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मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

ऊंचे लोग-नीची हरकत


           ऊंचे लोग-नीची हरकत

यहाँ सब है केंकड़े ही केंकड़े ,
एक दूजे के है सब पीछे पड़े
कोई भी जब निकलने ऊपर चढ़ा ,
                दूसरों ने टांग उसकी खींच ली
किसी ने की अगर थोड़ी गलतियाँ
दूसरों ने बवंडर जम  कर किया
दूसरों की गलती सब आई नज़र ,
                   अपनों की गलती पे आँखे मींच ली
मिला मौका लेने का,जम कर लिया
भरी दोनों हाथ अपनी झोलियाँ
और अवसर देने का जब आया तो,
                     उनने कस कर,अपनी मुट्ठी भींच ली
साम्यता का गीत गाते थे बड़ा
मगर जब भी पानी का टोटा पड़ा
लोग प्यासे तरस कर मरते रहे ,
                     मगर उनने अपनी बगिया सींच ली
हुआ जब उपहास तो आ क्रोध में
इस तरह से वो जले प्रतिशोध में
द्रोपदी की तरह साडी खींच कर,
                      उसकी इज्जत इनने सबके बीच ली
उनके आशीर्वाद से होकर खड़े ,
मुश्किलों से ही थे हम ऊपर चढ़े
ये तरक्की उनको यूं चुभने लगी ,
                       उनने झट नीचे से सीढ़ी खींच ली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

2 टिप्‍पणियां:

  1. जाके चित चारारि बस, वाके ऊंचे बास ।
    दरसत तिनकी कौतुकी, भँरमत नीच निबास ।८४८।

    भावार्थ : -- देश, काल, और परिस्थिति ऐसी है कि जिसका चित्त चार शत्रु ( काम,क्रोध,मद,लोभ ) के वश में है स्थान है । और उसकी बनावटी कौतुक (तमाशा) को देख नीचे बैठे लोग भ्रमित हैं॥

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  2. सच कहा आपने मौका परस्त इंसानों की कोई कमी नहीं है आज ..
    इनसे होशियार रहना जरुरी हैं ..
    बहुत बढ़िया सामयिक चिंतन

    जवाब देंहटाएं

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