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सोमवार, 30 सितंबर 2013

पुनर्मिलन

      पुनर्मिलन

निवेदन तुमसे प्रणय का
भाव था मेरे ह्रदय का
प्रकट जो मैंने किया था
झटक बस तुमने दिया था
और फिर रह अनमने से
गर्व से थे पर तुम सने से
आपने ये क्या किया था
निवेदन ठुकरा दिया था
अगर तुम जो ध्यान देते
बात मेरी मान लेते
प्रीत की बगिया महकती
जिंदगानी थी चहकती
पर नहीं एसा हुआ कुछ
चाह  थी,वैसा हुआ  कुछ
आपने दिल तोड़ डाला
मुझे  तनहा छोड़ डाला
आज हम और तुम अकेले
कब तलक तन्हाई झेले
आओ फिर से जाए हम मिल
दूर होगी सभी मुश्किल
लगे ये जीवन चहकने
प्यार की बगिया महकने
देर पर दुरुस्त  आये
फिर से जीवन मुस्कराये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

फेंकू

         फेंकू

दिल्ली में शेर दहाड़ा
तो सत्तारुढो ने  ताड़ा
मोदी आया पोस्टर फाड़
देगा सबको फेंक ,उखाड़
इसीलिए पोस्टर लगवाया
आया आया ,फेंकू  आया

घोटू

इन्टेरियर

              इन्टेरियर

एक ज़माना होता था जब हम ,
अपने दिवंगत पुरखों को करते थे याद
श्रद्धानत होकर के ,करते थे श्राद्ध
अपने घरों में उनकी तस्वीर टांगा  करते थे
पुष्पमाला चढ़ा ,आशीर्वाद माँगा करते थे
पर आज के इस युग में
ढकोसला कहलाती है ये रस्मे
नयी पीढी ,अक्सर ये तर्क करती है
ब्राह्मण को भोजन कराने  से,
दिवंगत आत्मा को,तृप्ति कैसे मिलती है
आजकल के   सुसज्जित घरों में ,
दिवंगत पुरखों की कोई भी तस्वीर को,
नहीं लटकाया जाता है
क्योंकि इससे ,घर का,
 'इन्टेरियर 'ही बिगड़ जाता है
सच तो ये है कि पाश्चात्य संस्कृति का,
रंग आधुनिक पीढी पर इतना चढ़ गया है
कि इस भौतिकता के युग में,
उनका 'इन्टेरियर'ही बिगड़ गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 29 सितंबर 2013

mere patne by akhand gahmari

वो कहती है हम उनके दिल अजीज है
जान है वो हमारी हम उनकी जान है
उमड पडा उनका प्‍यार एक दिन
कर दिया निहाल प्‍यार से अपने एक दिन
क्‍या बताउू यारो कैसे किया प्‍यार एक दिन
झाडू मार कर जगाया कुत्‍ते की तरह
घर की सफाई करवायी महरी की तरह
मजवाया बर्तन हमसे कुछ यू इस तरह
पटक कर बर्तन बोली हिटलर की तरह
जानू बर्तन चमकाना बिम बार की तरह
उनके जानू कहने पर जोश था आया
बर्तन क्‍या बतर्न के वाप को चमकाया
चल पडा ये सोच कर करके स्‍नान
करूगा मैटम केा प्‍यार एक मजनू की तरह
लगा ग्रहण मेरे प्‍यार केा चॅाद की तरह
कपडेा की गठरी ले प्रकट हुई भत की तरह
कपडे धुलवाये,खाना बनवायी बास की तरह
हो गया पसीने लतपथ मैं
बैठा पंखे की नीचे मजदूर की तरह
तभी आकर पसर गयी सोफे पर जल्‍लाद की तरह
मेरे माथे पर अपना हाथ प्‍यार से फेर दिया
कोई काम ठीक से नही करते हेा
कह कर सेडिल से हमें पीट दिया
फिर बडे प्‍यार से पास बुलाया
बोली जानू तुम बडे अच्‍छे हेा
कितना प्‍यार करते हेा
आई लव यू कहती हू तुम लव टू ये बोलो जरा
फिर वह हसते हुए बोली जानू
क्‍या करती जानू आज महरी नहीं आयी थी
और मैं 5लाख रूपया दहेज में लेकर आयी थी
मेरे परम ससूर जी ने मेरे पापा से कहा था
बेटी 5 लाख लेकर जायेगी तेा सुख से रहेगी
पाव जमीन पर नहीं पडेगें उसे कामो से रहेगी
अब तुम ही बताओ जानू कैसे मिलता सुख
महरी नही आयी थी इस लिये करना पडा आपको
मैने सोचा सही है अखंड 5 लाख लेकर आयी
डाडू पोछा करने लिये,5 लाख में उसने खरीद लिया
बिक गया है हर इंसान दहेज की लालच में
जल रही दहेज की आग में लडकी लकडी की तहर
अगर मेरी बीबी ने काम ही करनवा महरी कती तरह
तो क्‍या गम है मैं उका जानू और वह मेरी जानू है
5 लाख में बिका हुआ एक खुशनसीब मजदूर हू
अखंड गहमरी

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें
                       १
                  झपकी
दिन भर के काम की थकावट
पिया से मिलन की छटपटाहट 
जागने का मन करे ,नींद आये लपकी
                                        झपकी
                    २
             खर्राटे
अधूरी कामनाये ,दबी हुई बांते
जिन्हें दिन में हम ,बोल नहीं पाते
रात को सोने पर ,निकलती है बाहर
                         बन कर खर्राटे
                      ३
             उबासी 
चूम चूम बार बार ,बंद किया मुंह द्वार
निकल ही नहीं पायी ,हवाएं बासी
उठते जब सोकर ,बेचैन होकर ,
निकलती बाहर है ,बन कर  उबासी
                       ४
              अंगडाई
प्रीतम ने तन मन में ,आग सी लगाई
रात भर रही लिपटी ,बाहों में समायी
प्रेम रस लूटा ,अंग अंग टूटा ,
उठी जब सवेरे तो आयी अंगडाई

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ओरेंज काउंटी -दिल से

         ओरेंज काउंटी -दिल से *

यह है एक संतरा
मधुर रस से भरा
संग पर अलग अलग ,है इसकी फांके
ये प्यारा ,परिसर
है पंद्रह  टावर
रहें सभी मिलजुल कर ,रिश्तों को बांधे
एक है परिवार
बरसायें मधुर प्यार
हर दिन हो त्योंहार ,सुख दुःख सब बांटे
साथ साथ,संग संग
बिखराएँ प्रेमरंग
जीवन में हो उमंग,हँसते ,मुस्काते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
*THE RESIDENTIAL COMPLEX,WHERE I LIVE

शनिवार, 28 सितंबर 2013

छोटी सी प्रेमकथा छोटा सा विरहगीत

             छोटी सी प्रेमकथा

वो  आये ,मुस्कराये
हम मिले और खिलखिलाये
मिलन ने ये गुल खिलाये
पका खाना वो खिलाये
और हम बच्चे खिलाएं

          छोटा सा विरहगीत

आप वहाँ ,हम यहाँ ,
इतनी दूर और ऐसे
बीरबल की खिचडी ,
पके तो कैसे?

घोटू

चांदनी छिटकी हुई है ..

        चांदनी छिटकी हुई है ..

चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
                   बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना   
वृक्ष जैसा खड़ा मै  बाहें पसारे ,
                   बावरी सी लता जैसी  आ लिपटना
    इस तरह से हो हमारे  मिलन के पल
    एक हम हो जाएँ जैसे दूध और जल
बांह में मेरी सिमटना प्यार से तुम,
                      लाज के मारे स्वयं में मत सिमटना
चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
                      बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
         तुम विकसती ,एक नन्ही सी कली हो
         महक फैला रही,   खुशबू  से भरी हो
भ्रमर आ मंडरायेंगे तुमको लुभाने,
                        भावना के ज्वार में तुम मत बहकना
चांदनी छिटकी हुई  है चाँद मेरे ,
                        बांह से मेरी ,मगर तुम मत छिटकना
            कंटकों से भरी जीवन की डगर है
             बड़ा मुश्किल और दुर्गम ये सफ़र है
होंसला है जो अगर मंजिल मिलेगी ,
                          राह से अपनी मगर तुम मत भटकना
चांदनी छिटकी हुई है चाँद मेरे ,
                            बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शहीदे आजम रहा पुकार

सरदार भगत सिंह
(28 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931)
("शहीदे आजम" सरदार भगत सिंह के जन्म दिवस पर श्रद्धांजलि स्वरूप पेश है एक रचना )

जागो देश के वीर वासियों,
सुनो रहा कोई ललकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

सुप्त पड़े क्यों उठो, बढ़ो,
चलो लिए जलती मशाल;
कहाँ खो गई जोश, उमंगें,
कहाँ गया लहू का उबाल ?

