा
देवों का हो तुम्ही चढ़ावा
धानी,रूप और अति नाना
 कब तक कीरत करूं बखाना
जब भी नाम आपका आवे
मुंह में पानी भर भर जावे
चूहा  दौड़ पेट में भागे
आप बड़े ही प्यारे लागे
जजमानो की तुम परसादी
होय तुम्हारे बिना न शादी
घी से खूब पौष्टिक  देवा
करूं आपका रोज कलेवा
ब्राह्मन गुण गाये तुम्हारा
जय जय प्रभू,भूख संहारा
पूरी,खीर कछु ना भावे
लड्डू जब थाली में आवे
भूख शांत होवे पितरों की
इच्छा पूरी हो मितरों की 
नासे भूख,चखावे मेवा
जपत निरंतर लड्डू देवा
सभी प्रेम से लड्डू खावे
भगवन उनका पेट बढ़ावे
ब्राह्मन,पंडों के रखवाले
भूख निकंदन,पेट दुलारे
पकवानों के तुम हो राजा
धन्य धन्य लड्डू महाराजा
जो  ध्यावे 'लड्डू चालीसा'
भरे पेट साखी गौरीसा
'घोटू''सदा आपका चेरा
कीजे दास पेट में   डेरा
   --दोहा--
लड्डू चालीसा पढो,जनम जनम की टेव
मेरे भूखे पेट  को, भरना  लड्डू  देव
  इति श्री  लड्डू चालीसा सम्पूर्ण

दौड़े यदि जो 'रेट 'पेट में
सबसे सुन्दर चीज भेट में
डालो कोई 'केट' पेट में
वह है लड्डू पेट 'गेट' में

 



रविवार, 12 फ़रवरी 2012

डोर मेरी है तुम्हारे हाथ में
------------------------------
मै तुम्हारे पास में हूँ,तुम हो मेरे साथ में
उड़ रहा मै,डोर मेरी पर तुम्हारे हाथ में
    तुम पवन का मस्त झोंका,जिधर हो रुख तुम्हारा
     तुम्हारे संग संग पतंग सा,रहूँ उड़ता  बिचारा
तुम लचकती टहनी हो और थिरकता पात  मै
उड़ रहा मै, डोर मेरी पर  तुम्हारे  हाथ  में 
       नाव कागज की बना मै,तुम मचलती  धार हो
       जिधर चाहो बहा लो या डुबो दो या तार दो
संग तुम्हारा न छोडूंगा किसी  हालात में
 उड़ रहा मै, डोर मेरी, पर तुम्हारे हाथ में
      बांस की पोली नली ,छेदों भरी मै बांसुरी
       होंठ से अपने लगालो,बनूँ सुर की सुरसरी  
मूक तबला,गूंजता मै,तुम्हारी हर थाप में
उड़ रहा मै,डोर मेरी ,पर तुम्हारे हाथ में
     घुंघरुओं की तरह मै तो तुम्हारे पैरों बंधा
      तुम्हारी हर एक थिरकन पर खनकता मै सदा
तुम शरद की पूर्णिमा की रात हो और प्रात मै
उड़ रहा मै,डोर मेरी, पर तुम्हारे   हाथ  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

मौत

भयावह रूप ले वो क्यूँ,
इस तरह जिद् पर अड़ी है
बड़ी क्रुर दृष्टि से देख रही मुझे
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

ये देख खुश हूँ मैं अपनो के साथ
जाने क्या सोच रही है
कुछ अजीब सी मुद्रा में
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

चली जाऊंगी मैं साथ उसके
नहीं डर है मुझे उसका
फिर क्यों वो संशय में पड़ी है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

कभी गुस्से में झल्ला रही है
कभी हौले हौले मुस्कुरा रही है
इस तरह मुझे वो फँसा रही है
देखो मौत मेरे सामने खड़ी है ।

देख मेरे अपनों की ताकत
और मेरे हौसलों की उड़ान
से वो सकपका रही है
देखो मौत मुझसे दूर जा पड़ी है ।

