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गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

अपनी ऑरेंज काउंटी

              अपनी ऑरेंज काउंटी

जगमगाती  है ये चमचम , अपनी ओरंज काउंटी
सजी है जैसे हो दुल्हन ,  अपनी ओरंज काउंटी
फल है ये ओरंज जैसा ,पंद्रह टॉवर ,फांक है,
रसीला है इसका कण कण ,अपनी ऑरेंज काउंटी 
इसके सब वासिंदों के मन में अमन हो,चैन हो ,
भरा खुशियों से हो दामन ,अपनी ओरंज काउंटी
प्यारा  मंदिर,क्लब निराला ,बच्चे झूला   झूलते,
मोह लेती सभी का मन ,अपनी ओरंज  काउंटी
सभी बहनो ,भाइयों को ,हो मुबारक दिवाली,
लक्ष्मी ,बरसाए आ धन, अपनी ऑरेंज काउंटी
रौनके कायम रहे और फले ,फूले ,रातदिन ,
रहे ये हरदम सुहागन ,अपनी ओरंज काउंटी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
७०१,टावर-1
 

बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

उम्र है मेरी बहत्तर

   उम्र है मेरी बहत्तर

उम्र है मेरी बहत्तर
है बड़े हालत बेहतर
उंगलिया पाँचों है घी में,
और कढ़ाई में मेरा सर
        न तो चिंता काम की है
        ना कमाई ,दाम की है
        मौज है ,बेफ़िक्रियां  है,
           उम्र ये आराम की है 
कोई भी बोझ न सर पर
उम्र है मेरी बहत्तर
         बच्चे अपने घर बसे है 
         अब हैम दो प्राणी बचे है
        मैं हूँ और बुढ़िया है मेरी ,
         मस्तियाँ है और मज़े है
देखते है टी वी दिन भर
उम्र मेरी है बहत्तर
            अच्छी खासी पेंशन है
             नहीं कोई  टेंशन है
             हममें  बस दीवानापन है,     
             करते जो भी कहता मन है
खाते बाहर ,देखें पिक्चर
उम्र मेरी है बहत्तर
              जब तलक चलता है इंजिन
               सीटियां बजती है हर दिन 
               खूब जी भर ,करे मस्ती ,
               गाडी ये रुक जाये किस दिन
क्या पता ,कब और कहाँ पर
उम्र मेरी है बहत्तर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपना हर दिन

        अपना हर दिन

सुन्दर ,प्यारा और सुहाना ,तुम्हारा चेहरा मुस्काता
मुख से जब हटता घूंघट पट ,मुझको चाँद नज़र है आता
                                       अपना तो हर दिन पूनम है
मैं गहरी यमुना सा बहता ,तुम गंगा की उज्जवल धारा
रहता गुप्त,प्रकट ना होता ,सरस्वती सा प्यार  हमारा
                                       अपना तो हर दिन संगम है
मैं घनघोर घटा सा छाता ,कभी गरजता हूँ बादल बन
तुमशीतलजल की बूंदों सी,बरसा करती रिमझिम रिमझिम
                                        अपना तो हर दिन सावन है
मैं कान्हा सा ,यमुना तट पर ,करता मधुर बांसुरी वादन
आती खिंची चली दीवानी ,रास रचाने तुम ,राधा  बन
                                         अपना हर दिन वृन्दावन है
मैं सूखी चन्दन की लकड़ी ,तुम पानी की बूंदे पावन
हम तुम आपस में विलीन हो ,प्रभु चरणो चढ़ते चन्दन बन
                                          अपना हर दिन आराधन है
बाँधा हमें सात फेरों ने ,सात जनम का अपना बंधन
मिलन सरिता का सागर से,नीर क्षीर से एक हुए हम
                                            अपना हर दिन मधुर मिलन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

अंगूर


         अंगूर

पत्नी थी चन्दरमुखी
पतिदेव थे बन्दरमुखी
बहुत उछल कूद करते
रोज गुलाटी भरते
पत्नी से रोज नयी ,
डिश की  फरमाइश करते
पत्नी थी बहुत दुखी  
पति बोले चंद्रमुखी
क्या नयी डिश बनायी
पत्नी अंगूर लायी
बोली ये डिश चखो
मुंह में अंगूर रखो
खाकर के बतलाओ ,
कैसी है मेरे हजूर
पति बोले डिश का नाम ,
पत्नी बोली 'लंगूर के मुंह में अंगूर'
घोटू  

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना

          मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना

 भले ही ज्यादा उमर है 
झुर्रियों के पड़े  सल है
मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना
तवा है ठंडा समझ कर ,हाथ मत इसको लगाना,
उंगलियां ,नाजुक तुम्हारी ,जल न जाए ,लग तवे पर
बची गर्मी आंच में है ,और तवा है गर्म इतना ,
रोटियां और परांठे भी ,सेक सकते आप जी भर ,
खाओगे ,तृप्ती मिलेगी
भूख तुम्हारी  मिटेगी
कभी अपने प्यार से तुम ,मुझे यूं वंचित न करना
मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना
दारू ,जितनी हो पुरानी ,और जितनी 'मेच्युवर' हो,
उतना ज्यादा नशा देती ,हलक से है जब उतरती
पुराने जितने हो चावल,उतने खिलते ,स्वाद होते
जितनी हो 'एंटीक'चीजें,उतनी ज्यादा मंहगी मिलती
पकी केरी आम होती
बड़ी मीठी स्वाद होती
उमर का देकर हवाला ,मिलन से वर्जित न करना
मुझे बूढ़ा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

फूल और पत्थर

         फूल और पत्थर

      तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
      तुम महको गुलाब सी और मै संगेमरमर
मै छेनी की चोंटें खाकर ,बनता मूरत ,
                      और तीखी सी सुई छेदती बदन तुम्हारा
श्रद्धा और प्रेम से होती मुझ पर अर्पण ,
                       मेरे उर से आ लगती तुम,बन कर  माला
         दोनों को ही चोंट ,पीर सब सहनी पड़ती ,
         तब ही होता ,मिलन हमारा ,प्यारा ,सुखकर
        तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ  पत्थर
मै धरता शिव रूप,कृष्ण या राम कभी मै ,
                          कभी तुम्हारा रूप धरू बन सीता,राधा
तुम आती ,मुझ पर चढ़ जाती ,और समर्पण ,
                            तुम्हारा प्यारा ,मेरा जीवन महकाता
             कितना प्रमुदित होता मन,मेरी प्रियतम तुम,
              मिलती मुझसे ,कमल,चमेली ,चम्पा बन कर
              तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मै चूने के पत्थर जैसा ,पिस पिस करके ,
                              ईंट ईंट जोड़ा करता हूँ,घर बनवाता
और कभी भट्टी में पक कर बनू सफेदी ,
                              घर भर को पोता करता ,सुन्दर चमकाता
                और पान के पत्ते पर लग ,कत्थे के संग
                 तुम्हे चूमता ,लाली ला ,तुम्हारे लब  पर
                तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बात -कल रात की

       बात -कल रात की

रात सुहानी सी प्यारी थी ,मन में भरी मिलन अभिलाषा
तुम मुझसे नाराज़ हो गए ,मैंने किया मज़ाक जरा सा
तुमने भी एक चादर ओढ़ी ,मैंने भी एक चादर ओढ़ी
तुम उस करवट,मै इस करवट ,ना तुम बोले ,ना मै बोली
पौरुष अहम् तुम्हारा जागा ,फेरा मुंह,सोये दूरी पर
इस आशा में,मै मनाउंगी ,पड़े रहे यूं ही मुंह ढक  कर
मुझे बड़ा गुस्सा था आया ,मै  भी खिसक ,दूर जा लेटी
तुममे भी थोडा गरूर था ,मुझ में भी थी थोड़ी हेठी
कोई किसी को तो मनायेगा ,जायेंगे हम डूब प्यार में
नींद आगई हम दोनों को,बस ऐसे ही ,इंतज़ार में
उचटी मेरी नींद जरा जब ,तुम सोते थे,खर्राटे भर
अपने सीने पर रख्खा था ,तुमने मेरा हाथ पकड़ कर
मै पागल सी हुई दीवानी ,लिपटी तुमसे और सो गयी
बंधा रहा बाहों का बंधन ,आँख खुली ,जब सुबह हो गयी
छुपा प्यार एक दूजे के प्रति,हो जाता है प्रकट हमेशा
हम अपने अवचेतन मन में ,आ जाते है निकट हमेशा
मेरा जीवन सदा अधूरा ,अगर तुम्हारा संग  नहीं है
कभी रूठना ,कभी मनाना ,जीवन का आनंद यही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

चवन्नी

             चवन्नी

चलन जिसका हो गया है बंद बिलकुल आजकल,
हमारी तो हैसियत है  ,उस चवन्नी  की  तरह
वो तो उड़तीं है हवा में ,लहलहाती पतंग सी ,
पकड़ कर हमने रखा है ,उनको कन्नी की तरह
वो हैं सुन्दर ,गिफ्ट प्यारी और बेहद कीमती ,
ढक  रखा है हमने कि लग जाए ना उनको नज़र ,
दिखते तो चमचमाते पर ,दिये  जाते फाड़ है ,
आवरण हम ,गिफ्ट की पेकिंग की पन्नी की तरह
घोटू  

पुताई

       पुताई

चमक आ जाती है थोड़ी ,कुछ दिनों के वास्ते ,
पुताई से पुराना घर ,नया हो सकता  नहीं
खून में मुश्किल है होता,फिर से आ जाना उबाल ,
बाल रंगवाने से बुड्ढा ,जवां हो सकता नहीं 
कितनी 'ओवरऑयलिंग ',सर्विस करा लो दोस्तों,
कार का मॉडल पुराना,पुराना ही रहेगा ,
क्रीम कितने ही लगालो,मिटेगी ना झुर्रियां,
लाख कोशिश करे इंसां ,खुदा हो सकता नहीं
घोटू

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

रह गया मैं एक निरा भावुक इंसान......