फिर दिखलाओ वही जुनून,
आज वक़्त की है दरकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

पराधीनता नहीं पसंद थी,
आज़ादी को जान दी हमने;
भारत माँ के लिए लड़े हम,
आन, बान और शान दी हमने |

आज देश फिर घिरा कष्ट में,
भरो दम, कर दो हुंकार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

कई कुरीति, कई समस्या,
से देखो है देश घिरा;
अपने ही अपनों के दुश्मन,
नैतिक स्तर भी खूब गिरा |

ऋण चुकाओ देश का पहले,
तभी जश्न हो तभी त्योहार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

भ्रष्टाचार, महंगाई से है,
रो रहा ये देश बड़ा;
अपनों ने ही खूब रुलाया,
देख रहा तू खड़ा-खड़ा ?

पहचानों हर दुश्मन को अब,
छुपे हुए जो हैं गद्दार,
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

लोकतन्त्र अब नोटतंत्र है,
बिक रहा है आज जमीर;
देश भी कहीं बिक न जाए,
जागो रंक हो या अमीर |

चूर करो हर शिला मार्ग का,
तोड़ दो उपजी हर दीवार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

आज गुलामी खुद से ही है,
आज तोड़ना अपना दंभ;
आज अपनों से देश बचाना,
आज करो नया आरंभ |

आज देश हित लहू बहेगा,
आज उठो, हो जाओ तैयार;
जागो माँ भारत के सपूतों,
शहीदे आजम रहा पुकार |

-"दीप"

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

महानगरीय जीवन

     महानगरीय  जीवन

भीड़ ही है भीड़ फैली सब कहीं,
लापता से हो गए ,लगता हमीं
हर तरफ अट्टालिकाएं है खड़ी ,
कहाँ पर ढूंढोगे तुम अपनी जमीं
एक घर पर दूसरा घर चढ़ रहा ,
छू रही इमारतें है आसमां
आदमी से आदमी टकरा रहा ,
है अनोखी ,इस शहर की  दास्ताँ
बसे,ट्रेने ,कार ,मोटर साईकिल ,
यहाँ पर हर चीज ही गतिमान है
जिधर देखो ,उधर भागादौड है ,
नहीं ठहरा  कहीं भी इंसान है
प्रगति की गति ने की ये गती ,
सांस लेने को हवा ना शुद्ध है
हो रही है आदमी की दुर्गती ,
इसलिए हर शख्स लगता क्रुद्ध है
है मशीनी सी यहाँ की जिन्दगी,
सिलसिला यूं नौकरी,व्यापार का
हफ्ते में है छह दिवस ,परिवार हित,
और केवल एक दिन परिवार का
दौड़ता है,रात दिन बेचैन है ,
पेट है परिवार का जो पालता
कहने को तो है ये महानगरी मगर,
नहीं आती नज़र कोई महानता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

एक से भले दो

पता नहीं किसने कहा था
एक से भले दो
अब बेचारे भले बन गए
दो हो गए,
पगड़ी बाँध के ढूंड रहे
इस मुहावरा कहनेवाले को
कोई अगर कह देता
एक से भले दो
तो ऊपर से निचे तक
पूरा बारूद हो जाते है
जब मेरे सामने आते
मै कह देता एक भला
तो एक दम पूँछ पर खड़े
खार खा जाते मेरी किस्मत से
अब न एक भला कह पाता हु
न दो भला कह पाता हु
भला हो मुहावरे वालो का ............अमित

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

प्यार का अंक गणित २+२ =१ या १+१ =३

 प्यार का अंक गणित
   २+२ =१ या १+१ =३

दो आँखे जब दो आँखों से मिलती तो मिल जाते है मन
दो लब जब दो लब से टकराते हैं तो बंध जाता बंधन
दो बाहें जब दो बाहों से बंधती तो होता  आलिंगन
तो फिर ये दो ,दो ना रहते ,एक हो जाते इनके तन मन
ये जीवन का अंक गणित भी ,बिलकुल नहीं समझ में आता 
दो और दो मिल ,चार न बनते,उत्तर सिरफ एक है आता 
साथ समय के ,मधुर मिलन ये ,एक तीसरा प्राणी लाता
एक नया ही समीकरण फिर,एक और एक ,तीन बन जाता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

चार का चक्कर- चार चौके

      चार का चक्कर- चार चौके
                         १
लोग  यह क्यों कहते है कि जिन्दगी है चार दिन
फिर अंधेरी रात होगी ,चांदनी   है चार  दिन
आरजू में कटे  दो दिन,और दो इन्तजार में,
उम्रे दराज मांग के ,लाये थे केवल चार दिन
                         २
चार दिन की बात ये लगती मुझे बेकार है
अमावस को छोड़ कर के ,चांदनी हर बार है
जिन्दगी में सबसे ज्यादा ,हसीं आता दौर तब,
जब हसीना दिलरुबां से ,आँख होती चार है
                       ३
नींद आती चैन से जब,चारपाई पर पड़े
कुर्सियों पर चार पावों की,उमर भर हम चढ़े
और जब रुखसत हुए तो ,चार काँधे ही मिले,
चार के चक्कर में हम तो जिन्दगी भर ही पड़े
                       ४
चार मिलते यार होती जिन्दगी गुलज़ार है
चार खाने चित्त करती आदमी को हार  है
आपके व्यक्तित्व में ,लग चार जाते चाँद है,
चार पैसे आ गए तो लोग करते प्यार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

परिवर्तन

         परिवर्तन

शिखर ,
जो कभी ज्वालामुखी बनकर
वासना की आग को धधकाते है
समय के साथ ,
वो ही दिनरात
वातसल्य की गंगा यमुना बहाते है
जब भी आता है नवजीवन
लाता है कितने परिवर्तन

घोटू

aajo hmar yad ba by akhand gahmari

डुबुकिया बगिया में खेली कबडीया
आज ले हमरा याद बा
मठीया केण्‍ण्‍ण्‍ उ दौराई
आज ले हमरा याद बा
तीरे जा के उपरा से कूदी
बाबा के पौरावल याद बा
जाई सिवना गईया दूहल
आज ले हमारा याद बा
गउवा के कौनो मुरना होखे
नाइया खेवल याद बा
हाका बाजी पर झिझरी खेलल
आज ले हमारा याद बा
कौनेा बतइयिा पर हमरा के
बाबू के मरईया याद बा
जाके लुकाई आजी के पिछवा
आज ले हमारा याद बा
मेलवा देखे के खातिर बाबा के
दिहल 10 पैइसवा याद बा
हाफ पजामा पहीन के हाई स्‍कूलीया
में गइल आज ले याद बा
गउवा के जरीह स्‍कूलीय में
5 ले पढका याद बा
कैसे मारस बंशीधर उ
आज ले हमारा याद वा
साझ रोज गमछी में लेके
दनवा खाइल याद बा
दुअरा पर बैठ के बाबा के पीयल
हुक्‍का आज ले याद बा
बैठ के माई के उ चुलिहा तर
रोटीया सेकल याद बा
रसता निहोर प्रेम से मातल
अखिया हमारा याद बा
केतना बताइ ये अखंड बचवा
का का हमरा याद
अब कहवा मिली अब कैसे मिली
जौन जौन हमरा याद बा
गइल जमाना कबो ना लौटी
याद में बस रहजाइ उ
रहे हमर गॅाव सलामत
अखंड के सबके प्रणाम बा

बुधवार, 25 सितंबर 2013

धन्यवाद- टी .वी .का

            धन्यवाद- टी .वी .का 

पचास साल पहले ,जो बहुएँ थी ,आज वो सास है
कल भी उदास थी ,आज भी उदास है
क्योंकि तब वो सास से डरती थी ,
और अब बहू से डरती है
तब भी घर का सब काम करती थी ,
अब भी घर का सब काम करती है
पहले पति के प्यार में,
और अब बच्चों के दुलार में ,
तब भी पिसा करती थी ,अब भी पिसा करती है
और फिर भी मुंह से ,चूं तक नहीं करती है
पर एक बात है ,पहले सास बहू ,
दोनों के बन जाते थे ,अलग अलग खेमे
और रोज हुआ करती थी,तू तू,मै मै
पर आजकल ,भले ही ,वो दोनों रहती संग है
तो भी ,उन दोनों की,तू तू,मै ,मै ,बंद है
मेरे विचार से ,इस परिवर्तन का सारा श्रेय ,
टी .वी .के सीरियलों को जाता है
जिनमे ये इतनी उलझी रहती है ,
कि एक दूसरे की टांग खींचने का ,
समय ही कहाँ मिल पाता है
हे टी .वी .महाराज ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया है
आपने ,अधिकतर घरों में ,
सास बहू के झगड़ों को ,बहुत कम  कर दिया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन- चार दिनों का या महीने भर का