ले जाना चाहती थी साथ मुझे
अब वो मुझसे दूर खड़ी है
मेरे अपनों के प्यार से वो
छोड़ मुझे मुझसे दूर चली है ।
© दीप्ति शर्मा

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2012

बासन्ती मधुमास आ गया

बासन्ती मधुमास आ गया
-------------------------------
आज प्रफुल्लित धरा व्योम है
पुलकित तन का रोम रोम है
पिक का प्रियतम  पास आ गया
बासंती  मधुमास आ गया
डाल डाल पर ,फुदक फुदक कर
कोकिल गुंजा रही है मधुस्वर
पुष्पित हुआ पलाश केसरी
सरसों स्वर्णिम हुई मदभरी
सजी धरा पीली चूनर में
लगे वृक्ष स्पर्धा करने
उनने पान किये सब पीले
आये किसलय  नवल रंगीले
शिशिर ग्रीष्म की यह वयसंधी
हुई षोडशी ऋतू  बासंती
गेहूं की बाली थी खाली
हुई अब भरे दानो वाली
नाच रही है थिरक थिरक कर
बाली उमर,रूप यह लख कर
वृक्ष आम का बौराया  है
मादकता से मदमाया है
रसिक भ्रमर डोले पुष्पों पर
महकी अवनी,महका अम्बर
मदन पर्व है,ऋतू  रसवंती
आया ऋतू राज  बासंती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

"मेरा काव्य-पिटारा"

संग्रह मेरी रचनाओं का यह, खिलता एक बहारा,
आ करके सब देखो भाई, "मेरा काव्य-पिटारा" |

साझा सबसे कर सकता हूँ, है इसमें ये गुण सारा,
सब से विनय है आके देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

भद्रजनों का मिलता है आशीष इसके द्वारा,
भाई, बंधू, मित्रों देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मिलती यहाँ है सीख भी, है ज्ञान का एक सहारा,
आओ, देखो, राय भी दो सब, "मेरा काव्य-पिटारा" |

मेरे लिए ये मंदिर-मस्जिद, ये मेरा है गुरुद्वारा,
तुम भी आओ, शौक से देखो, "मेरा काव्य-पिटारा" |

जीवन संग अनवरत चलेगा, नदिया संग ज्यों धरा,
एक अभिन्न-सा भाग है यह, "मेरा काव्य-पिटारा" |

[ मेरी कविताओं के ब्लॉग का नया नाम- "मेरा काव्य-पिटारा" (पहले-"मेरी कविता") |
पता-http://pradip13m.blogspot.com/
जरुर आयें और अपनी राय दें | ]

टुकड़े

टुकड़े कितने जरुरी है ,
रोटी का हो या जमीन का ,
और कडकती ठण्ड में ,
एक अदद धूप का टुकड़ा ,
जीवन की निशानी होता है ,
पर टुकडो में बटना किसी को स्वीकार नहीं ,
फिर भी हम रोटी और जमीन के टुकड़े के लिए ,
टुकड़ों में बंट रहे है ,
एक टुकडा रोटी देने को हम तैयार नहीं ,
पर ह्रदय के टुकड़े करने में हमे महारथ हासिल है ,
टुकडा टुकडा होते हम ,
नहीं समझ पा रहे अभी भी हम ,
और कितने टुकड़ों में बटेंगे हम ,
टुकडा होने का यह खेल जारी रहेगा कब तक ,
कब सोचेंगे हम ,
नहीं जानते ,
अभी तो टुकडा टुकडा होने में व्यस्त है |

रचनाकार:- विनोद भगत

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

मैं पथिक


क्यूँ चलूँ मैं ऐसे,
राहों में औरों के,
मैं पथिक,
मुझे राह अपनी,
स्वयं बनाना है ।

सुनना है सबकी,
हर बात को लेकिन,
मैं पथिक,
मेरा पथ मुझे,
स्वयं दिखाना है ।

माना कि कई लोग,
कई मार्ग से गुजरे,
उत्तम से अतिउत्तम,
रास्ते बना गए ।

सीखना है सबसे,
बढ़ना है निज पथ पे,
मैं पथिक,
दिये राह में,
स्वयं जलाना है ।

बने बनाए राह पर,
चल पड़ूँ ऐ "दीप",
संघर्ष से भागुँ,
जरुरी तो नहीं ।

टकराना है मुश्किलों से,
चलना है नए राह पे,
मैं पथिक,
पुष्प बाट में,
स्वयं बिछाना है ।

कोई-सी भी मंजिल,
चुन लूँ यूँ ही,
चल पड़ूँ मुँद नैन,
क्या ये सही है ?