होता अगर मैं
एक धुरंधर नेता
तो सोचता कि
वाह क्या दृश्य है
गरीबी यहां भुखमरी यहां
इसलिये अपनी
सियासत यहां...

होता अगर मैं
मीडिया का खिलाड़ी
सनसनीखेज खबर बनाता
दिनरात दिखाता
विज्ञापनों की बरसात करवाता....

होता अगर मैं
एक गिद्धदृष्टि फोटोग्राफर
अलग-अलग कोणों से
ऐसी तस्वीरें लेता
कि दुनिया के तमाम पुरस्कार
अपनी झोली में बटोर लेता....

होता अगर मैं
एक निर्माता निर्देशक
इस विषय पर एक
अच्छी सी फिल्म बनाता
ऑस्कर अपने घर ले आता...

होता अगर मैं
एक होशियार समाज सेवक
इन गरीबों के नाम पर
करोड़ों का अनुदान लाता
थोड़ा बहुत इनको खिलाता
बाकी सब माल अंदर हो जाता...

होता अगर मैं
एक परम बुद्धिजीवी
इस विषय पर खूब
गहन अध्ययन करता
विवादास्पद आंकड़े जड़ता
एक दमदार किताब लिखता
फिर तो नोबल पुरस्कार से
आखिर कम क्या मिलता...

होता अगर मैं
एक पाखंडी पंडित - मुल्ला
ये दृश्य देख कर सोचता
'छि - छि -छि -छि
जाने कहां से इतनी
गंदगी फैला रखी है,
इन जाहिल गँवारों ने ही
ये दुनिया नर्क बना रखी है....

लेकिन रह गया मैं एक
निरा भावुक इंसान
कुछ भी नहीं कर पाया
ये दृश्य देखकर ह्रुदय भर आया
और एक सवाल ये आया कि
'हाय रे ईश्वर तूने ये जहां
इतना विचित्र क्यों बनाया....?!'

- विशाल चर्चित

करवट करवट मन होता

     करवट करवट मन होता
          (पहली करवट )
नींद उड़ जाती,जब आँखों से ,करवट करवट मन होता
नाच रहा मेरी आँखों के ,आगे  तब  बचपन होता
वो निश्छल ,निश्चिन्त,निराला ,खेलकूद वाला जीवन
उछल कूद और धींगामस्ती ,शैतानी करना हरदम
तितली पकड़ ,छोड़ फिर देना ,गिनना तारे, सांझ पड़े 
अपनापन और स्नेह लुटाते ,घर के बूढ़े और बड़े
दादी की  गोदी में किस्से सुनने का था मन होता
नाच रहा मेरी आँखों के आगे फिर बचपन होता
           (दूसरी करवट)
नींद उड़ जाती जब  आंखों से ,करवट करवट मन होता
नाच रहा  मेरी आँखों के ,आगे फिर यौवन होता
याद जवानी की  आती जब ,पहला पहला प्यार हुआ
चोरी चोरी प्रेम पत्र  लिख , उल्फत का इजहार हुआ
बस दिन रात उन्ही की यादों में  ,खोया रहता था मन
उन्ही के सपने आते थे ,  छाया  था दीवानापन
सांस सांस और हर धड़कन में,एक पागलपन था होता
नाच रहा मेरी आँखों के ,आगे फिर यौवन होता

                      (तीसरी करवट)
नींद उड़ जाती ,जब आँखों से ,करवट करवट मन होता
घूम रहा मेरी आँखों में ,वह गृहस्थ  जीवन होता
सजनी के संग मधुर मिलन की  ,शादी वाली वो बातें
पागल और बावरे से दिन,और मस्तानी सी रातें
धीरे धीरे बढ़ी गृहस्थी ,  बच्चों संग परिवार बढ़ा
कुछ जिम्मेदारी ,चिंतायें ,सर पर आयी,बोझ बड़ा
खर्चे और कमाई का ही ,झंझट था हर क्षण होता
घूम रहा मेरी आँखों में ,वह गृहस्थ जीवन होता
                      (चौथी करवट)
नींद उड़ जाती जब आँखों से ,करवट करवट मन होता
बढ़ती उमर ,बुढ़ापा आता,और शिथिल ये तन होता
बहुत सताती है  चिंतायें ,दुःख बढ़ जाता है मन का
सबसे कठिन दौर होता है ,यह मानव के जीवन का
हो जाता कमजोर बदन है बिमारी करती  घेरा
बहुत उपेक्षित होता जीवन,अपने करते मुंह फेरा
दुःख होता ,पीड़ा होती है और मन में क्रन्दन होता
बढ़ती उमर ,बुढ़ापा आता ,और शिथिल  ये तन होता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ का मंतर

          माँ का मंतर

मम्मा, अब सर पर चुनाव है ,उठा रहा है सर मोदी
कैसे उसका करूं  सामना ,कोई टिप्स मुझे दोगी
अबकी बार ,कठिन रस्ता है,बी जे पी है बहुत मुखर
छोटे  कई रीजनल दल भी,उठा रहे है ,अपना सर
यूं भी जनता त्रस्त बहुत है बढ़ती जाती मंहगाई
रोज रोज के घोटालों ने ,अपनी छवि है बिगड़ाई
माता ,ऐसा मंतर दे दो,जनता का दिल जीत सकूं
उसके रिसते घावों को मै ,जल्दी से कर ठीक सकूं
माँ बोली ,बेटा ,भारत की जनता काफी 'कूल'है
भोली भाली,सीधी सादी ,और 'इमोशनल फूल'है
इन्हे सुनाओ गाथा, दादी ,पापा के बलिदान की 
बहुत फायदा तुमको देगी ,ये सब बातें काम की
इनको करो 'एक्सप्लोइट 'तुम,दर्द भरी निज बातों से
पाओ  'सिम्पथी वोट 'फायदा ले उनके जज्बातों से
आश्वासन तुम थोक भाव से,अपने भाषण में बांटो
रोटी खाओ दलित के घर और रात झोपड़ी में काटो
ये सब बातें ,तुम्हारी छवि ,जनता में चमकाएगी
मुश्किल में ,मै तो हूँ ही,बहना भी हाथ बंटाएगी
इतनी बड़ी फ़ौज चमचों की ,खड़ी तुम्हारे साथ है 
तुम्हारी हाँ में हाँ कह कर ,सदा उठाती  हाथ है
क्षेत्रिय दल से मत डर बेटे ,सबकी फ़ाइल है तैयार
लटका रखी ,सभी पर मैंने ,सी बी आई की तलवार
इस चुनाव में हम जीते तो तेरे सर होगा सेहरा
तू प्रधान मंत्री भारत का ,बने ,यही सपना मेरा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

बुढ़ापा क्या चीज है

          बुढ़ापा क्या चीज है

आओ हम तुमको बताएं,बुढापा क्या चीज है
उम्र का अंतिम चरण  ये, मौत की दहलीज है
खट्टा मीठा बचपना या  चाट जैसे चरपरी
और जवानी ,चाशनी एक तार की है, रसभरी
जलेबी ,गुलाब जामुन,सकते है ,पी रस सभी
गाढ़ी होती ,चाशनी जब ,बुढ़ापा आता  ,तभी  
चीज इसमें ,जो भी डालो,नहीं सकती भीज है
आओ हम तुमको बताएं,बुढापा क्या चीज है
जवानी में जिंदगानी ,होती है  कुछ इस तरह
चटपटी सी,कुरमुरी सी ,भेलपूरी जिस  तरह
स्वाद इसका ,ताजगी में,बाद में जाती है गल
लिसपिसा होता बुढापा ,उम्र जब जाती है ढल
इसलिए मन कुलबुलाता और  आती खीज है
आओ हम तुमको बताएं ,बुढापा क्या चीज है
बुढापे में ,रसोई का ,गणित जाता ,गड़बड़ा
आटा  गीला ,उम्र का जब,हो अधिक पानी पड़ा 
फूलती कम पूरियां है ,आटा गीला ,हो जो सब
दाना दाना ,खिलते चांवल ,जवानी में पकते जब
लई बनते ,बुढ़ापे में ,अधिक जाते सीज  है
आओ हम तुमको बताएं ,बुढापा क्या चीज है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ज़मीन नफ़रत की ,

ज़मीन नफ़रत की ,
और खाद मिलायी दंगों की ,
वोट की फसल पाने के लिए ,
हकीकत यही है
सियासत में घुस आये नंगों की ,
सत्ता मिलते ही एकदम ,
कैसे सूरत औ सीरत
बदल जाती है वोट के भिखमंगो की ,
चेहरों पर इनके ना जाना ,
दीखतेहै ये जरुर इंसानों से 
करम और हरकतें हैं भुजंगों की 
घूम रहे कई लायक सड़कों पर ,
क्या करें विवश है करने को चाकरी ,
राजनीति में मौज मनाते लफंगों की ,
                              विनोद भगत

बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

झांसा राम

            झांसा राम

राम राम ,झांसा राम
काल जादू,काले काम
बोलते सफ़ेद झूंठ
बच्चियों का शील लूट
समर्पण का  ले के नाम
करते गंदे गंदे काम
आदतों के तुम गुलाम
राम राम,झांसा राम
इतने सारे आश्रम थे
तुम बड़े ही बेशरम थे
संत कहते तुम्हे लोग
तुममे काम और लोभ
और वो भी बेलगाम
राम राम,झांसा राम
प्रवचनों में धर के ध्यान
बांटते थे ब्रह्मज्ञान
अँधेरे में टोर्च मार
भक्तिनो का कर शिकार
बगल छूरी ,मुंह में राम
राम राम,झांसा राम