  जीवन- चार दिनों का या महीने भर का

बड़े भाग्य से प्राप्त हुआ है ,यह वरदान हमें इश्वर का
चार दिनों का नहीं दोस्तों,ये जीवन है महीने भर का
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को,जैसे होता है चंद्रोदय
वैसे ही तो इस जगती में ,होता है जीवन का उद्बव
बढ़ता जाता चाँद दिनोदिन ,पूर्ण विकसता ,आती पूनम
वैसे ही विकसित होता है जीवन, पूनम मतलब यौवन
फिर होता है क्षीण दिनोदिन,चालू होता घटने का क्रम
जैसे आता हमें बुढापा ,और जर्जर होता जाता तन
हो जाता है लुप्त एक दिन ,आती है जिस तरह अमावस
कभी उसे ढक  लेते  बादल,लेते कभी राहु केतु  डस
सारा जीवन रहो चमकते ,तम हर लो धरती ,अम्बर का
चार दिनों का नहीं दोस्तों ,ये जीवन है महीने भर का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 24 सितंबर 2013

तू सृजन की शक्ति

तू सृजन की शक्ति 
मै जगत का आधार 
ये संसार आधा तेरा 
ये संसार आधा मेरा 

मै दिन का दीवानापन 
तू रात की सुख चैन 
ये सुख दुःख आधे तेरे 
ये सुख दुःख आधे मेरे 

मै दुखो में बहता अमृत 
तू ख़ुशी से बहती आंसू
ये आंसू आधे तेरे 
ये आंसू आधे मेरे 

तू बागो की मोहक खुशबु 
मै खुशबु का फुल 
ये गुलशन आधा तेरा 
ये गुलशन आधा मेरा 

...............अमित

बेतुकी रचना

सूरज की तपिश,चाद की शीतलता
चॉद की चादनी में निखरता चेहरा
दिन के उजाले में उभरी प्रतिभा की बाते
की बात करता एक कव‍ि है

शब्‍दो केा मालो में पिरोता कवि
फिॅर भी गुमनामी की जिन्‍दगी जीता कवि है
गुमसुम उदास आखेा में हसीन सपने दिखाता कवि है
भागभाग की जिन्‍दगी में सकून के पल देता कवि है

फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता कवि है...
रोते हुए चेहरे को हसाता एक कवि है
जिन्‍दगी से हारे हुए को हौसला देता कवि है
फिर भी गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कवि है

प्रेम की परिभाषा बताता कवि है
दिल का दर्द दिल की बाते बताता एक कव‍ि है
हर शख्‍स को आइना दिखता है एक कव‍ि है
फिर गुमनामी की जिंन्‍दगी जीता एक कव‍ि है

चंद सिक्‍को का भूखा नहीं है कवि अखंड
सम्‍मान का मोहताज नहीं है कवि
कवि तो बस भूखा है दशाहीन ,दिशाहीन समाज को
दशा और दिशा देने का,भटकते समाज केा सुधारने का 

अखंड को हसाने का दुख और भागमभाग के दौर में
दो पल आपको सूकून के देना का
यह सब केवल सोचता एक कवि है मगर आज भी
गुमनामी की जिन्‍दगी जीता एक ''''''''''''''''

बेटी काहे भईल पराई


लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई
कइ देहलन कन्‍यादान बाबू 
भईया लौआ देइलस मिलाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

नौ महीनवा रहनी तोरा खोखिया में माई 
बधनी रखीवा हम भइया तोरा कलाई 
इस सभे बतीया कैसे हम भूलाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

सास ससुर देवर ननद के करी सेवकाई 
पति के हम देवता बूझी ओकरो करी सेवकाई 
भले देई डाल किरासन उ हमके जराई 
बैईठत डोली इहे बतउलस हमार माई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई |

इंदिरा गाधी,किरण बेदी,कल्‍पना चावला 
केतना नाम हम बताई इहो सब त बेटीये रहली 
देहली कुल के नाम चमकाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई |

बेटी ना करी अब खाली चौका बरतन 
ना रही अब बन के खाली दाई 
तोरा बेटवन से भी आगे 
जा के नाम आगे नाम कमाई 
लगते सिंदूरवा बेटी काहे भईल पराई | 

नइखे अब अब कौनो अन्‍तर 
नहीरा ससुरा में ए माई 
कुल के दीपक बेटवे ना 
बेटीओ अब कहाई | 

बेटवे ना जरीई हे अब कुल के दीपक 
अखंड बेटीयो अब जराई 
लगते सिंदूरवा ये माई 
बेटी ना होई पराई | 

सास ससुर मरदा के संगें 
नमवा तोरे आई ये माई 
चढते डोलीया ये अखंड भईया 
बेटीया ना होई पराई |

अन्दर की बात

         अन्दर की बात

सुन्दर ,स्वच्छ ,धवल वस्त्रों में ,नेताजी की भव्य छटा है
पर अन्दर की बात  यही है ,कि इनका बनियान  फटा है
मत जाओ इनकी बातों पर ,ये कहते कुछ,करते कुछ है,
घोटाले और स्केंडल में , इनका  कार्य काल   सिमटा  है
कभी किसी के नहीं हुए है ,बस अपना मतलब साधा है,
दम है जिधर,उधर ही हम है ,कह करके  पाला पलटा है
कोई कितनी भी गाली दे ,इनको फरक नहीं पड़ता है,
लेकिन अपनी स्वार्थ सिद्धी से ,कभी न इनका ध्यान हटा है
देश हमारा प्रगति शील था,इनने  शील हरण कर डाला ,
दुराचार के आरोपों से ,इनका अंग अंग  लिपटा है
शौक बहुत मख्खनबाजी का ,लगवाते है और लगाते,
घिरे रहे चमचों,कड़छों से ,अब तक जीवन यूं ही कटा है
जब से राजनीति में आये ,पाँचों ऊंगली घी में रहती ,
बस केवल करना पड़ता है,दंद फंद  उलटा सुलटा  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चाशनी

                चाशनी

पानी को ,चीनी के साथ,
जब गर्मी देकर उबाला जाता है
एक मधुर ,रसीला तरल पदार्थ बन जाता है ,
जो चाशनी कहलाता है
और ये चाशनी जिस पर भी चढ़ जाती है
उसका स्वाद और लज्जत ही बदल जाती है
फटा हुआ दूध भी ,
जब इस चाशनी में उबाला जाता है
रसगुल्ला बन जाता है
और ओटे हुए दूध की गोलियां तल कर,
जब इसमें डाली जाती है
गुलाब जामुन बन जाती है
 सड़ा  हुआ मैदा ,जब अटपटे ,उलटे सीधे ,
उलझे हुए आकारों में तल कर,
जब इसका रस पी लेता है
जलेबी बन कर ,गजब का स्वाद देता है
मैदा या  बेसन,जब अलग अलग आकारों में ,
इसका संग पाते है
तो कभी घेवर ,कभी फीनी ,
कभी बालूशाही बन जाते है  
सिका  हुआ आटा ,सूजी,या पीसी हुई मूंगदाल,
जब इसके संपर्क में आती है
तो हलवा बन कर लुभाती है
ये सारे रसासिक्त व्यंजन
भूख जगाते है और मोहते है मन
पर मुझे इन सबसे ज्यादा ,
लगती है मनमोहक और लुभावनी
तेरा मदभरा प्यार और तेरे रूप की चाशनी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


एक चुप्पी

एक चुप्पी, 
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ है ,
तुम्हारे इतने करीब होकर भी 
बेशुमार दूरियाँ है ;

बाते तो कहने को हजार है 
लेकिन कैसी मजबुरियाँ है 
तुम्हारे लफ्ज, 
मेरे लफ्जो पे संवर भी नहीं पाते है 
क्यों शब्द बिखर-बिखर रह जाते है |

जुबान पे आते आते ऐसा क्यों 
जज्बात आँखों से
पिघल पिघल के गिर रहे है 
ऐसा लगे बरसो बाद 
बिछड़े दिल मिल रहे है ...

