फूल और पत्थर
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
तुम महको गुलाब सी और मै संगेमरमर
मै छेनी की चोंटें खाकर ,बनता मूरत ,
और तीखी सी सुई छेदती बदन तुम्हारा
श्रद्धा और प्रेम से होती मुझ पर अर्पण ,
मेरे उर से आ लगती तुम,बन कर माला
दोनों को ही चोंट ,पीर सब सहनी पड़ती ,
तब ही होता ,मिलन हमारा ,प्यारा ,सुखकर
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मै धरता शिव रूप,कृष्ण या राम कभी मै ,
कभी तुम्हारा रूप धरू बन सीता,राधा
तुम आती ,मुझ पर चढ़ जाती ,और समर्पण ,
तुम्हारा प्यारा ,मेरा जीवन महकाता
कितना प्रमुदित होता मन,मेरी प्रियतम तुम,
मिलती मुझसे ,कमल,चमेली ,चम्पा बन कर
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मै चूने के पत्थर जैसा ,पिस पिस करके ,
ईंट ईंट जोड़ा करता हूँ,घर बनवाता
और कभी भट्टी में पक कर बनू सफेदी ,
घर भर को पोता करता ,सुन्दर चमकाता
और पान के पत्ते पर लग ,कत्थे के संग
तुम्हे चूमता ,लाली ला ,तुम्हारे लब पर
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
तुम महको गुलाब सी और मै संगेमरमर
मै छेनी की चोंटें खाकर ,बनता मूरत ,
और तीखी सी सुई छेदती बदन तुम्हारा
श्रद्धा और प्रेम से होती मुझ पर अर्पण ,
मेरे उर से आ लगती तुम,बन कर माला
दोनों को ही चोंट ,पीर सब सहनी पड़ती ,
तब ही होता ,मिलन हमारा ,प्यारा ,सुखकर
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मै धरता शिव रूप,कृष्ण या राम कभी मै ,
कभी तुम्हारा रूप धरू बन सीता,राधा
तुम आती ,मुझ पर चढ़ जाती ,और समर्पण ,
तुम्हारा प्यारा ,मेरा जीवन महकाता
कितना प्रमुदित होता मन,मेरी प्रियतम तुम,
मिलती मुझसे ,कमल,चमेली ,चम्पा बन कर
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मै चूने के पत्थर जैसा ,पिस पिस करके ,
ईंट ईंट जोड़ा करता हूँ,घर बनवाता
और कभी भट्टी में पक कर बनू सफेदी ,
घर भर को पोता करता ,सुन्दर चमकाता
और पान के पत्ते पर लग ,कत्थे के संग
तुम्हे चूमता ,लाली ला ,तुम्हारे लब पर
तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बहुत सुंदर और उम्दा अभिव्यक्ति...बधाई...
जवाब देंहटाएंdhanywaad
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