घोटू

परिवर्तनशील जीवन

    परिवर्तनशील जीवन

एक जैसा ,रोज भोजन,नहीं है सबको सुहाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा आनंद आता 
व्रत किया करते कभी हम,फलाहारी मिले भोजन
होटलों में कभी जाते ,स्वाद में हो परिवर्तन
अधिक खाये  नहीं जाते ,अगर मीठे ,सभी व्यंजन
साथ हो नमकीन ,होता है तभी ,संतुष्ट ये मन
एक जगह,एक जैसा ,नहीं जीवन क्रम सुहाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा   आनन्द  आता
घर से अच्छा कुछ नहीं है ,बात सब ये मानते है
देश की और विदेशों की ,ख़ाक फिर भी छानते है
औरतें  जाती है मइके ,और हम ससुराल जाते
 खोजते है परिवर्तन ,सालियों से दिल लगाते हो,
चीज हरदम ,एक ही बस,रोज मिलती ,मन अघाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा आनंद आता
ज़रा सोचो,अगर दिन ही दिन हो और फिर रात ना हो
सिर्फ गरमी रहे पड़ती , और फिर बरसात ना हो
सर्दियों की नहीं  सिहरन ,और सावन की न रिमझिम
ना बसन्ती बहारें हो,एक जैसा रहे मौसम
बदती ऋतुएं रहे सब ,तभी है मौसम सुहाता
बीच में हो परिवर्तन ,तो बड़ा आनंद आता

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

छोड़ राधा गाँव वाली -आठ पटरानी बनाली

   छोड़ राधा गाँव वाली -आठ पटरानी बनाली

प्रीत बचपन की भुलाके ,छोड़ राधा गाँव वाली
कृष्ण तुमने शहर जाकर ,आठ पटरानी बनाली
गाँव में थे गोप,गायें,गोपियाँ थी,सखा भी थे
माँ यशोदा ,नन्द बाबा ,प्यार सब करते तुम्ही से
दूध का भण्डार था और,दही था,माखन  बहुत था
भोले गोकुल वासियों में,प्यार, अपनापन बहुत था
कभी तुम गैया चराते ,कभी तुम माखन चुराते
मुग्ध होती गोपियाँ सब,बांसुरी जब थे बजाते
और तुम नटखट बहुत थे ,कई हांडी फोड़ डाली
प्रीत बचपन की भुलाके ,छोड़  राधा गाँव वाली 
शहर की रंगीनियों ने ,इस कदर तुमको लुभाया
भूल कर भी गाँव अपना ,पुराना वो याद आया
इस तरह से रम गए तुम,वहां के वातावरण में
नन्द बाबा ,यशोदा का ,ख्याल भी आया न मन में
छोड़ मथुरा ,द्वारका जा ,राज्य था अपना बसाया
सुदामा को याद रख्खा ,किन्तु राधा को भुलाया
मिली जब भी, जहां मौका ,नयी शादी रचा डाली
प्रीत बचपन की भुला के ,छोड़ राधा गाँव वाली
कृष्ण तुमने शहर जाकर ,आठ पटरानी ,बनाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू;

दीवाली और बूढी अम्मा

         घोटू के छक्के
   दीवाली और बूढी  अम्मा

बूढी अम्मा दिवाली पर थी बहुत उदास
फीका सा त्योंहार है,बेटा ना है पास
बेटा ना है पास लगे सब सूना ,सूना
जब से शहर गया है,आता गाँव कभी ना
बूढ़े पति ने समझाया क्यों होती व्याकुल
कृष्ण गये थे मथुरा,क्या लौटे थे गोकुल

घोटू 

आज करवा चौथ सजनी ...

          आज करवा चौथ सजनी ...

आज करवा चौथ सजनी ,और तुमने व्रत रखा है
तुम भी भूखी,मै भी भूखा,प्रीत की ये रीत  क्या है
 सोलहों शृंगार करके ,सजाया है रूप अपना
 भूख से व्याकुल तुम्हारा ,कमल मुख कुम्हला गया है      
रसीले से होठ तुम्हारे बड़े सूखे पड़े है ,
सुबह से निर्जल रही हो ,नहीं पानी तक पिया   है
रूपसी ,व्रत पूर्ण अपना ,करोगी कर चन्द्र दर्शन ,
आज मै हूँ बाद में और मुझ से  पहले चंद्रमा है
चन्द्र दर्शन की प्रतीक्षा में बड़ी बेकल खड़ी हो,
देखलो निज चन्द्र आनन,सामने ही आइना है
मिले मुझको दीर्ध जीवन ,कामना मन में संजोये ,
क्षुधा से पीड़ित तुम्हारा ,तन शिथिल सा हो गया है
तुम भी भूखी,मै भी भूखा , प्रीत की ये रीत क्या है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कन्या के फेर में

     घोटू के छंद
   कन्या के फेर में

संतों का भेष धरे,छिप छिप व्यभिचार करे ,
                               अपनी तिजोरी भरे ,प्रवचन के खेल में
कान्हा का रूप सजा ,गोपिन संग रास रचा ,
                                बहुत उठाया मज़ा ,भक्तिन संग मेल में
खा कर के स्वर्ण भसम ,खूब खुल के खेले हम,
                                 मगर फंसे कुछ ऐसे ,कन्या के फेर में
आशा निराशा भयी ,ऐसी हताशा भयी ,
                                  बेटा है भाग रहा  ,और हम हैं जेल  में

घोटू

सोमवार, 21 अक्टूबर 2013

करवा चौथ पर -पत्नी जी के प्रति

        करवा चौथ पर -पत्नी जी के प्रति

मद भरा मृदु गीत हो तुम,सुहाना संगीत हो तुम
प्रियतमे तुम प्रीत मेरी और जीवन गीत हो तुम
बंधा जब बंधन सुहाना ,लिए मुझ संग सात फेरे
वचन था सुख ,दुःख सभी में  ,रहोगी तुम साथ मेरे
पर समझ में नहीं आता ,जमाने की रीत क्या है
मै सलामत रहूँ ,तुमने ,आज दिन भर व्रत रखा है
खूब मै ,खाऊँ पियूं और दिवस भर निर्जल रहो तुम
कुछ न  खाओ ,इसलिए कि  ,उम्र मेरी रहे अक्षुण
तुम्हारे इस कठिन व्रत से ,कौन सुख मुझको मिलेगा
कमल मुख कुम्हला गया तो ,मुझे क्या अच्छा लगेगा
पारिवारिक रीत ,रस्मे , मगर पड़ती  है  निभानी
रचा मेहंदी ,सज संवर के ,रूप की तुम बनी रानी
बड़ा मनभावन ,सुहाना ,रूप धर ,मुझको रिझाती
शिथिल तन,दीवार व्रत की ,मगर है मुझको सताती
प्रेम की लौ लगी मन में ,समर्पण , चाहत बहुत है
एक व्रत जो ले रखा है ,बस वही पतिव्रत  बहुत है
चन्द्र का कब उदय होगा ,चन्द्रमुखी तुम खड़ी उत्सुक
व्रत नहीं क्यों पूर्ण करती ,आईने में देख निज  मुख

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 20 अक्टूबर 2013

उड़ते हुए पल-छिन


किताब के पन्नों
के मानिंद उड़ते हुए
जिन्दगी के पल छिन
दे जाते हैं हमारे लिये
कुछ यादो की खुशबुएं
कुछ खुशियों की रोशनी
और कुछ खास
सपनों की झिलमिलाहट
जिन्हें महसूस करके
तमाम मुश्किलों भरे
अंधेरों में भी अक्सर
दिल मुस्कुराता है
इठलाता है
झूम जाता है
कुछ कदम और
आगे बढ़ जाता है....
है न ?!!

- विशाल चर्चित

ब्रह्मज्ञानी

               ब्रह्मज्ञानी

मै ब्रह्मज्ञानी हूँ
मै जानता हूँ कि विधाता ने ,
ये सारा ब्रह्माण्ड बनाया है
नर और मादा के मिलन से ही,
इस संसार में जीवन आया है
प्रभु की बनायी हुई इस धरती पर ,
करके थोडा बहुत अतिक्रमण
अगर मैंने बना लिए ,अपने आश्रम
तो ये सब ब्रह्मज्ञान फैलाने के लिए है
भक्तों को ,मिलन की महत्ता बतलाने के लिए है
यहाँ ,मेरी भक्तिने और भक्तगण
अपना सबकुछ कर देते है मुझे समर्पण
मै ,इस युग में,कृष्ण बन कर
 द्वापर  युग से प्रेम की प्यासी ,
गोपियों की प्यास बुझाता हूँ
उनके संग ,जल क्रीडा कर,चीरहरण करता हूँ,
और फिर रास रचाता हूँ
सच तो ये है ,कि सम्भोग ही सच्ची समाधि है
तो अपनी भक्तिनो संग ,एकान्त कुटी में,
ब्रह्मज्ञान में लीन होने पर ,
दुनिया  क्यों कहती मुझको अपराधी है
भागवत में लिखी है ये बात साफ़
स्वर्ण में रहता है कलयुग का वास
इसलिए मै स्वर्ण को भस्म कर देता हूँ,
और स्वर्ण भस्म को ,उदरस्त कर लेता हूँ
कितने ही लोगों को कलियुग के अभिशाप से बचाता हूँ
देर तक प्रेम में लीन होने का पाठ पढाता हूँ
एक ऋषि विश्वामित्र होते थे ,वो भी ब्रह्मज्ञानी थे
एक अप्सरा मेनका को देख ,हुए पानी पानी थे
भूल गए थे सब तप ,छाई थी ऐसी मस्ती
मेरे आश्रम में तो ,सैंकड़ों मेनकाएँ है ,
जब विश्वामित्र पिघल गए ,तो मेरी क्या हस्ती
मेरी एकांत कुटी में मेनकाओं के संग,
प्रेम और ब्रह्मज्ञान का दीपक रोज जलता है
दुनिया भले ही कुछ भी बोले ,
पर ब्रह्मज्ञानी को ,कोई भी पाप नहीं लगता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