सोमवार, 23 सितंबर 2013

मन-वृन्दावन

     मन-वृन्दावन

हमारे पड़ोस के प्रोढ़ होते हुए एक सज्जन
हर महीने दो महीने बाद
अपनी पत्नी के साथ
चले जाते  है वृन्दावन
एक दिन हमने उनसे पूछ लिया श्रीमान
दे दो हमको थोडा सा ज्ञान
वो ही मंदिर है ,वो ही मूरतें है
पंडित,पुजारी,धर्माचार्यों की ,वो ही सूरतें है
और जहाँ तक हमें ज्ञान है
हर जगह मौजूद रहते भगवान है
अगर सच्ची भावना से देखो,
तो हर मूर्ती में प्राण है
आपके घर में भी ,राधा कृष्ण की मूरत है
तो हर महीने आपको ,
वृन्दावन जाने की क्या जरूरत है
उन्होंने हमसे मुस्करा कर पूछा
आप  कभी वृन्दावन गए है क्या ?
वहां के चप्पे चप्पे में,बसते घनश्याम है
और हर गली में गूंजता राधा का नाम है
 पूरा वृन्दावन ,राधा कृष्ण मय लगता है
वहां का वातावरण ,
उनके प्यार की,खुशबू से महकता है
वहां के प्रेममय वातावरण की ,हवाओं मे
लेकर तो देखो ,कुछ साँसे
ढलती उमर के साथ ,आपका ढलता प्यार
भी पुनर्जीवन पा जाएगा
आपकी पत्नी को आप कृष्णमय लगेंगे ,
और आपको पत्नी में राधा का रूप नज़र आयेगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 22 सितंबर 2013

रितु चुनाव की आयी

         घोटू के पद
रितु  चुनाव की आयी

सखी री ,रितु चुनाव की आयी
मनमोहन ने ,दस वर्षों में ,दुर्गत बहुत बनाई
बेटे को मिल जाए सिंहासन ,चाहे सोनिया माई
बन मुंगेरीलाल ,देखते ,सपन ,मुलायम  भाई
बिल्ली बन ,छींका टूटन की ,आस नितीश लगाई
मौके पर ही ,वार करेंगे,कहे  पंवार  मुस्काई
नमो नमो नारायण की रट ,नारद रहे लगाई
पांच बरस में ऐसी लीला,'घोटू' पड़े  दिखाई
सखी री,रितु चुनाव की आई
 घोटू

किस मुंह माने वोट

   घोटू के पद

किस मुंह माने वोट

अब हम,किस मुंह मांगे वोट
पांच बरस तक,मौज उडाई,करके लूट खसोट
बहुत किये घोटाले हमने ,खूब कमाए नोट
बार बार मंहगाई बढ़ा  कर,करी चोंट पर चोंट
सारे वोटर जान गए है,हम में है कुछ  खोट
एक बार ,फिर से सत्ता में ,मुश्किल आना ,लौट
'घोटू'अब तो,नमो नारायण ,बिठा रहा है गोट
अब हम ,किस मुंह मांगे वोट
घोटू

हे भगवान -दे वरदान

       हे  भगवान -दे वरदान

हे मेरे प्रभू  ,
आजकल कितना बदल गया है तू
मै दिन रात ,
पूरी श्रद्धा और भक्ति  के साथ
तेरे पूजन में रहा लगा
रतजगों में पूरी रात जगा
पर आज महसूस कर रहा हूँ ठगा
क्योंकि शायद तूने आजकल,
छोड़ दिया है रखना भक्तों का ख़याल
इसीलिये ,मै  हूँ बदहाल
मुश्किलों से नसीब होते है रोटी दाल
फिर भी रोज तेरे मंदिर जाता हूँ
आपको दो मुट्ठी चांवल  चढ़ाता हूँ
राशन की दूकान से ख़रीदे सुदामा के चांवल
एक बार प्रेम से चबा लो प्रभुवर
और दीनदयाल,मुझे खुशहाल करदो
सुदामा की तरह निहाल करदो
हे प्रभू ,अपने इस परम भक्त का ,
थोड़ा सा तो ख्याल करो
कोई क्रीमी पोस्टिंग ही दिला कर ,
मुझे मालामाल करो
वरना मै आपके चरण पकड़ कर
बैठा ही रहूँगा यहीं पर
मै विनती कर ही रहा था कि ,
मुझे कुछ रोशनी का आभास हुआ
एक दिव्य प्रकाश हुआ
भगवान प्रकट हुए और बोले ,
अब ज्यादा मत खींच मेरी टांग  
बोल तुझे क्या चाहिये,मांग
मै बोला ,प्रभू ,मुझे न चांदी न सोना चाहिए
बस आपका आशीर्वाद होना चाहिए
मै हूँ निर्बल,असहाय
मुझे तो भगवन ,दिला दो एक गाय
मगर वो गाय हो कपिला
जिससे जो भी मांगो ,देती है दिला
जो भी मै चाहूंगा ,वो मुझे दे देगी
प्रभूजी ने टोका ,भक्त ,छोटा सा है तेरा घर
और वो भी सातवीं मंजिल पर ,
वहां गाय कैसे बंधेगी ?
मै बोला ,अच्छा प्रभू ,गाय नहीं ,
तो कल्पवृक्ष ही दिलवा दो ,
जिसके बारे में ये कहा जाता है
उसके नीचे बैठ कर जो भी मांगो,मिल जाता है
प्रभू बोले ,फिर वही पागलों सी बात ,
तेरे  समझ में कब आयेगा
सातवीं मंजिल के छोटे से फ्लेट में,
कल्पवृक्ष  कैसे समायेगा ?
मै बोला 'सॉरी ' प्रभू ,
मै गया था अपनी औकात भूल
और माँगता रहा यूं ही ऊल जलूल
मुझे तो आप एक छोटी सी वस्तु मात्र  दे दो
जो द्रोपदी को दिया था,वैसा अक्षय पात्र दे दो
उसमे जो भी पकेगा ,वो सदा भरा ही रहेगा
मेरे और मेरे आसपास के ,
गरीबों और भूखों का पेट भरेगा
और मेरे छोटे फ्लेट में आराम से रखा जाएगा
इसके पहले कि प्रभू कुछ कहते ,
पत्नी जी ने झिंझोड़ कर जगाया ,
और दूध  का पात्र देती हुई बोली,
सपने ही देखते रहोगे ,तो दूध कौन लाएगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

इक नई दुनिया बनाना है अभी

आज फिर से, एक नया सा, स्वप्न सजाना है अभी,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

कह दिया है, जिंदगी से, राह न मेरा देखना,
खुद ही जाके, औरों पे, खुद को लुटाना है अभी |

साख पे, बैठे परिंदे, हिल रहे हैं खौफ से,
घोंसला उनका सजा कर, डर भागना है अभी |

लग गई है, आग अब, दुनिया में देखो हर तरफ,
बाँट कर, शीत प्रेम फिर से, वो बुझाना है अभी |

जा रहा है, वह मसीहा, रूठकर हम सब से ही,
रोक कर उसका पलायन, यूँ मनाना है अभी |

दिख रहे, सोये हुए से, जाने कितने कुम्भकरण,
पीट कर के, ढोल को, उनको जगाना है अभी |

देखती, माँ भारती, आँखों में लेके, अश्रु-सा,
सोख ले, उन अश्क को, कुछ कर दिखाना है अभी |

राह को हर, कर दे रौशन, रख दूं ऐसा "दीप" मैं,
आज फिर से, इक नई दुनिया बनाना है अभी |

भूल और भूलना

          भूल और भूलना

जन्म देकर तुम्हारा पोषण किया ,
और बनाया वक़्त के अनुकूल है
आज क्यों  तुमने भुलाया है उन्हें,
भूलना उनको तुम्हारी भूल है
सच्चे दिल से प्यार करते है तुम्हे ,
भूल कर माँ बाप को मत भूलना
सूर्य उगता ,चमकता,ढलता भी है,
याद रख,इस बात को मत भूलना
बालपन के पल सुहाने,भोलापन,
भूलना मत ,प्रेमिका के प्यार को
भूल जाना तुम किसी की भूल को,
भूलना मत ,किसी के उपकार को
 दुश्मनी कोई करे तो भुला दो,
भूलना मत दोस्ती का नजरिया
मत भुलाना किसी के अहसान को ,
भूल जाना तुम सभी की गलतियां
भूल जाओ ,अपने सारे गमो को,
कभी खुशियाँ,कभी गम,जीवन यही
ख्याल  पल पल जो तुम्हारा रख रहा ,
उस प्रभू को भूलना किंचित  नहीं
याद रखना गलतियां ,जिनने कभी,
सफलता का पथ प्रदर्शित था किया
दूसरों के  दोष  ढूंढो  बाद में ,
पहले देखो खुद में है क्या खामियां
जवानी के जोश में मत भूलना ,
कल बुढ़ापा भी तुम्हे  तडफायेगा
चार दिन की चांदनी है जिन्दगी ,
क्या पता कब मौत का पल आयेगा
भूलना आदर्श मत,उत्कर्ष हित,
किया जो संघर्ष को मत भूलना
मातृभूमी स्वर्ग से भी बढ़ के है,
अपने भारत वर्ष को मत भूलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

