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रविवार, 13 अक्तूबर 2013

हे माता ,नव रूप तुम्हारे

         हे माता ,नव रूप तुम्हारे

मैंने पाया ,यह नव जीवन ,रह नौ महीने गर्भ तुम्हारे
                                        हे माता ! नव रूप तुम्हारे
तुमने सही ,वेदना पीड़ा  ,और मुझे लायी धरती पर
'जन्मदायिनी' रूप तुम्हारा ,है माँ ,सहनशील और सुन्दर
रखा मुझे चिपटा छाती से ,दूध पिला कर ,पाला ,पोसा
'पालनकर्ता'रूप तुम्हारा,है माँ  सबसे भव्य ,अनोखा
मुझको पकड़ा अपनी उंगली ,उठना और चलना सिखलाया
'पथ प्रदर्शनी'रूप लिए माँ,जीवन पथ में ,मुझे बढ़ाया
फिर पढ़ना लिखना सिखलाया ,तुमने 'ज्ञान दायिनी'बन कर
छोटी सीखें दे सिखलाया ,तुमने भले बुरे का अंतर
 इस जीवन में जब भी मुझको,दुःख और पीड़ा ने तडफाया
तुमने'ममता मूर्ती 'बन कर ,मेरे घावों को सहलाया
परेशानियाँ जब भी आई,चिंताओं ने जब भी घेरा
सब चिंताएं हर ली तुमने,'चिता पुर्णी 'रूप है तेरा
देत्य  रूप धर,जब बाधाएं ,आयी मेरे ,प्रगति पथ पर
तूने उन सब को संहारा ,सिंह वाहिनी 'दुर्गा 'बन कर
बड़ा हुआ तो ,सही समय पर ,तूने मेरा ब्याह कर दिया
माँ तो थी ही,पर अब तूने ,'सासू माँ 'का रूप धर  लिया
साथ समय के,घर में आये ,तेरे पोता पोती  अपने
पूर्ण किये 'दादी माँ' बन कर,माता! तूने सारे सपने
अब तो बेटे से भी ज्यादा ,पोता  पोती लगे दुलारे
                                     हे माता ! नव रूप तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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