इश्क की हकीकत

         इश्क की हकीकत

अकेले में प्यार का इजहार जब हमने किया ,
हाथ मेरा ,उनने पकड़ा ,और सहलाने लगे
देख ये रिस्पोंस उनका ,बढ़ा अपना हौसला ,
धीरे धीरे और भी नजदीक हम जाने लगे
उनने   झटका हाथ,झिड़का ,और पीछे हट गए ,
बोले अपनी रहो हद में,पास क्यों आने लगे
इससे ज्यादा तुम न हरकत करो और आगे बढ़ो,
इसलिए था हाथ पकड़ा ,हम को बतलाने लगे

घोटू

झारखण्ड की सैर

झारखण्ड का नक्शा
तू चल मेरे साथ, मैं तुझे झारखण्ड की सैर कराता हूँ,
भारत भूमि के एक अभिन्न अंग के बारे में बतलाता हूँ |
बिरसा मुंडा की प्रतिमा, बोकारो
ये बिरसा भगवान् की भूमि, सिद्धू-कान्हू की धरती यह,
प्रकृति की छटा है अनुपम, खनिज-सम्पदा की धरती यह |
हुंडरू जल-प्रपात, रांची
गोद में बैठी प्रकृति की, राजधानी रांची है यहाँ की,
जल-प्रपातों का यह शहर, जलवायु खुशनुमा जहाँ की |
बैद्यनाथ धाम मंदिर, देवघर
देवघर का शिवलिंग
यह देखो ये बैद्यनाथ धाम, जो देवघर भी कहलाता है,
शिव-शंकर के ज्योतिर्लिंग से पावन धाम सुहाता है |
टाटा इस्पात कारखाना का दृश्य
इस्पातों के एक शहंशाह जमशेद जी ने जो बसाया है,
ये जमशेदपुर, टाटा नगर जो विश्व पटल पर छाया है |
बोकारो इस्पात संयंत्र
इस्पातों की एक और है नगरी, बोकारो इस्पात नगर यह,
फले-फुले कई उद्योग-धंधे, भले मानुषों का शहर यह |
कोयले की खान, धनबाद
आई.एस.एम., धनबाद
देश की कोयला राजधानी चलो, नाम ही जिसका धनबाद है,
आई.एस.एम. के लिए प्रतिष्ठित, कोयला खानों से आबाद है |
माँ छिन्नमस्तिके मंदिर, रजरप्पा
देवडी मंदिर
रजरप्पा में छिन्नमस्तिके, देवडी में माँ का मंदिर साजे,
मधुबन में है जैन तीर्थालय, हरिहर धाम में शिव विराजे |
हरिहर धाम, गिरिडीह
मधुबन
दामोदर और स्वर्णरेखा नदी, झारखण्ड की पहचान है,
कई बांध और कई परियोजना, बढ़ाते हमारी शान है |
कांके डैम, रांची
कर्क रेखा हृदय से गुजरता, कई उच्च पथ से जुड़ा यह,
ग्रैंड ट्रंक है जान यहाँ की, देश के हर कोने से जुड़ा यह |
वन्यजीव अभ्यारण्य विशाल है, वन धरती हजारीबाग में,
पहाड़ियां और कई झीलें हैं, बस जाये जो दिल के बाग़ में |
मैथन डैम
तिलैया डैम
झुमरी तिलैया डैम है मोहक, तेनु, कोनार, मैथन बाँध भी,
खंडोली और चांडिल डैम भी, कांके और पंचेत बाँध भी |
चांडिल डैम
तेनुघाट डैम
राजभाषा है हिंदी पर खोरठा, हो, मुंडा, संथाली भी,
बंगला, ओडिया, उर्दू भी कई रंग की यहाँ बोली भी |
टुसू पर्व का दृश्य
टुसू, कर्मा, सरहुल, सोहराय और गोबर्धन पूजे जाते हैं,
माँ मनसा व भोक्ता पूजा, हर देव-देवी यहाँ पूजे जाते हैं |
माँ मनसा
वन्य भूमि ये, देव भूमि ये, "दीप" मैं सबको समझाता हूँ,
तू चल मेरे साथ, मैं तुझे झारखण्ड की सैर कराता हूँ |

विज्ञापन और हकीकत

         विज्ञापन और हकीकत

एक लड़के ने ,एक लड़की को पटाया
फिर और आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाया
लड़की ने मना किया ,आने न दिया पास
तो लड़का बोला होकर के बड़ा उदास
'क्या तुमने घडी डिटर्जेंट का विज्ञापन नहीं देखा,
'पहले इस्तेमाल करो,फिर करो विश्वास '
लड़की ने नाराज़ होकर
दो सेंडिल मारे उस के सर पर
और बोली 'उसी विज्ञापन की दो और लाइने है प्यारी
'सब से भारी ,घडी हमारी '

घोटू

सपना

          सपना

सारी  टी वी  चेनलों ,पर दो ख़बरें आम
एक सोने का खजाना ,दूजे   आसाराम
दूजे आसाराम ,खबर बाकी सब हल्की
मोदी और राहुल की ख़बरें बस  दो पल की
ये दोनों भी देख रहे सत्ता का सपना
'घोटू' ,इन सब पर भारी ,साधू का सपना

घोटू

गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

मै तो हूँ इन्द्रधनुष

       मै तो हूँ इन्द्रधनुष

 पराये जल के कण ,
पराई सूर्यकिरण
पराया नीलगगन 
फिर भी मै जाता तन
सतरंगी आभा में ,
इन्द्रधनुष जैसा बन
दिखने में सुन्दर हूँ,
लगता हूँ मनभावन
ना काया ,कोई तन
आँखों का केवल भ्रम
होता बस कुछ पल का ,
ही मेरा वो जीवन
आपस में फिर मिलते ,
सब के सब सात रंग
मै पाता  मूल रूप ,
बन शाश्वत श्वेत रंग
जीवन के इस क्रम में ,
यूं ही बस रहता खुश
मै  तो हूँ  इन्द्रधनुष

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 16 अक्टूबर 2013

मेरा पता -फ्लैट नंबर 7 0 1

    मेरा पता -फ्लैट नंबर 7 0 1

सप्त ऋषि है ,सप्त सागर ,सात ही  महाद्वीप है ,
                           और एक सप्ताह में बस सात होते वार है
सात है हम वचन देते,सात फेरे काटते ,
                           तभी जा सम्पूर्ण होता,विवाह का संस्कार है
सात जन्मो का है बंधन ,बंधता पत्नी पति में,
                           एक दूजे प्रति समर्पण ,होता सच्चा प्यार है
सात स्वर संगीत के है ,सात ही बस लोक है ,
                             सातवीं मंजिल पे बसता ,'घोटू'का परिवार है

घोटू 

मोटापे का इलाज

    मोटापे का इलाज

    मोटापे का इलाज

मोटापे से परेशान ,
एक पत्नी ने लगाई गुहार
माय डीयर पतिदेव ,
अगर करते हो मुझसे सच्चा प्यार
तो करो कुछ एसा जतन
कि कम हो जाय मेरा वजन
पति जी बोले डीयर ,
तुम हो इतनी प्यारी और सुन्दर
पर मुश्किल ये है हमारी
तुम पड़ती हो मुझ पर भारी
तुमसे कितना प्यार है ,क्या बतलाऊं
जी करता है तुम्हे चाँद पर ले जाऊं
वहां पर तुम्हारा वजन ,छह गुना घट जाएगा
मून पर हमतुम ,हनीमून मनाएंगे ,
कितना मज़ा आयेगा
'मून पर हनीमून मनाने कि बात सुन ,
पत्नी जी खुश हुई ,पर फिर बोली पलट कर
पर डीयर ,तुम्हारा भी बजन तो ,
कम हो जाएगा ,चाँद  पर जाकर
पतीजी बोले ,कोई परवाह नहीं ,
मै तुमसे इतना प्यार करता हूँ ,जाने मन
तुम्हारी इच्छा पूरी करने के लिए ,
क्या कुर्बान नहीं कर सकता ,अपना बजन  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


बकरीद

              घोटू के छंद
                  बकरीद

सुबह सुबह पत्नी ने ,प्यार से जगाया हमें ,
                        गालों पे दी पप्पी और मुस्कान प्यारी थी
बेड टी के बाद हमें ,मिले सुबह नाश्ते में,
                         जलेबी थी गरम गरम ,चीजें ढेर सारी थी
खाने में खीर मिली ,खुश थी वो खिली खिली ,
                          बोली शाम बाहर चलें ,सेल लगी भारी थी
हमारी  समझ आया ,इतना खिलापिलाया,
                          बकरा हलाल करने की पूरी तैयारी  थी