विनती -प्रभू से

    विनती -प्रभू से

प्रभू जी तुम क्यों न आते आजकल
अपनी लीलाये दिखाते  आजकल
तरक्की का गज ग्रसित है ग्राह से,
देश को क्यों ना बचाते आजकल
व्यवस्थाये  अहिल्या सी शिलावत ,
पग लगा क्यों ना जिलाते आजकल
उसको आरक्षण तो है दिलवा दिया ,
बैर शबरी के न  खाते आजकल
जनता का है चीर हरता दुशासन ,
चीर ,आ,क्यों ना बढाते आजकल
तुमसे मिलने फीस देता सुदामा ,
दौड़ ,खुद ना द्वार आते  आजकल
सबसिडी चांवल पे तुमने दिलादी ,
खुद न वो चावल चबाते आजकल
पोल्युशन से यमुना मैली हो गयी ,
कहाँ पर हो तुम नहाते आजकल
दे रहे  शिशुपाल कितनी गालियाँ,
चक्र क्यों ना हो चलाते  आजकल
कंस का है वंश बढ़ता जा रहा ,
क्यों न तुम आकर मिटाते आजकल
आओ,तुमको याद ब्रज आ जाएगा ,
लोग सब ,मक्खन लगाते  आजकल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

Compliments; Please read and reply!

Hi,

I got your email from a marketing company, so i decided to let you know about the business opportunity of supplying us raw material from India. I am an employee of a multi-national animal vaccines production company in USA and UK working as the production manager.

There is a raw material which our company always send me to purchase from India. Right now I have been promoted to the post of production manager and the company cannot send me to India again, our director has asked me for the contact of the local dealer in India to enable them send the new purchasing manager to India to purchase the product directly from the dealer in India.

This material can only be found in India and Fiji only but cheaper in India. I want you to act as the dealer. I will present you to the company as the dealer in India where i was purchasing this product; You would now purchase the product from the dealer whom I used to buy from, and supply to our company with you as the direct dealer. After purchase from original seller, you would sell to our new purchasing manager at a higher price. The profit would be shared between you and I. This business is very lucrative and it is continuous.

Your role must be played perfectly and the least I expect from you is betrayal. I don't want my organization to know the real cost of the product for obvious reasons. Kindly revert me if you are interested; Let me know if you can handle this supply.

Get in touch with me through my mail id: poppelmonrad@yahoo.com

Hope to hear from you soon!

Regards,


Poppel Monrad

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

गलती हमी से हो गयी

          गलती हमी से हो गयी

        आपने जो भी लिखा सब ठीक था ,
          पढने में गलती हमी से हो गयी
बीज बोये और सींचे प्यार से,
चाहते थे ये चमन,गुलजार हो
पुष्प विकसे ,वृक्ष हो फल से लदे,
हर तरफ केवल महकता प्यार हो
          वृक्ष लेकिन कुछ कँटीले उग गये ,
           क्या कोई गलती जमीं से हो गयी
पालने में पूत के पग दिखे थे ,
मोह का मन पर मगर पर्दा पड़ा
उसी पग से लात मारेगा हमें ,
और तिरस्कृत करेगा होकर बड़ा
            पकड़ उंगली ,उसे चलना ,पग उठा,
             सिखाया ,गलती हमी से हो गयी
हमने तो बोये थे दाने पोस्त के,
फसल का रस मगर मादक हो गया
गुरूजी ने तो सिखाया योग था,
भोग में पर लिप्त साधक हो गया
               किस पे अब हम दोष आरोपित करें,
                कमी, कुछ ना कुछ, कहीं से हो गयी  
देख कर हालात  सूखी  धरा के ,
हमने माँगी थी दुआ  बरसात की
जल बरस कर मचा देगा तबाही ,
कल्पना भी नहीं थी इस बात की
                थोडा ज्यादा मेहरबां 'वो ' हो गया ,
                भूल कुछ शायद   हमी से हो गयी
                आपने जो लिखा था ,सब सही था,
                पढने में गलती हमीं से हो गयी   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 18 सितंबर 2013

दक्षिणा के साथ साथ

    दक्षिणा के साथ साथ

अबकी बार ,जब आया था श्राध्द पक्ष
तो एक आधुनिक पंडित जी ,
जो है कर्म काण्ड में काफी दक्ष
हमने उन्हें निमंत्रण दिया कि ,
परसों हमारे दादाजी का श्राध्द है,
आप भोजन करने हमारे घर आइये
तो वो तपाक से बोले ,
कृपया भोजन का 'मेनू 'बतलाइये
हमने कहा पंडित जी,तर  माल खिलवायेगे
खीर,पूरी,जलेबी,गुलाब जामुन ,कचोडी ,
पुआ,पकोड़ी सब बनवायेगे
पंडित जी बोले 'ये सारे पदार्थ ,
तले हुए है,और इनमे भरपूर शर्करा है '
ये सारा भोजन गरिष्ठ है ,
और 'हाई केलोरी 'से भरा है '
श्राध्द का प्रसाद है ,सो हमको  खाना होगा
पर इतनी सारी  केलोरी को जलाने को,
बाद में 'जिम' जाना होगा
इसलिए भोजन के बाद आप जो भी दक्षिणा देंगे
उसके साथ 'जिम'जाने के चार्जेस अलग से लगेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

छोटी दुनिया-बड़ा नजरिया


छोटी  दुनिया-बड़ा नजरिया
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मैंने पूछा लिफ्ट  मेन से
ऊपर नीचे, नीचे ऊपर
बार बार आते जाते हो
लोगों को अपनी मंजिल तक,
रोज़ रोज़ तुम पंहुचाते हो
छोटे से इस कोठियारे में,
 टप्पा खाते रहते,दिन भर
तुमको घुटन नहीं होती है?
लिफ्ट मेन बोला  मुस्का  कर
सर,ये तो अपनी ड्यूटी है
इससे ही मिलती रोटी  है
इसमें दुनिया दिख जाती है ,
लिफ्ट भले ही ये छोटी है,
हरेक सफ़र में नयी खुशबूए ,
नूतन सुन्दर चेहरे अच्छे
ऊपर नीचे आते ,जाते ,
झूले का सुख पाते बच्चे
 एक दूसरे से मिलने पर,
 हल्लो करते हुए पडोसी
न कोई अपनापन,
न कोई गर्मजोशी
बच्चों के स्कूली बेग थामती हुई
अस्त व्यस्त मातायें,
कोलेज जाने के नाम पर,
पिक्चर का प्रोग्राम बनाटी हुई कन्याये 
अपनी मालकिन की ,बुराइयाँ करती हुये ,
महरियाँ और  नौकर
सुबह सुबह अख़बारों का बण्डल उठाकर,
दुनिया की खबर बाँटने वाले,
न्यूज़ पेपर वेंडर
बहुओं की बुराई करती हुई सासें,
 सासों की आलोचना करती हुई बहुए
अपने पालतू कुत्ते को
पति से ज्यादा प्यार करती महिलाएं
बसों की भीड़ से उतर
पसीने में तर बतर
कुछ थके हारे पस्त चेहरे
अपनी बीबी के आगे भीगी बिल्ली बनते,
बड़े बड़े साहबों के रोबीले चेहरे
शोपिंग कर ढेरों बैगों का ,बोझ उठाये
थकी हुई पर प्रसन्न  महिलायें
हर बार
आती है एक नयी खुशबू की फुहार
विभिन्न वेशभूषाएं
भिन्न भिन्न भाषाएँ
मुझको इस छोटे से घर में
पूरा हिंदुस्तान नज़र आये
कभी बिछड़ों को मिलाता हूँ
कभी जुदाई के दृश्य देखता हूँ
ऊपर नीचे करते करते
मै रोज़ दुनिया के कई रंग देखता हूँ
और आप सोचते है की मुझे घुटन होती होगी
क्योंकि मै एक छोटे से डिब्बे में सिमटा हूँ
मै तो इस छोटे से डब्बे में भी,
खुश रहता हूँ, बड़े चेन  में
मुझे बताया लिफ्ट मेन ने