नया लक्ष्य है बनाना,
बढ़ना है निरंतर,
मैं पथिक,
तीर लक्ष्य में,
स्वयं चलाना है ।

नत होने का अर्थ है,
मृत ही कहलाना,
मैं पथिक,
धैर्य आप का,
स्वयं बढ़ाना है ।

पति पत्नी और वह

एक दिन
बैठे बिठाये हमें शौक चर्राया
संजीव कुमार की तरह
रोमांस करने का विचार आया
हमने आव देखा न ताव
सेक्रेटरी से पूछने लगे प्रेम का भाव
उसने भी सहानुभूति दर्शाई 

और कहा
आओ मेरे गले लग जाओ |

दोस्तों ने कहा
क्या किस्मत पाई है
बिलकुल संजीव कुमार का भाई है
थोड़े दिनों बाद
वही हुआ जो होता है
अपने देश का आशिक अंत में रोता है
क्योंकि
हमारा रोमांस भी पिछले रोमांस की कड़ी थी
इसलिए
पत्नी हाथ में चप्पल लिए खड़ी थी |

इधर पत्नी ने प्रेमिका को ललकारा
उधर हमने प्रेमिका को पुचकारा
और उसका हौशला बढाया
पत्नी को चित्त करने का
आजमाया हुआ नुस्खा बताया
पहले तो हमारी प्रेमिका सकपकाई
सामने खड़ी रणचंडी को देख कर घबराई
फिर अविलम्ब
शुरू हो गयी हाथापाई
थोड़ी ही देर में
प्रेमिका ने लुट्या दुबबाई
यहाँ भी पत्नी ने ही विजय पाई

किन्तु यह क्या
पत्नी के हाथ में
प्रेमिका के नकली बालों का विग
और जमीन पर नकली दांतों का सैट
मेरे पैरों के नीचे से जमीन फिसली
हाय प्रेमिका तो पत्नी से भी बूढी निकली |

रचनाकार:-चरण लाल

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

आस

खामोश हैं निगाहें,
जुबानों पे हैं ताले,
घिरे हैं नकाबपोशों से,
दिखते नहीं उजाले,
घबराये से हैं,
कोशिश है संभलने की,
छंट जाये ये बदल,
हट जाये ये जाले |

मुश्किलें भी हैं,
पांवों में हैं छाले,
पर मस्ती में ही हैं,
हम मतवाले,
दंभ नसीब का,
टूटकर बिखरेगा ही,
हिम्मत नहीं खोना,
चाहे निकल जाये दीवाले |

करना नहीं खुद को,
किस्मत के हवाले,
साहस की ही घुट्टी,
पियेंगे भर प्याले,
फलक तक होगी,
अपनी भी उड़ान,
आस का दामन,
न छोड़े हम जियाले | 

दो दो बातें

   दो दो बातें
  -------------
औरतों के दो ही हथियारों से डरता आदमी,
        एक आंसूं आँख में और एक बेलन हाथ में
औरतों की दो ही चीजों पर फिसलता आदमी,
         एक उनकी मुस्कराहट,एक रसीली बात  में
औरतों की बात दो ही मौकों पर ना टालता,
         एक उसके मायके में, एक मिलन की रात में
दो ही मौको पर खरच करने में घबराता नहीं,
          एक सासू सामने हो,एक साली    साथ में
  प्यार करने  दो ही मौकों पर हिचकता आदमी,
          एक बच्चे साथ में हो,एक हो जब तन थका
औरतों की दो ही चीजे लख मचलता  आदमी,
           एक  चेहरा खूबसूरत,एक चलने की अदा
औरतों की दो ही चीजे आदमी को है पसंद,
            एक सजना सजाना और एक अच्छा पकाना
औरतों  की दो अदाओं पर फ़िदा है आदमी,
           एक उसकी ना नुकुर और एक नज़रें झुकाना
औरतों के रूप का रस इनसे पीता आदमी,
          नशीले दो नयन चंचल और दो लब  रसीले
दो दिनों की जिंदगी को हंस के जीता आदमी,
         गौरी की दो गोरी बाहों का अगर बंधन मिले