घोटू        

गुरु घंटाल

          गुरु घंटाल

स्वयं को घोषित किया ,भगवान जिस इंसान ने ,
                 समर्पण के नाम पर ,व्यभिचार जो करता रहा
मोह माया छोड़ दो का ,बांटता जो ज्ञान था ,
                  लोभ का मारा ,तिजोरी ,स्वयं की भरता रहा
नन्ही नन्ही बच्चियों की ,लूटता था अस्मतें ,
                    भोले भाले भक्तजन को ,लूटने में दक्ष था
हिरणकश्यप की तरह ,कहता था वो भगवान है ,
                      पुत्र पर प्रहलाद जैसा नहीं,पर हिरण्याक्ष था
बाप और बेटे ने मिल कर ,बहुत से नाटक किये ,
                      कृष्ण बन कर ,गोपियों के संग रचाया रास था
एक पीड़ित बालिका ने ,रूप धर नरसिंह जैसा ,
                       बताया दुनिया को कितना दुष्ट वो बदमाश था
धीरे धीरे ,उसके सारे  कच्चे चिठ्ठे , खुल गए ,
                          शेर की था खाल ओढ़े ,वो छुपा था  भेड़िया
एक दिन फंस ही गया ,कानून के वो जाल में,
                            सैकड़ों ही बच्चियों का ,जिसने था शोषण किया
बनाया था  गुरु, निकला वो गुरु घंटाल था  ,
                              धीरे धीरे सभी लोगों को गया ये लग पता
इससे मेरे दोस्तों,मिलती हमें या सीख है,
                                 धर्म अच्छा है मगर अच्छी नहीं धर्मान्धता

घोटू      

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

''तुलना''

दोस्तों 

चांद को दूसरे अर्थो में समझने का एक अदना सा प्रयास मैने भी किया था 
जिसे आपके आशिर्वाद के लिये यहां प्रस्तुत कर रहा हूं 

''तुलना''

उस दिन अनजाने ही 
तुतने खुद अपनी तुलना 
चाँद से की थी 
तो सकपका गया था मैं
तुम्हारे अभिमान पर
मुझे नहीं दिख सका था
तुम्हारा गहन विस्तार
पर अब सोचता हूं
सचमुच चाँद जैसी ही हो तुम
वही चमक
वही शीतलता
वही धवलता
और वही बदलता स्वरूप्
आज खुश होकर चाँदनी बिखेरना
और कल बादलों के पीछे छिपकर
अठखेलियां करना
बादल न भी हों
तो भी बडा सहज है तुम्हारे लिये
अपने स्वरूप को बदल लेना
क्योंकि चेहरा बदलने का
ऐसा हुनर है तुममें
जिसे मैं कभी नहीं पा सकता
क्योंकि तुम्हारी यातनाओं का
दहकता हुआ गोल सूरज हूं मैं

सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

एक कथा-एक व्यथा

                घोटू के छंद
           एक कथा-एक व्यथा
                         १
एक नट रोज रोज ,खेल जब दिखाता तो,
                          बेटी थी जवान जिसे रस्सी पे चलाता था 
अगर गिरी तो तेरी ,गधे से कर दूंगा शादी ,
                           बार बार बिटिया को ,डर ये दिखाता  था 
कभी तो गिरेगी बेटी,शादी होगी उसके संग, 
                            नट का गधा बेचारा ,आस ये लगाता  था
बस इसी लालच में ही,थोड़ा सा ही भूसा खाकर ,
                             दिन भर ,ढेर सारा ,बोझा वो उठाता  था
                          २
नट के ही खेल जैसा ,आज का है राज काज ,  
                              सूखा भूसा खाते ,कब पेट भर के खायेंगे
सहे मंहगाई बोझ,नट के गधे से रोज,
                               आस हम लगा के बैठे ,अच्छे दिन आयेंगे
नट की बेटी की तरह ,गिरेगी ये 'गवर्नमेंट '
                                 खुशियों से होगी शादी ,हम मुस्कायेंगे
बड़े ही गधे थे हम , खाते अब है ये  कसम ,
                                  नट के झांसे में नहीं ,और अब  आयेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

नीरस जीवन

          घोटू की कुण्डलियाँ
             नीरस जीवन
                       १
बूढा भंवरा क्या करे ,कोई दे बतलाय
ना तो कलियाँ 'लिफ्ट'दे,फूल न गले लगाय
फूल न गले लगाय ,जनम से रस का लोभी
नहीं मिले रस तो उसकी क्या हालत होगी
कह 'घोटू'कविराय हो गया ,उसका कूड़ा
ना घर का ना रहा घाट  का,भंवरा बूढा 
                         २
जीवन का सब रस गया ,मन में नहीं उमंग
बदल गया है इस तरह ,इस जीवन का रंग
इस जीवन का रंग,सोचता है वो मन में
रहा नहीं वो जोश ,आजकल है गुंजन में
किया 'टेंशन'दूर तभी 'घोटू'ने मन का
कहा'खुशबुएँ सूंघ ,मज़ा बस ये जीवन का'
घोटू

पति परिभाषा

           पति परिभाषा
                    १
जो कोल्हू के बैल सा,जुता  रहे दिन  रात
बस हाँ में हाँ मिलाता ,सभी मानता बात
सभी मानता बात,करे खर्चा,  बन भोला
बीबी  करे  खरीद , उठाता  फिरता   झोला
कह 'घोटू'कवि  फिर भी जो रहता मुस्काता 
 इस दुनिया में ,एसा प्राणी ,पति कहलाता
                    २
जो सहमा सहमा रहे ,तीन करे ना पांच
पत्नीजी के इशारों ,पर करता हो    नाच
पर करता हो  नाच  ,बड़ा ही सीधा सादा
'बादशाह'है दफ्तर में पर घर में 'प्यादा'
'घोटू' चारा खाकर  दूध दिए जो जाता
 गाय सरीखा सीधा प्राणी ,पति कहलाता

घोटू

रविवार, 13 अक्टूबर 2013

चॉदनी रात में खूले आसमान में
विचरण करते चॅाद केा देख रहा था
कितना निश्‍चल कितना शांत
चला जा रहा है अपने रस्‍ते
पर प्रकाश से प्रकाशमान पर
ना ईष्‍या ना कुंठा,ना हिनता
प्रकाश दाता के अस्‍त पर
बन कर प्रतिरूप उसका
अंधेरे केा दूर कर उजाले के
लिये सदैव लालाइत,प्रत्‍यनशील
भले रोक ले आवारा बादल
भले छुपा ले प्रकाश उसका
मगर फिर भी प्रत्‍यन कर
बाहर आकर पुन: प्रकाशमान
धरती केा,अंबंर केा,मानव को
अंहकार भी नही शीतलता पर
अलंकार पर,उदहरणो पर
अपनी चादनी पर,
दूसरे केा सुख देकर खुश
मगर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
धंमडी,ईष्‍यावान,लेाभी
स्‍वार्थ के वशीभूत
मॅा'बाप केा भी भूलते
जिसके प्रकाश से प्रकाशमान है
आखिर ईश्‍वर की सर्वश्रेष्‍ठ रचना
मानव क्‍यों है अपने कर्तव्‍य
अपने धर्म से भटक रहा है
क्‍यों नही चाद से सबक लेत
पर प्रकाश से प्रकाशमान 
हेाकर भी रौशनी दिखाने का
ईष्‍ठा कुठा घुमड दूर भगाने का
कठिन राहेा से भी गुजरते हुए
अखंड खुद को सुधारने का
 अखंड खुद को सुधाराने का

हे माता ,नव रूप तुम्हारे

         हे माता ,नव रूप तुम्हारे

मैंने पाया ,यह नव जीवन ,रह नौ महीने गर्भ तुम्हारे
                                        हे माता ! नव रूप तुम्हारे
तुमने सही ,वेदना पीड़ा  ,और मुझे लायी धरती पर
'जन्मदायिनी' रूप तुम्हारा ,है माँ ,सहनशील और सुन्दर
रखा मुझे चिपटा छाती से ,दूध पिला कर ,पाला ,पोसा
'पालनकर्ता'रूप तुम्हारा,है माँ  सबसे भव्य ,अनोखा
मुझको पकड़ा अपनी उंगली ,उठना और चलना सिखलाया
'पथ प्रदर्शनी'रूप लिए माँ,जीवन पथ में ,मुझे बढ़ाया
फिर पढ़ना लिखना सिखलाया ,तुमने 'ज्ञान दायिनी'बन कर
छोटी सीखें दे सिखलाया ,तुमने भले बुरे का अंतर
 इस जीवन में जब भी मुझको,दुःख और पीड़ा ने तडफाया
तुमने'ममता मूर्ती 'बन कर ,मेरे घावों को सहलाया
परेशानियाँ जब भी आई,चिंताओं ने जब भी घेरा
सब चिंताएं हर ली तुमने,'चिता पुर्णी 'रूप है तेरा
देत्य  रूप धर,जब बाधाएं ,आयी मेरे ,प्रगति पथ पर
तूने उन सब को संहारा ,सिंह वाहिनी 'दुर्गा 'बन कर
बड़ा हुआ तो ,सही समय पर ,तूने मेरा ब्याह कर दिया
माँ तो थी ही,पर अब तूने ,'सासू माँ 'का रूप धर  लिया
साथ समय के,घर में आये ,तेरे पोता पोती  अपने
पूर्ण किये 'दादी माँ' बन कर,माता! तूने सारे सपने
अब तो बेटे से भी ज्यादा ,पोता  पोती लगे दुलारे
                                     हे माता ! नव रूप तुम्हारे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दस्तक

              दस्तक
पहले थी मौसम में गर्मी
भूल गए हम शर्मा शर्मी
मौज और मस्ती थी हरदम
रहते थे स्वच्छंद पड़े हम
पर जब आई कहीं से आहट
हमने  चादर ओढी झटपट
समझ गए ,बाहर निकले जब
सर्दी  ने    आकर दी दस्तक
एसा ही होता है जीवन
यौवन है  गर्मी का मौसम
सर्दी का मौसम आता तब
जब कि बुढापा ,देता दस्तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुल्लक फोड़ दो

         गुल्लक फोड़ दो

उसूलों से करता हूँ मै ,कोई समझौता नहीं ,
                     और मेरा उसूल है ,सब उसूलों को तोड़ दो
दो दिलों को मिलाने से बढ़के कोई पुण्य  ना,
                     उलटा सीधा करो कुछ भी ,दो दिलों को जोड़ दो 
तुम्हारे मुश्किल दिनों में ,जिनने थामा हाथ था ,
                     उनके मुश्किल दिनों में मत ,हाथ उनका छोड़ दो
मुसीबत में काम आये ,बचाए थे इसलिए ,
                          आज पैसों की जरुरत पड़ी,गुल्लक    फोड़ दो 