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हम नूतन घर में आये है

हम नूतन घर में आये है
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नए पडोसी,नयी पड़ोसन
नया चमकता सुन्दर आँगन
नूतन कमरे और वातायन
      ये  सब मन को अति भाये है
       हम नूतन घर में आये है
कोठी में थे,बड़ी शान में
थे जमीन पर ,उस मकान में
आज सातवें आसमान में
        हमने निज पर फैलायें है
        हम नूतन घर में आये है
प्यारा दिखता उगता सूरज
सुदर लगता ढलता सूरज
धूप,रोशनी,दिन भर जगमग
        नवप्रकाश में मुस्काये है
        हम नूतन घर में आये है
तरणताल में नर और नारी
गूंजे बच्चों की किलकारी
 क्लब,मंदिर,सुख सुविधा सारी
          पाकर के हम हर्शायें है
          हम नूतन घर में आये है

झरने,फव्वारे खुशियों के
शीतल,तेज हवा के झोंके
ताक झांक करने के मौके
        इस ऊंचे घर में पायें है
    
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
(यह  कविता मेरे ओरंज काउंटी में
 आने के उपरान्त लिखी गयी है)

विकास की आंधी-पड़ोसियों का दर्द

 विकास की आंधी-पड़ोसियों का दर्द

हमारा छोटा सा घर था,
और उस पर एक छोटी सी छत थी
जहाँ हम सर्दी में ,कुनकुनी धूप का आनंद उठाते थे
 तेल की मालिश कर ,
नंगे बदन को,
सूरज की गर्मी में तपाते थे
और गर्मी की चांदनी रातों में,
जब शीतल बयार चल रही होती  थी,
सफ़ेद चादर पर ,हम दो दो चांदो को निहारते ,
तो तन में सिहरन सी होती थी
पड़े रहते थे ,हम तुम ,साथ साथ
और  मधुचंद्रिका सी होती थी,
हमारी हर रात
पर विकास की आंधी में,
हमारे घरों के आसपास ,
उग आई है,बहुमंजिली इमारते
और बदलने पड़  गयी है,हमें अपनी आदतें
बड़ी मुश्किलें हो  गयी है
हमारी सारी  आजादी खो गयी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

कविता कैसे बन जाती है

       कविता कैसे बन जाती है

तुम अक्सर पूछा करते हो ,कविता कैसे बन जाती है
लो ,मै तुमको बतलाता हूँ, कविता  ऐसे बन जाती है
रातों को नींद न जब आती ,जगता रहता,भरता करवट
जब सपन अधूरे रह जाते , होती है मन में अकुलाहट
कुछ अंतर्मन की पीडायें ,कुछ दुनियादारी के झंझट
तब  उभर उभर कर भाव सभी  ,शब्दों में ढलने लगते झट
होती है मुझे प्रसव पीड़ा , ले जनम कविता आती है
लो मै तुमको बतलाता हूँ ,कविता ऐसे  बन जाती है
इस जीवन के दुर्गम पथ पर,मिलते पत्थर ,चुभते कांटे
अनजान राह पर भटक भटक ,मिलते वीराने ,सन्नाटे
कुछ आते पल तन्हाई के ,जो मुश्किल से ,कटते ,काटे
संघर्षों के उस मौसम में ,जब वक़्त मारता है चांटे
वह चपत ,गाल पर उंगुली की ,जब छाप छोड़ कर जाती है
 लो मै तुमको बतलाता हूँ,कविता ऐसे बन जाती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ऊंचाई का दर्द

            ऊंचाई का दर्द

मेरे मस्तक के हिम किरीट पर ,जब पड़ती है सूर्य किरण
पहले स्वर्णिम आभा देता ,फिर चांदी सा चमके चम चम
फिर ढक लेते मुझको बादल ,मै लुप्त प्राय सा हो जाता
खो जाता है व्यक्तित्व मेरा ,आँखों से ओझल  हो जाता
फिर ग्रीष्म ऋतू का तीक्ष्ण ताप,पिघलाता  मेरा तन पल पल
मै फिर हिम आच्छादित हो जाता ,जब फिर से आती शीत लहर
यह  ऊंचाई , यह  कद मेरा  ,सब करते है  मुझको  आभूषित
वह स्वर्ण मुकुट ,वह रजत मुकुट ,होते मस्तक पर आलोकित 
पर  सर पर हिम की शीतलता ,देती मुझको कितनी सिहरन
मेरा व्यक्तित्व लुप्त करते ,जब मुझे घेरते  मेघ सघन
यह ऊंचाई की पीड़ा है ,यह है ऊंचे कद का प्रसाद
ऊंचे हो,देखो, जानोगे ,तुम ऊंचाई से जनित त्रास
मै दिखता बहुत भव्य तुमको ,पर जाने मेरा अंतरमन
कितनी पीड़ा दायक होती ,है ऊंचाई की वो ठिठुरन 
मेरे मस्तक का हिम किरीट ,दिखता तो बड़ा सुहाना है
पर मुझ पर क्या गुजरा करती ,क्या कभी किसी ने जाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सखी री ,सुन साजन बुढियाये

  घोटू के पद

सखी री ,सुन साजन बुढियाये
सर पर चाँद आन बैठा है ,और गाल पिचकाये
गयी लुनाई सब चेहरे की ,हाथ पाँव झुर्राये
ना तो मीठी बात करत है , और ना मीठा खाये
घुटन और घुटने की पीड़ा ,अब उनको तडफाये
रात न सोये,करवट बदले ,तकिया बांह दबाये
कितने ही दिन बीत गए है ,दाड़ी मुझे गड़ाये
घोटू याद आत है वो दिन,जब हम मौज उडाये

घोटू

सोमवार, 16 सितंबर 2013

दर्द और दवा

         दर्द और दवा

कभी तुम नाराज़ होते ,कभी हो उल्फत दिखाते
दर्द भी देते तुम्ही हो,और तुम्ही मलहम लगाते
कभी खुशियों में डुबोते ,कभी करते गमजदा हो
कभी दिखती बेरुखी है ,कभी हो जाते फ़िदा हो
बताओ ना ,इस तरह तुम,क्यों भला हमको सताते
दर्द भी देते तुम्ही हो ,और तुम्ही मलहम लगाते
कभी तुम नज़रें चुराते ,कभी लेते हो चुरा दिल
और कभी तुम सज संवर के ,दिखाते हो अदा कातिल
कभी तो हो तुम लजाते,और कभी आँचल गिराते
दर्द भी देते तुम्ही हो,और तुम्ही मलहम लगाते
बाँध कर बाहों के बंधन में,हमें जब प्यार करते
जी में जो आये करें हम,इस तरह आजाद करते
हमें पिघला ,खुद पिघलते ,आग हो इतनी लगाते
दर्द भी देते तुम्ही हो ,और तुम्ही मलहम लगाते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्नी जी की किट्टी पार्टी

          पत्नी जी की किट्टी पार्टी

पति जी घर में खा रहे ,रोटी,सब्जी ,दाल
पत्नी फाइव स्टार में ,उड़ा  रही है  माल
उड़ा रही है माल ,सखी संग ,गप्पे मारे
पति जी घर में टी वी देखे,वक़्त गुजारे
कह घोटू ,पत्नी की हुई ,पार्टी किट्टी
खर्च पति का ,पर पलीत है उसकी मिटटी

घोटू

सृजन और विसर्जन

  सृजन और विसर्जन

गणपति बप्पा को ,
बड़े चाव और उत्साह के साथ ,
घर लाया जाता है
श्रद्धा  के साथ पूजा की जाती है ,
प्रसाद  चढ़ाया जाता है
फिर कभी डेड़ दिन,कभी सात दिन ,
कभी दस दिन बाद ,
विसर्जित कर दिया जाता है 
देवी दुर्गा का  भी ,इसी तरह,
वर्ष में दो बार ,नौ दिन तक,
होता है पूजन
और फिर वही नियति,विसर्जन
सृजन और विसर्जन
यही तो है जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

