मै तो हूँ इन्द्रधनुष
पराये जल के कण ,
पराई सूर्यकिरण
पराया नीलगगन
फिर भी मै जाता तन
सतरंगी आभा में ,
इन्द्रधनुष जैसा बन
दिखने में सुन्दर हूँ,
लगता हूँ मनभावन
ना काया ,कोई तन
आँखों का केवल भ्रम
होता बस कुछ पल का ,
ही मेरा वो जीवन
आपस में फिर मिलते ,
सब के सब सात रंग
मै पाता मूल रूप ,
बन शाश्वत श्वेत रंग
जीवन के इस क्रम में ,
यूं ही बस रहता खुश
मै तो हूँ इन्द्रधनुष
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पराये जल के कण ,
पराई सूर्यकिरण
पराया नीलगगन
फिर भी मै जाता तन
सतरंगी आभा में ,
इन्द्रधनुष जैसा बन
दिखने में सुन्दर हूँ,
लगता हूँ मनभावन
ना काया ,कोई तन
आँखों का केवल भ्रम
होता बस कुछ पल का ,
ही मेरा वो जीवन
आपस में फिर मिलते ,
सब के सब सात रंग
मै पाता मूल रूप ,
बन शाश्वत श्वेत रंग
जीवन के इस क्रम में ,
यूं ही बस रहता खुश
मै तो हूँ इन्द्रधनुष
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं इंद्र धनु जल कन पराई । नील गगन सुर किरन पराई ॥
जवाब देंहटाएंमें जाता बहोरि तन ताता । मन कान्त कर बरनै साता ॥
मैं तो हूँ इन्द्रधनुष , सतरंगी दुनिया का एक ही राग और रंग 'प्रेम' हैं ... सुन्दर रचना , शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंaap sabka bahut bahut dhanywaad rachna pasand kar sundar tippani ke liye
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