घोटू

संपर्क

             संपर्क
                 १
बहुत जरूरी आजकल ,है होना संपर्क
अगर नहीं संपर्क तो,समझो बेडा गर्क
होता बेडा गर्क ,काम सब लटका करते
इधर उधर चक्कर खाते हम भटका करते
कह 'घोटू'कविराय रखो संपर्क बना कर
जीवन रहता सुखी सभी से हाथ मिला कर
                   २
मिलते नयनों  से नयन,होती आँखें चार
होता फिर संपर्क तो,हो जाता है प्यार
हो जाता है प्यार ,जिन्दगी है मुस्काती
कोई हसीना,दिल में बस,पत्नी बन जाती
पत्नी से संपर्क ,खिलाता है गुल भारी
घर में बच्चों की गूंजा करती किलकारी

घोटू

शनिवार, 12 अक्टूबर 2013

Business Proposal

Salutation: My name is Sir. Terry Leahy,

I am soliciting your sincere assistance
over my Investment Proposal which I planned
to invest with your 100% assistance. I am
seeking for your co-operation in building
a company or Real Estate in your country.
I have huge sum of money for the project,
which will be transfered to you as soon as
possible if our discussion is positive and
documentation is sealed. On the resumption
of this project,you will be a member of the
governing board as the Director of
Management. I will give you 10% of the total
sum before investment and 30% of the profit
realized for 5 years.

If interested please respond, my email
address: terry_leahy@qq.com

SIR. TERRY LEAHY

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2013

प्रणय निवेदन

     प्रणय निवेदन

मुझमे ना है लाग लगावट ,न ही बनावट ,लीपापोती ,
मुझको अपने मूल रूप में ,क्या स्वीकार करोगे प्रियतम 
मै भोलीभाली सी निश्छल ,मुझे न आती दुनियादारी ,
सच्चे मन से और लगन से ,दासी बन कर रहूँ तुम्हारी
मै जैसी हूँ,बस वैसी ही ,हो जाऊं तुम पर न्योछावर ,
पर तुम भी क्या सच्चे दिल से ,मुझसे प्यार करोगे प्रियतम
मुझको अपने मूल रूप में ,क्या स्वीकार करोगे प्रियतम
तुम कान्हा हो ,रास रचैया ,मै सीधी  सादी सी राधा
कहीं अचानक छोड़ न जाना ,प्यार हमारा रहे न आधा
मै गोकुल में ,अश्रु बहाती रहूँ,द्वारिकाधीश बने तुम ,
आठ आठ पटरानी  के संग,जा अभिसार करोगे प्रियतम
मुझको अपने मूल रूप में ,क्या स्वीकार करोगे प्रियतम
तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो ,ऊंचा  नाम,राम तुम्हारा
सीता वन वन ,भटकी संग संग ,तुमने घर से उसे निकाला
क्या उस पर विश्वास नहीं था ,या था प्यार तुम्हारा झूंटा ,
अगर अहिल्या बनी शिला मै ,क्या उद्धार करोगे प्रियतम
मुझको अपने मूल रूप में ,क्या स्वीकार करोगे प्रियतम

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सबसे अच्छा धन्धा

       सबसे अच्छा धन्धा

मेरे मन में ,एक बड़ा था ये  कन्फ्यूजन
आने वाले जीवन में लूं ,क्या प्रोफेशन
क्योंकि होने वाला हूँ मै शीध्र रिटायर
मुझमे ऊर्जा भरी ,अनुभव का मै सागर
बाद रिटायर्मेंट ,काम में क्या अपनाऊं
नेता बनूँ,या कि फिर मै बाबा बन जाऊं
क्योंकि इन दोनों ही धंधों में इज्जत है
खूब कमाई होती,दौलत ही दौलत  है
जनता अपने सर ,आँखों पर तुम्हे बिठाती
एक बार जो चल निकला ,चांदी ही चांदी
ये दोनों ही ,बड़े आदमी  कहलाते है
भक्तों ,चमचों से हरदम पूजे जाते है
आवश्यक ,होना जुबान में जोर चाहिए
नाटकबाजी आती ,करना    शोर चाहिए
वैसे होता  मुश्किल है नेता बन पाना
जगह जगह होर्डिंग लगवा कर नाम जमाना  
हाई कमान के थोड़े चरण चाटने होंगे
और मीडिया को उपहार बांटने  होंगे
एक बार टी वी पेपर में  अगर छाओगे
तो चुनाव में टिकिट शीध्र ही पा जाओगे 
जीते अगर चुनाव ,समझ लो,लगी लाटरी
पाँचों उंगली घी में है और किस्मत संवरी
जोड़ तोड़ कर एक  बार मंत्री पद पालो
एक झटके में ,कई करोड़ों ,आप कमालो
भाई,बंधू को ,ठेका दिलवा ,करो तरक्की
पांच साल में पांच पुश्त  की,दौलत पक्की
लेकिन थोडा मुश्किल है ये नेता बनना
एक बार हारे चुनाव, कोई  पूछे  ना
इससे ज्यादा अच्छा ,संत महात्मा बनना
क्योंकि इस धंधे में लगता धन ना 
नहीं फिटकड़ी,हींग ,रंग भी आये चोखा
ज्ञान चाहिए थोडा वेद ,और शास्त्रों का  
थोड़े भजन कीर्तन करना ,गाना गाना
चंद चुटकुले ,किस्से कहना ,शेर सुनाना
थोड़े भगवा कपडे ,थोड़े बाल बड़े  हो
कुछ ऐसे चेला चेली ,गुणगान करें जो
खुल्ले हाथों ,आशीर्वाद बांटने होंगे
उनमे ,कम से कम आधे तो सच ही होंगे
जिसका काम बनेगा ,वो जब गुण गायेगा
सात आठ वो नए भक्त लेकर आयेगा
प्रवचन सुनने फिर भक्तों की भीड़ लगेगी
तो समझो तुम्हारी गाडी  चल निकलेगी
बढ़ती जायेगी फिर जयजयकार ,हमेशा
खूब चढ़ावा  आयेगा,  बरसेगा  पैसा
अगर आचरण अपना सात्विक रख पाओगे
निज भक्तों से जीवन भर पूजे जाओगे
इन सारी बातों को मैंने परखा ,तोला
किया विवेचन मैंने तो मेरा मन बोला
राजनीति का धंधा होता जाता रिस्की
वही पनप पाता ,अच्छी हो 'बेकिंग'जिसकी
पर मुझ सा ,विद्वान्,अनुभवी ,अच्छा वक्ता
बाबा बन कर पा सकता है ,शीध्र सफलता
सबसे अच्छा ,'सेफ',अगर धंधा है चुनना
तो फिर नेता नहीं,ठीक है  बाबा   बनना
क्योंकि बाबाओं से डरते सब नेता गण
'बाबागिरी'ही है सबसे अच्छा प्रोफेशन

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

विनती प्रभु से

         विनती प्रभु से

मुझको बस इतना छोटा सा वर दो भगवन ,
सच्चे दिल से ,दीन  दुखी की मदद कर सकूं
जिनके मन में एकाकीपन,थकन ,दहन हो,
दो लम्हे भी ,अगर ख़ुशी के ,वहां भर सकूं
सबके अपने अपने दुःख है ,पीडायें है
सुखी न कोइ ,सबकी अपनी ,चिंतायें है
कोई रुग्ण बदन है तो कोई निर्धन है,
खडी मुसीबत ,रहती हरदम ,मुंह बायें  है
हे प्रभु,मुझको उनकी सेवा का अवसर दो,
तृप्ति मिलेगी ,थोड़ी पीड़ा ,अगर हर सकूं
जिनके मन में ,एकाकी पन  ,थकन,दहन हो,
दो लम्हे भी ,अगर खुशी के,वहां भर सकूं
कोई बेटे,पोतों वाला ,मगर अकेला
कोई निर्बल,वृद्ध ,रोज दुःख ,करता झेला
लेकिन स्वाभिमान का जज्बा मन में भर के ,
विपदाओं से ,जूझां करता ,वो अलबेला
उसे सहारा दूं ,मै बन कर उसकी लाठी ,
उसके अंधियारे जीवन में ,ज्योत भर सकूं
जिसके मन में एकाकीपन,थकन,दहन हो,
दो लम्हे भी अगर खुशी के ,वहां भर सकूं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

ऊंचे लोग-नीची हरकत


           ऊंचे लोग-नीची हरकत

यहाँ सब है केंकड़े ही केंकड़े ,
एक दूजे के है सब पीछे पड़े
कोई भी जब निकलने ऊपर चढ़ा ,
                दूसरों ने टांग उसकी खींच ली
किसी ने की अगर थोड़ी गलतियाँ
दूसरों ने बवंडर जम  कर किया
दूसरों की गलती सब आई नज़र ,
                   अपनों की गलती पे आँखे मींच ली
मिला मौका लेने का,जम कर लिया
भरी दोनों हाथ अपनी झोलियाँ
और अवसर देने का जब आया तो,
                     उनने कस कर,अपनी मुट्ठी भींच ली
साम्यता का गीत गाते थे बड़ा
मगर जब भी पानी का टोटा पड़ा
लोग प्यासे तरस कर मरते रहे ,
                     मगर उनने अपनी बगिया सींच ली
हुआ जब उपहास तो आ क्रोध में
इस तरह से वो जले प्रतिशोध में
द्रोपदी की तरह साडी खींच कर,
                      उसकी इज्जत इनने सबके बीच ली
उनके आशीर्वाद से होकर खड़े ,
मुश्किलों से ही थे हम ऊपर चढ़े
ये तरक्की उनको यूं चुभने लगी ,
                       उनने झट नीचे से सीढ़ी खींच ली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