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

   

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

अहो रूप-महा ध्वनि

अहो रूप-महा ध्वनि
-----------------------
इक दूजे की करे प्रशंसा,हम तुम ,आओ
मै तुम्हे सराहूं,  तुम मुझे  सराहो
ऊंटों की शादी में जैसे,आये गर्दभ,गायक बन कर
ऊँट सराहे गर्दभ गायन,गर्दभ कहे  ऊँट को सुन्दर
सुनकर तारीफ,दोनों पमुदित,इक दूजे का मन बहलाओ
मै तुम्हे सराहूं,तुम मुझे सराहो
काग चोंच में जैसे रोटी, नीचे खड़ी लोमड़ी, तरसे
कहे  काग से गीत सुनाओ,अपने प्यारे मीठे स्वर से
तारीफ़ के चक्कर में अपने ,मुंह की रोटी नहीं गिराओ
मै तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो
इन झूंठी तारीफों से हम,कब तक खुद को खुश कर लेंगे
ना तो तुम ही सुधर पाओगे,और हम भी कैसे सुधरेंगे
इक दूजे की  कमी बता कर ,कोशिश कर ,सुधारो,सुधराओ
मै  तुम्हे सराहूं, तुम मुझे सराहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

खूब "घुटा-लो" शीर्ष, खुदा तक चाहे जाओ ।।

खूब "घुटा-लो" शीर्ष, खुदा तक चाहे जाओ ।।

घमंडी की मंडी
जाओ जाना है जहाँ, लाओ फंदा नाप ।
मातु विराजे दाहिने, बैठा ऊपर बाप ।

बैठा ऊपर बाप, चित्त का अपने राजा ।
मर्जी मेरी टॉप, बजाऊं स्वामी बाजा ।

उच्च-उच्चतम दौड़, दौड़ कर टाँग बझाओ ।
खूब "घुटा-लो" शीर्ष, खुदा तक चाहे जाओ ।।

विरासतों

करें पुनर्निर्माण आओ ,

विरासतों के खँडहर का ,

भग्नावशेष अभी बाकी हैं ,

हमारी गौरवमयी परम्पराओं के ,

नए सिरे से सवांरें,

नव ऊर्जा का संचार भरें ,

प्राणहीन होती मानवीय संवेदनाएं ,

प्रेम के बदलते हुए अर्थ ,

अर्थ के लिए प्रेम की भावना ,

घातक स्वरुप धारण करें ,

उससे पूर्व जागृत हों ,

जागृत करें समाज को ,

स्वार्थ के घने तम को मिटायें ,

मानवीयता के प्रकाश से ,

करें आलोकित धरा को ,

राम की मर्यादा कृष्ण का ज्ञान,

मिलाकर करें पुनर्निर्माण

आओ विरासतों के खँडहर का |

रचनाकार-विनोद भगत

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

विडम्बना


एक तरफ बनाकर देवी,
पूजते हैं हम नारी को,
भक्ति भाव दर्शाते हैं,
बरबस सर नवाते हैं,
माँ शारदे के रूप में कभी
ज्ञान की देवी बताते हैं,
तो माँ दुर्गा के रूप में उसको,
शक्ति रूपा ठहराते हैं |

दूसरी तरफ वही नारी,
हमारी ही जुल्मो से त्रस्त है,
कुंठित सोच की शिकार है,
कहीं तेजाब का वार सहती है,
कही बलात्कार का दंश झेलती है,
कही दहेज के लिए जलाई जाती है,
कही शारीरिक यातनाएं भी पाती है;
तो कही जन्म पूर्व ही,
मौत के घाट उतारी जाती है |

एक तरफ तो दावा करते,
हैं सुरक्षित रखने का;
दूसरी तरफ वो नारी ही,
सबसे ज्यादा असुरक्षित है |

क्या अपने देवियों की रक्षा,
अपने बूते की बात नहीं ?
क्या समाज के दोहरी नीति की,
मानसिकता की ये बात नहीं ?