दर्द अपना किसे बांटे

        दर्द अपना किसे बांटे

बढ़ रही दिन ब दिन मुश्किल .दर्द अपना किसे बांटे
किस तरह से दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें
उम्र की इन सीढ़ियों पर चढ़ बहुत इतरा रहे थे
जहाँ रुकते ,यही लगता ,लक्ष्य अपना पा रहे थे
किन्तु अब इस ऊंचाई पर ,शून्य सब कुछ नज़र आता
किस तरह के खेल हमसे ,खेलता है ,ये विधाता
कभी सहला प्यार करता ,मारता है कभी चांटे
किस तरह से दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें
धूप देकर जो लुभाता ,सूर्य गोला आग का है           
चाँद देता चाँदनी पर पुंज केवल राख का है
टिमटिमा कर मोहते मन ,दूर मीलों वो सितारे
सच कहा है ,दूर के पर्वत सभी को लगे प्यारे
बहुत मुश्किल,स्वर्ग का पथ ,हर जगह है ,बिछे कांटे
किस तरह से दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें
लोभ में जीवन गुजारा ,क्षोभ में अब जी रहे है
सुधा हित था किया मंथन,पर गरल अब पी रहे है
जिन्हें अपना समझते थे ,कर लिया सबने किनारा 
डूबते को राम का ही नाम  है अंतिम सहारा
किस तरह हम ,पार भवसागर करेंगे ,छटपटाते
किस तरह हम दिन गुजारें,किस तरह से रात काटें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिंदी को प्रणाम

आता है साल में एक बार
कहते जिसे 'हिंदी दिवस'
क्यों इसे मनाने के लिए
हम सभी होते हैं विवश

हिन्द की बदकिस्मती
हिंदी यहाँ लाचार है
पाती कोई दूजी ज़बां
यहाँ प्यार बेशुमार है

काश! हिंदी भी यहाँ
बिंदी बनकर चमकती
सूर्य की भाँती दमकती
अँधेरे में ना सिसकती

आओ मिलकर लें अहद
हिंदी को आगे लायेंगे
अपनी मातृभाषा को हम
माता समझ अपनाएंगे

शर्म न आये किसी को
अब हिंदी के उपयोग में
मान अब सब मिल करें
हिंदी के सदुपयोग में

हाथ जोड़े करता वंदन
'निर्जन' हिंदी भाषा को
अर्जी है हम आगे बढ़ाएं
राष्ट्रभाषा, मातृभाषा को

र्फ एक दिन नहीं साल का हर दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाएं | हिंदी को सर्वोच्च स्थान देने में सहायता करें | हिन्द में हिंदी की गरिमा बनायें रखें | अपनी मातृभाषा का सम्मान करें | उससे प्रेम करें | अत्यधिक प्रयोग में लायें | हिंदी भाषी बनें | हिंदी में लिखें पढ़ें अच्छा लगता है | सम्मानित और गौरवान्वित महसूस होता है | हिंदी जिंदाबाद | हिन्द जिंदाबाद | भारत माता की जय | जय हो मंगलमय हो |

निशब्द

       निशब्द

जब सामनेवाले की बात का ,आपके पास ,न हो जबाब
या किसी अपने ख़ास से,बहुत दिनों बाद,मिले हो आप
मन में अचानक ही ,बहुत ज्यादा खुशी छा जाए
या किसी अनचाही घटना से ,आपको सदमा लग जाए
किसी सुन्दर ,अलोकिक ,प्रकृती की रचना को देख कर
या अपरिमित सौन्दर्य से लदी ,किसी ललना को देख कर
कोई अजूबा सा हो,आप सहम  कर,हो जाए भोंचक्के
या कोई सुमुखी सुन्दर महिला ,प्रेम का प्रस्ताव रखे
या फिर कोई आपके मुंह में ,पूरा लड्डू ही भर जाए
या  आपका मुख ,किसीके साथ,चुम्बन में लिप्त हो जाए
या फिर आपके मुख में भरा  हो ,तम्बाखू वाला  पान
या छाले ,दांत का दर्द या टोंसिल बढ़ कर करे परेशान
या आपको  मोटी  लाटरी खुलने का समाचार हो मिला  
या ज्यादा सर्दी जुकाम से बैठ गया हो आपका गला
जब ऐसी स्थिति आती या घटना घट  जाती है
कि अचानक ,आपकी सिट्टी पिट्टी गुम  हो जाती है
चाहते हुए भी आप कुछ भी नहीं बोल पाते है
तब,आप अवाक रह जाते,निशब्द हो जाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मै गलत हूँ या सही ?

            मै गलत हूँ या सही ?

मै जानता हूँ ,
श्री गणेश जी को है ये आशीर्वाद
कि हर शुभ काम आरम्भ होता है,
उनके प्रथम पूजन के बाद
फिर भी ,मै जब भी पूजन करता हूँ
पहले शिवजी को चन्दन चढ़ाता हूँ,
फिर गणेशजी का वंदन करता हूँ
क्योकि मेरा मानना है ,
कि पिता प्रथम पूजनीय है ,होते है बड़े
और हर पिता  ये चाहता है,
कि उसका पुत्र ,उससे भी आगे बढे
तरक्की की सीढी चढ़े
उसके बेटे का उससे भी ऊंचा हो स्थान
इसीलिए शिवजी ने दिया होगा ,
गणेशजी को प्रथम पूजा का वरदान
ये उस पिता की महानता थी ,
और इसी महानता के कारण
मै शिव रूपी पिता का पहले करता हूँ पूजन  
इसलिए मै जानना चाहता हूँ यही
कोई मुझे बताये,मै गलत हूँ या सही ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कस लो कमर हे हिंद वासियों !!

कस लो कमर हे हिंद वासियों, हिंदी को चमकाना है,
भारत माँ के माथे की बिंदी में इसे सजाना है । 

अब बेड़ियों से आज़ादी इसको हमें दिलाना है,
जो अधिकार मिला नहीं है, हम सबको दिलवाना है । 

हर कोने में हिन्द देश के हिंदी को पहुँचाना है,
हर हिंदी भाषी को दिल से बीड़ा ये उठाना है । 

संस्कृत की इस दिव्या सुता को जन-जन से मिलवाना है,
भारत को अपनी भाषा में, विकसित करके दिखाना है । 

कमतर नहीं किसी भाषा से, दुनिया को दिखलाना है,
अपने हर आचार, विचार, हर व्यवहार में लाना है । 

अपने दर से दिल्ली तक, सर्वत्र इसे अपनाना है,
कस लो कमर हे हिंद वासियों, हिंदी को चमकाना । 


सभी को हिंदी दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं । 

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

माँ की ममता

    माँ की ममता

ये ममता भी अजब चीज होती है
माँ,अपनी औलाद के लिए हरदम क्यों रोती है
औलाद ,लायक हो या नालायक
बूढी धुंधली आँखों से ,प्रतीक्षा करती रहती है,
वो जब तक ना आये,तब तक
वो बेटा ,जो अपने व्यसन के चक्कर में ,
ले गया था ,उसका मंगलसूत्र छीन कर
उसने कुछ खाया पीया या भूखा होगा ,
इसी चिंता में खोयी रहती है हरपल
उसकी सुख शान्ति की दुआ करती है
रोज जीती है,रोज मरती है
वो बेटा ,जो उसके पति की अंतिम निशानी ,
उसकी चूड़ी,जिस पर सोने का पतरा जडा  था
जिसके लिए वो बहुत दिनों से पीछे पडा था
एक दिन मारपीट कर के छीन ले गया था
और घर को छोड़ कर भाग गया था
वो बेटा ,जिसकी हर हरकत में हैवानी है
जिस का खून हो गया पानी है
उसकी याद में आंसू बहाती है
उसके  लौटने की दुआ मनाती है
इसलिए जब खाना बनाती है
ये सोच कर कि वो कहीं अचानक ,
लौट कर ना आ जाए ,
उसके लिए दो रोटी बचाती है
उसकी याद में दिनरात रोती  है
ये ममता भी अजब चीज होती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

स्कर्ट अवतरण

         {आज राधा अष्ठमी है -राधाजी के और आज के
          फेशन से जुडी एक कल्पना प्रस्तुत है }
                       स्कर्ट अवतरण