शिकायत पत्नी की -जबाब पति का

   शिकायत पत्नी की -जबाब पति का

पत्नी की शिकायत 
 
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
                      क्या थी मै और आपने क्या कर दिया
प्यार कुछ अपना दिखाया इस तरह ,
                       देखो मुझको कितना मोटा कर दिया
       रोज अपने प्यार का टोनिक पिला
        बदन मेरा कर दिया है थुलथुला
        मांस देखो कितना तन पर चढ़ गया 
       वजन मेरा देखो कितना बढ़  गया
       अंग सारे इस कदर है बढ़ गए
        सभी कपडे मेरे छोटे पड़ गये
        कभी रबडी और जलेबी खिलाई
        तली चीजें और मख्खन मलाई
       प्यार का एसा चलाया सिलसिला
       फूल मेरा तन गया ,अच्छा भला
और मैंने शिकायत जब भी करी ,
                      प्यार से बस एक चुम्बन जड़ दिया
दुबली पतली मै कनक की थी छड़ी ,
                       क्या थी मै और आपने क्या कर दिया

जबाब पति का -

कौन कहता है की तुम मोटी  हुई हो ,
                        सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का भरम है

  आई थी,सकुचाई सी दुल्हन बने जब ,
                          उस समय तुम एक थी कच्ची कली  सी
मुख म्रदुल था ,बड़ा भोलापन समेटे ,
                             और चितवन भी बड़ी चंचल भली थी
किन्तु मेरे प्यार का आहार पाकर ,
                               अब विकस पाया तुम्हारा तन सलोना
गाल भी फूले हुए लगते भले है ,
                                गात का गदरा गया है हरेक कोना
तो कली से फूल बन कर अब खिली हो ,
                                 अब निखर  पाया तुम्हारा रूप प्यारा
अब कली वाली चुभन चुभती नहीं है ,
                                  अब हुआ कोमल बदन ,कंचन तुम्हारा
बढ़ गया यदि भार थोडा नितंबों का,
                                    रूप निखरा है भली सेहत हुइ है  
पड़  गए छोटे अगर कपडे पुराने ,
                                    है खुशी मेरी सफल चाहत हुई है 
और मोटापा समझती हो इसे तुम ,
                                    देख कर के आइना आती शरम है
कौन कहता  है कि तुम मोटी हुई हो,
                                   सिर्फ यह तो तुम्हारे मन का बहम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     


हे माँ दुर्गा !


प्रथम दिवस माँ शैलपुत्री, कष्ट मेरी हर लेना,
मानव जीवन को मेरे, साकार यूंही कर देना |

द्वितीय दिवस हे ब्रह्मचारिणी, विद्या का फल मांगू,
जीवन हो उज्ज्वल सबका, उज्ज्वलता तुझसे चाहूँ |

तृतीय दिवस माँ चंद्रघंटा, मुझको बलशाली करना,
हर मुश्किल से लड़ पाऊँ माँ, शक्तिशाली करना |

चतुर्थ दिवस हे कुष्मांडा, जगत की रक्षा करना,
भक्तों का अपने हे माता, तू सुरक्षा करना |

पंचम दिवस स्कन्द-माता, जगत की माता तू,
मातृत्व तू बरसाना माता, सब कुछ की ज्ञाता तू |

षष्ठी दिवस माँ कात्यायिनी, दुष्टों की तू नाशक,
तू ही तो सर्वत्र व्याप्त माँ, तू ही सबकी शासक |

सप्तम दिवस माँ कालरात्रि, पापी तुझसे भागे,
सेवक पे कृपा करना, जो ना पूजे वो अभागे |

अष्टम दिवस माँ महागौरी, श्वेतांबर धारिणी,
अंधकार को हरना माता, तू ही तो तारिणी |

नवम दिवस हे सिद्धिदात्री, कमलासन तू विराजे,
शंख, सुदर्शन, गदा, कमल, माँ तुझपे ही तो साजे |

नौ रूपों में हे माँ दुर्गा, कृपा सदैव बरसाना,
पूजूँ तुझको, ध्याऊँ तुझको, सत्य मार्ग दिखलाना |

रविवार, 6 अक्टूबर 2013

हुआ करता काँटों में भी दिल तो है

  हुआ करता काँटों में भी दिल तो है

भावनाएं सिर्फ फूलों में नहीं ,
                    हुआ करता काँटों में भी दिल तो है
जरूरी ना प्यार ही हरदम मिले ,
                     जिन्दगी में ,नफरतें ,मुश्किल तो है
देवता गण ,सिर्फ आशीर्वाद ना ,
                      श्राप भी दे देते  कितनी  बार  है
पवन शीतल ,जाती बन तूफ़ान है ,
                       वरुण लाता क़यामत ,बन बाढ है ,
 कोप से  करते सभी को राख है ,
                        भड़क यदि जाते है अग्नी देवता
छुपा हर इंसान में एक राक्षस ,
                         नहीं लग पाता मगर इसका पता
राक्षस भी भक्त बन भगवान के,
                          कठिन करते तपस्या और ध्यान है
बदल जाता उनका सब व्यवहार है ,
                           जैसे ही  मिलता उन्हें  वरदान  है
भस्मासुर की तरह जाते पीछे पड ,
                             दाता के,जिनने था उनको वर दिया
निकलता मतलब तो देतें है भुला ,
                               बड़े नाशुक्रे ,न कहते  शुक्रिया
कौन कैसा दिखता है ,दिल में है क्या ,
                                 बड़ा ही दुरूह है पहचानना
कौन कब व्यवहार कैसा करेगा ,
                                  बड़ा मुश्किल होता है  यह जानना
   
मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

पत्थर के भी दिल होता है

             पत्थर के भी दिल होता  है

दिखती  काली  घनघोर घटा ,पर उसमे होता शीतल जल
बाहर से सख्त मगर अन्दर ,होता है स्वाद भरा नारियल
मिलती गुणकारी शिलाजीत ,पत्थर पसीजते है जब जब
कांटे तन  पर,पर  तना चीर ,देते   तरु  गोंद , शक्तिवर्धक
पत्थर दिल लोगों के मन में ,भी रहता छुप,दब ,दया ,रहम
दुर्दान्त दस्यु भी बाल्मीकि  बन कर लिख देते रामायण
कोई कितना भी सख्त ह्रदय ,दिखता हो पर उसके अन्दर
कोमलता होती छुपी हुई ,देखो टटोल कर उर अंतर
जो विषम परिस्तिथी के कारण ,पाषाण ह्रदय जा बनता है
पर  उसे प्रेम की गरमी से ही पिघलाया  जा  सकता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

प्यार से जब भी पुकारा आपने ---

      प्यार से जब भी पुकारा आपने ---

प्यार से जब भी  पुकारा आपने ,
                         हम चले आये सपन बन नींद में
प्यार हमने आपसे जी भर किया ,
                          आपके प्यारे सजन बन  नींद में
       पडी रहती किसी कोने में ह्रदय के ,
          हमारे मन की अधूरी कामनाएं
       रूपसी प्यारी परी का रूप धर कर ,
       सपन बन कर,नींद में वो मुस्कराएं
जब भी हो उन्मुक्त चाहा नाचना ,
                            हम चले आये  गगन बन नींद में
प्यार से जब भी पुकारा आपने ,
                             हम चले आये सपन बन नींद  में
          प्रीत बचपन की हमारी और तुम्हारी,
          कारणों से कुछ ,मिलन पर हो न पाया
          याद आई ,कुञ्ज गलियाँ ,कालिंदी तट ,
          चाँद जब पूनम शरद का मुस्कराया
लगी मन में रास की जब भी लगन तो,
                               हम चले आये किशन बन नींद में               
प्यार से जब भी पुकारा आपने ,
                                हम चले आये सपन बन ,नींद में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां

/////// एक गजल ///////

बचपना वचपना मस्तियां वस्तियां
भूल बैठे हैं हम तख्तियां वख्तियां

अब वो गेंदों से बचपन का रिश्ता नहीं
घूमते थे कभी बस्तियां बस्तियां

टीवी नेट की लतें लग गयीं इस कदर
अब लुभाती नहीं कश्तियां वश्तियां

खुदकुशी तक की नौबत पढ़ाई में है
क्या करेंगे मटरगश्तियां वश्तियां

ऐब बच्चों में तो चाहिये ही नहीं
बस बड़े ही करें गल्तियां वल्तियां

- विशाल चर्चित

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

इस जीवन में कितने प्रेशर

           इस जीवन में कितने प्रेशर

माँ बाप हमारे बचपन में ,डाला करते हम पर प्रेशर 
जीवन में आगे बढना है तो बेटा खूब पढाई  कर
एडमिशन अच्छा लेना हो तो काम्पिटिशन का प्रेशर
अच्छा सा जॉब चाहिए तो ,ऊंची पढाई का फिर प्रेशर
मिल गया जॉब ,हालत खराब ,कर देता ,ऑफिस का प्रेशर
तुम ये न करो,तुम यूं न करो ,घर पर है बीबी का प्रेशर
प्रेशर के चक्कर में हम पर ,इतना दबाब बन जाता है
लेती बीमारियाँ घेर हमें ,ब्लड का प्रेशर बढ़ जाता है
प्रेशर लगाओ तब मुश्किल से ,ये पेट साफ़ हो पाता है  
इतना दबाब पड़ता हम पर कि हार्ट वीक हो जाता है
जैसे कि प्रेशर कूकर में हर चीज शीध्र पक जाती है
हम जल्दी पकने लगते  है ऐसी हालत हो जाती  है
बुढापे का पड़ता प्रेशर ,होती बीमारियाँ,तन जर्जर
जीवन में प्रेशर का महत्त्व ,लेकिन रहता है जीवन भर
प्रेशर के कारण ही तो हम ,जीवन में पाते ,  आगे बढ़
प्रेशर से जन्मी बीमारी का एक इलाज एक्युप्रेशर
हो जाते सारे काम शीध्र ,जब ऊपर से पड़ता प्रेशर
जीवन गाडी चलती स्मूथ ,पहियों में सही ,हवा प्रेशर
हम तब तक ही ज़िंदा रहते ,रहता जब तक खूं का प्रेशर
जो प्रेशर से ना घबराते ,वो ही उठ पाते है ऊपर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 