तुम जिन्दा हो

पास हो मेरे ये कितनी
बार तो बतला चुके तुम !
कौन कहता जा चुके तुम ?

आँख जब धुंधला गई तो
मैंने देखा
तुम ही उस बादल में थे ,
और फिर बादल नदी बन
बह चली थी ,
नेह की धरती भिगोती
और मेरी आत्मा हर दिन हरी होती गई !
उसके पनघट पर जलाए
दीप मैंने स्मृति के !
झिलमिलाते मुस्कुराते
तुम नदी के जल में थे !
जब भी दिल धडका मेरा तब 
तुम ही उस हलचल में थे !

तुम चले आते हो छत पर
रात का श्रृंगार करने
चाँद बनकर
और सूरज को सजाते हो
उजालों से !
जगाते हो मुझे शीतल चमकती-
रोशनी की उँगलियों से !

बृक्ष की छाया बने तुम
जब दुखों के जेठ में
मैं जल रहा था !
सोख लेते हो तपिस
तुम दोपहर के सूर्य की भी !

मैं तेरी आवाज सुनता हूँ
हवा की सरसराहट में !
और ये ऋतुएं तुम्हारे  
नाम की चिट्ठी मुझे
देती रही है !
मैंने भी जो खत लिखे
तेरे लिए
हर शाम
नदियों के हवाले कर दिया है !
मिल गए होंगे तुम्हे तो ?

अब जुदा हम हो न पाएँगे कभी भी ,
इस तरह अपना चुके तुम !
कौन कहता जा चुके तुम ?

मर चुका हूँ मैं तुम्हारे साथ साथी
और तुम जिन्दा हो अब भी
इस ह्रदय में पीर बनकर
इस नयन में नीर बनकर !

.................................. अरुन श्री !

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

चबा के अपनी जेबों में हिंदुस्तान रखते हैं

सीमाओं पर ये फौजी अपनी हथेली पे जान रखते हैं
अजीब सरफिरे हैं जो खुद को वतन पे कुर्बान करते हैं |

खुश रहे सलामत रहे उनके वतन का आम-ओ खास
गजब हैं फौजी कितना असल खुदका ये इमान रखते हैं |


उन्हें क्या पता की कैसे कैसे देश में हुक्मरान रहते हैं
जो चबा -चबा के अपनी जेबों में हिंदुस्तान रखते हैं |

मेरे देश में ये कैसी हवाएं चली है आजकल दोस्तों
वतन के गद्दार ही यहाँ फ़ौज पर शासन करते हैं |

अब सजा के क्या क्या बेचोगे "अमोल" यहाँ तुम
पंडित-मुल्ला भी यहाँ जेबों में कफ़न लिए घूमते हैं |

(यह रचना "काव्य संसार" फेसबुक समूह से ली गयी है ।)

खोखले वादे


टूटती उमीदों के रिसते,
जख्मों पर ,
खोखले वादों का मरहम लगाकर ,
मानवीय संवेदनाओं के साथ खेलना ,
कब तक चलेगा ,
निराश हताश सी मानवीयता ,
अनैतिकता की बुलंद होती ,
इमारतों पर ,
अट्टहास करते ,
नैतिकता के शत्रु ,
रौदेंगे कब तक ,
चीत्कार करती मानवता ,
किसी अवतार की ,
कब तक करेगी प्रतीक्षा ,
आहों से उपजी पीडाओं का ,
क्रंदन कब तक ,
कौन बनेगा अवलंबन ,
मानवीयता का ,
धर्म के नाम पर अधर्म
की गाथा से काले होते ,
पन्ने इतिहास के ,
कौन धोएगा ,
इन यक्ष प्रश्नों को ,
कब तक रहना होगा ,
अनुत्तरित -

(यह रचना फेसबुक समूह "काव्य संसार" से ली गयी है )



रचनाकार:-विनोद भगत
काशीपुर, उत्तराखंड

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