एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

मै तो हूँ इन्द्रधनुष

       मै तो हूँ इन्द्रधनुष

 पराये जल के कण ,
पराई सूर्यकिरण
पराया नीलगगन 
फिर भी मै जाता तन
सतरंगी आभा में ,
इन्द्रधनुष जैसा बन
दिखने में सुन्दर हूँ,
लगता हूँ मनभावन
ना काया ,कोई तन
आँखों का केवल भ्रम
होता बस कुछ पल का ,
ही मेरा वो जीवन
आपस में फिर मिलते ,
सब के सब सात रंग
मै पाता  मूल रूप ,
बन शाश्वत श्वेत रंग
जीवन के इस क्रम में ,
यूं ही बस रहता खुश
मै  तो हूँ  इन्द्रधनुष

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

3 टिप्‍पणियां:

  1. मैं इंद्र धनु जल कन पराई । नील गगन सुर किरन पराई ॥
    में जाता बहोरि तन ताता । मन कान्त कर बरनै साता ॥

    जवाब देंहटाएं
  2. मैं तो हूँ इन्द्रधनुष , सतरंगी दुनिया का एक ही राग और रंग 'प्रेम' हैं ... सुन्दर रचना , शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  3. aap sabka bahut bahut dhanywaad rachna pasand kar sundar tippani ke liye

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-