परिवर्तन

जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे राहो में किसी के
यादो का रहबर न था
जब तलक नशा उनकी
बातो का छाया न था
याद में उनके तडप कर
ये मजा आया न था
जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे रातो में किसी के
खाब का रहबर न था
प्यार सब करते खुदा से
दीदार पर मुमकिन नहीं
छोड़ दे जो शक करे वो
दिल मेरा काफिर न था
मेरे इश्क के अश्क उनके
आँख में टिकते अगर
दौड़ के मिलते गले वो
मै बुरा कातिल न था
जिंदगी तेरा गुजारा तब
बड़ा मुश्किल न था
तेरी राहो में किसी के
इश्क का रहबर न था ..............अमित

शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2013

कसक

जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे राहो में किसी के
यादो का रहबर न था
जब तलक नशा उनकी
बातो का छाया न था
याद में उनके तडप कर
ये मजा आया न था
जिन्दगी तेरा गुजारा
तब बड़ा मुश्किल न था
तेरे रातो में किसी के
खाब का रहबर न था
प्यार सब करते खुदा से
दीदार पर मुमकिन नहीं
छोड़ दे जो शक करे वो
दिल मेरा काफिर न था
मेरे इश्क के अश्क उनके
आँख में टिकते अगर
दौड़ के मिलते गले वो
मै बुरा कातिल न था
जिंदगी तेरा गुजारा तब
बड़ा मुश्किल न था
तेरी राहो में किसी के
इश्क का रहबर न था ...............अमित
 

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

समझोता या समर्पण

          समझोता या समर्पण

समझे थे सिंह दहाड़ेंगा ,रह गया मगर म्याऊं कर के
हो रिंग मास्टर से जलील,फिर भी उसकी'हाँ'हूँ'कर के
शायद उसकी मजबूरी थी ,या फिर था प्रेम पिंजरे से ,
या फिर वो उसको फंसा न दे,बोला'मै क्यों जांऊ',डर के

घोटू 

बेहतर है चुप ही रह जाना

उनको कुछ कहने सुनने से .
बेहतर है चुप ही रह जाना ..
जिसको अपना मान चुके हम.
अपनापन क्या है दिखलाना.
हम जाने वो दिल में रहते
दुनिया को क्या है बतलाना
वो समझे ना समझे हमको
बेहतर है चुप ही रह जाना
छुप छुप अश्क पिए दिल ने
अब और नहीं है पास खजाना
उनको कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना
दिल में प्रीत अगर इतनी फिर
झूठ मुठ क्यों दोस्त बनाना
वो हमसे जो रुठ  गये  तब
बेहतर है अपना मर जाना
उनको कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना
अलग मड़ईया डाल शिखर पर
उनका नाम सदा गोहराना
उनके कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना
हम अपना जीवन जी लेंगे
गम तुम उनके पास न जाना
उनको कुछ कहने सुनने से
बेहतर है चुप ही रह जाना  ................अमित




बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

कायापलट

        कायापलट

 आपने मुझको है ये क्या  कर दिया
गेंहूं था मै ,पीस   आटा  कर दिया
इस तरह ,कायापलट ,मेरी  करी ,
घी लगा ,सेका ,परांठा  कर दिया
बांह में एसा समेटा ,आपने ,
समोसे में जैसे  आलू भर दिया
प्यार में अपने डुबाया इस तरह,
रस से रसगुल्ला बना कर भर दिया
मै सडा ,मैदा पड़ा ,उफना हुआ,
टेडा मेडा आपने  जब तल दिया
डुबा कर के चाशनी में प्यार में,
 रस भरे प्यारी जलेबी कर दिया
मै तो सूखी घास का तृण मात्र था,
आपने था प्यार से जब चर लिया
अपने तन में इस तरह से समाया,
दूध सा प्यारा ,सुहाना  कर दिया
गर्ज ये है  ,जो भी था मै ,आपने,
मुझको अपने मन मुताबिक़  गढ़ लिया
काबिले तारीफ़ हरेक अंदाज से,
स्वाद ले लेकर मज़ा पूरा लिया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गांधी जयन्ती पर

       गांधी जयन्ती पर
                    १
   गांधीजी ,रह गए ,
   फोटो बन,टंग कर
   या फिर है दिल्ली में,
   वे दस जनपथ पर
                   २
   नाम पर सड़कें है,
   मौन सी  पड़ी
   चलती ही रहती है,
    गड्ढों  से  भरी
                ३
     गांधी के नाम की,
     आज भी है आंधी
      बड़े बड़े नोटों पर,
       गांधी  ही गांधी  
 
घोटू

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

वरदान पर प्रतिबन्ध

         वरदान पर प्रतिबन्ध

प्राचीन काल में जब भी कोई भगवान
होता था किसी पर मेहरबान
दे  दिया करता था उसको वरदान
और उनकी इस कमजोरी का ,
राक्षस बड़ा फायदा उठाते थे
थोड़े दिन तपस्या करके ,मख्खन लगाते थे
और उनको प्रसन्न कर ,मांग लेते थे एसा वर
जो कर देता था,दाता का जीना दुर्भर
जैसे कि भोले भंडारी शंकर भगवान
ने दे दिया था भस्मासुर को वरदान
कि वो जिसके सर पर हाथ रखेगा ,
वो भस्म हो जाएगा
उन्हें क्या पता था कि वो राक्षस ,
उन्ही के सर पर हाथ उठाएगा
वो तो भला हो विष्णु जी का ,
जिन्होंने रूपसी नारी का रूप धर लिया
और उस पर मुग्ध होकर ,
भस्मासुर ने अपने ही सर पर हाथ रख लिया
और खुद हो गया भस्म
वरना त्रिदेव में से एक देव हो जाता कम
महिषासुर,रावण या अन्य असुर ,
भगवान की इस कमजोरी का फायदा उठाते थे
और जिनसे वरदान पाते थे,
उन्ही के सर पर चढ़ जाते थे
हिरनकश्यप ने ,तप कर,प्रभु को प्रसन्न किया
और अपने लिए ,एक 'टेलर मेड ',फूलप्रूफ'
वरदान मांग लिया
जिसे पाकर उसका अत्याचार इतना बढ़ा
कि भगवान को ,उसके संहार के लिए ,
नरसिंह का अवतार लेकर आना पड़ा
द्रौपदी ने भगवान से,
पांच गुण वाले पति का माँगा था वरदान
पर जब नहीं मिला एसा कोई इंसान
तो भगवान ने अपना वरदान पूरा करने के लिए
उसे अलग अलग गुणवाले ,पांच पति दे दिए
कुंती को मिला था वरदान
कि   वो करेगी जिसका ध्यान
वो सामने प्रकट हो जाएगा
और उसे पुत्रवती बनाएगा
गर नहीं होता उसके पास ये वरदान मनोरथ का
तो न पांडव होते ,न कर्ण ,
और न युद्ध होता महाभारत का
तो इसतरह अपने वरदानो का दुरूपयोग ,
और प्रतिफल देख कर
तीनो देवताओं ने आपस में मिल कर
एक ये जरूरी फैसला लिया है
कि आजकल ,वरदान देने पर ,प्रतिबन्ध लगा दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मच्छरों का प्रतिशोध

          मच्छरों का प्रतिशोध

मच्छर ,भगवान  के पास,
लेकर गए एक डेपुटेशन 
और दिया ये  रिप्रेजेंटेशन
कि प्रभो !जैसे आपने बनाया है इंसान ,
वैसे ही हम भी है आपके क्रियेशन
पर आपने हमें इतना कमजोर क्यों बनाया है
ये कैसा जुलम ढाया है
 आदमी जब  चाहे  हमें मसलता है
हमारा कोई बस नहीं चलता है
कभी 'कछुवा' जलाता है ,कभी 'हिट 'छिड़कता है
हमें मिटाने की हर कोशिश करता है
यदि ऐसे ही चलता रहा हमारा कतल
तो ख़तम ही हो जायेगी हमारी नसल
हे प्रभु ,हम भी क्रियेशन है आपके
हमें ऐसी शक्ति दो ,कि हम इंसान से,
अपने खून का बदला ले सकें
भगवान ने उनकी बात ध्यान किया
और उनको,एक नयी शक्ति  का वरदान दिया
एक लीडर मच्छर को बोला ,
आज से तुम मलेरिया के मच्छर कहलाओगे
वो इंसान,बिमारी से होगा परेशान ,
जिसे तुम अपना डंक चुभाओगे
दूसरे मच्छर से बोला ,तुम होगे और भी ताक़तवर
तुम कहलाओगे ,'डेंगू' के मच्छर
तीसरे  मच्छर से बोला ,जो तेरा चुम्बन पायेगा
उसे 'चिकनगुनिया' हो जाएगा
इन सभी बीमारियों से इंसान  काफी क्षति पायेगा
और तुम्हारा प्रतिशोध पूरा हो जाएगा
भगवान के मच्छरो के दिए वरदान का ,
नतीजा आज इंसान झेल रहा है
हर तरफ ,मलेरिया,डेंगू और
 चिकनगुनिया फैल रहा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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