          राधारानी भोलीभाली
          बरसाना की रहने वाली
         और दूसरी और कन्हैया
          नटखट थे अति चोर कन्हैया
          फोड़ी हंडिया ,माखन खाते
          चीर हरण करते,छुप जाते
           सब गोपी डरती थी उनसे
           मगर प्यार करती थी उनसे 
          चली होड़ उनमे आपस में
          कौन करे कान्हा को बस में    
           मगर किसी को लिफ्ट नहीं दी
           कान्हा की आदत अजीब थी
           राधाजी का हुआ बर्थडे
           पहने नए नए सब कपडे
           रंगबिरंगी चुनरी अंगिया 
           ऊंची ऊंची पहन घघरिया
           सहम सहम कर धीरे धीरे
            चली खेलने ,जमुना तीरे
             नहां रही  जमुना में सखियाँ
            मगर पडी कान्हा पर अँखियाँ
           बस फिर तो घबराई  राधा
            चीर हरण का डर  था ज्यादा
            नए वस्त्र का ख्याल छोड़ कर
            जमुना में घुस गयी दौड़ कर
            ऊंची घघरी  नयी नयी थी
             'सेन्फ्राइज्ड' की छाप नहीं थी
             जल से बाहर निकली रधिया
              सिकुड़ गयी थी नयी घघरिया
              घुटनों तक ऊंची चढ़  आयी
              पर कान्हा मन इतनी भायी
              कि राधा पर रीझ गए वो
              और प्रेम रस भीज गए वो
              उन दोनों का प्यार छुपा ना
              राज गोपियों ने जब जाना
              शुरू हो गया कम्पीटीशन
              ऊंची घघरी वाला फेशन
              फैला ,अपरम्पार हो गया
              और स्कर्ट  अवतार हो गया   
 
 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

अखिंया ,चंचल शोख बड़ी

              घोटू के पद
अखिंया ,चंचल शोख बड़ी
बेसुध,बेकल दीवानी है,साजन संग लड़ी
देखा करती पिया मिलन के ,सपने घडी घडी
कभी हवा का झोंका बन कर ,आँचल को लहराती
तितली सी जाती उड़ उड़ कर ,आसपास मंडराती
कभी भ्रमर सी गुंजन करती ,चुम्बन कर रस पीती
मधु मख्खी सी,मधु संचित कर ,मिलन आस में जीती
घर और द्वारे,राह निहारे .पिय  की  खड़ी खड़ी
देखा करती ,मधुर  मिलन के,सपने घड़ी घड़ी
अँखियाँ ,चंचल ,शोख  बड़ी

घोटू 

क्रीम ही क्रीम

    क्रीम ही क्रीम

आजकल जिधर देखो ,उधर ही क्रीम है
क्रीम सबसे बढ़ कर सुप्रीम है
दूध को तेजी से मथने पर ,
एक लेयर ऊपर आती है
जो बजन में हल्की होती है ,
क्रीम कहलाती है
हमारे देश में भी एक लेयर ,
जो रहती है सबसे ऊपर ,
क्रीमीलेयर  कहलाती है
उसकी मानसिकता भी अक्सर ,
हल्की ही पायी जाती है
मिनिस्टरी में कुछ क्रीमी पोर्टफोलियो होते है
ऑफिस में कुछ क्रीमी पोस्टिंग होती है
जहाँ पर क्रीम ही क्रीम है और मिलते मोती है
आजकल क्रीम खूब  लगाई भी जाती है
 और चाव से  खायी भी जाती है
इस श्रेणी में ,फ्रूट क्रीम है ,आइसक्रीम है
केक हो या पेस्ट्री ,क्रीम ही क्रीम है
क्रीम खाने का स्वाद बढ़ा  देती है
काली दाल को ,माखनी दाल बना देती है
क्रीम,पूरा करती है आपकी सुन्दरता का ड्रीम
बस चेहरे पर लगालो ,व्हाइटनिग  क्रीम
बालों को रंगने के लिए क्रीम है ,
तो ब्लीच करने के लिए भी क्रीम
बालों को सजाने को बिलक्रीम है ,
तो हटाने को हेयर रिमूविंग क्रीम 
क्रीम काले रंग को गोरा बना देता है
गालों पर गुलाबी रंगत ला देता  है
 आपके होंठों पर मुलामियत लाता है
आपके रूप को कमल सा खिलाता है
सीने के उभार के लिए क्रीम है
देर तक प्यार के लिए क्रीम है
आपको मोटापा बढ़ाना है,क्रीम खाइए
आपको मोटापा घटाना है ,क्रीम लगाइए
विवाई फटे तो क्रीम
चोंट लगे तो क्रीम
सर या बदन में दर्द हो तो क्रीम
मौसम ज्यादा सर्द हो  तो क्रीम
शेविंग करने के लिए ,शेविंग क्रीम
दांतों की सफाई के लिए ,डेंटल क्रीम
एंटी रिंकल क्रीम लगा कर ,चेहरे की झुर्री हटाइए
ताजगी और सुन्दरता के लिए,
ब्यूटीक्रीम मिले हुए साबुन से नहाइए
तन के दागों को मिटाने के 'नो मार्क 'क्रीम आता है
चेहरे पर मोती सी चमक या स्वर्णिम आभा के लिए ,
भी स्पेशियल क्रीम लगाया जाता है
कहीं क्रीम में नीम है ,कहीं हर्बल क्रीम है
कहीं बोरोप्लस है,कहीं बोरोलीन है
हर जगह,हर जरुरत के लिए ,क्रीम ही क्रीम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



 

सत्संगी दोहे

    सत्संगी दोहे
           १ 
स्वर्णपात्र में उबाला ,आओ पीयो दुग्ध
फिर हमतुम सत्संग करें,तनमन दोनों शुद्ध
               २
खाकर गोंद पलाश का,आता ऐसा  जोश
लगे दहाड़े मारने ,शेर बने  खरगोश
                ३
लाज शरम सब छोड़ दो ,अब इसका क्या काम
तुम कोमल खिलती कली ,मै हूँ  आसाराम

घोटू 

दिनचर्या - बुढ़ापे की

    दिनचर्या - बुढ़ापे की

रात बिस्तर पर पड़े ,जागे सुबह,
                      सिलसिला अब ये रोजाना हो गया है
आती है,आ आ के जाती है  चली ,
                       नींद का यूं  आना  जाना  हो गया  है
     हो गए कुछ इस  तरह हालात है
                            मुश्किलों से कटा करती रात  है
 देखते ही रहते ,टाइम क्या हुआ ,   
                             चैन से सोये  ज़माना हो गया है   
आती ही रहती पुरानी याद है,
                               कभी खांसी तो कभी पेशाब है ,
कभी इस करवट तो उस करवट कभी,
                                 रात भर यूं तडफडाना हो गया है
सुबह उठ कर चहलकदमी कुछ करी ,
                                 फिर लिया अखबार ,ख़बरें सब पढ़ी ,
बैठे ,लेटे , टी .वी देखा बस यूं ही,
                                 अब तो मुश्किल ,दिन बिताना हो गया है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

मै लम्बोदर हूँ,नेता हूँ

   मै  लम्बोदर हूँ,नेता हूँ

मै इस गणतंत्र में ,प्रथम पूजनीय हूँ ,
विनायक नहीं,नायक हूँ
रिद्धि सिद्धि ,मेरे आसपास,
 करती है वास ,इतना लायक हूँ
मेरे खाने के और दिखाने के दांत अलग है 
ये बात जानता सारा जग है
करोडो के घोटालों के बाद भी ,
नहीं भरता है मेरा उदर
इसीलिये मै हूँ  लम्बोदर
दिखावे को ,मुझ पर पत्र,पुष्प चढ़ाया जाता है
मुझे    डायिबिटीज है,पर मोदक मुझे भाता  है
मै सूंड से नहीं उठाता ,
चमचों  के जरिये खाता हूँ
भारत भाग्य विधाता हूँ,रोज पूजा जाता हूँ
मेरे वाहन चूहे ,दिखने में छोटे नज़र आते  है
पर मौक़ा पड़ने पर ,
घोटालों से जुडी  फाइलों को,
कुतर कुतर कर खा जाते है
मै विध्नहर हूँ,देश का नेता हूँ
मेरी पूजा करो,प्रशाद चढ़ावो ,
आपके सारे विघ्न हर लेता हूँ
आपके हर काम सिद्ध कर सकता हूँ,
मै वो महारथी हूँ
मै  इस गणराज्य का नेता हूँ,गणपति हूँ

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 9 सितंबर 2013

अपने-सपने

      अपने-सपने

कौन कहता है कि सपने
नहीं होते है अपने
सपने इतने अपने होते है कि ,
आपसे मिलने रात को आते है
जैसे आपके के ख़ास अपने ,
आपसे मिलने ,रात को आते है
सपने देखना ,एक अच्छी बात है ,
इससे मन की चाह अभिव्यक्त होती है
प्रगती की राह ,प्रशस्त होती है
हमने आजादी के सपने नहीं देखे होते,
तो क्या देश आजाद हो पाता
हम चाँद पर नहीं पहुँच पाते,
अगर चाँद पर जाने का सपना ना देखा जाता
क्योंकि जब तक सपने नहीं होते,
तब तक उन्हें पूरा करने के प्रयत्न भी नहीं होते
सपने साकार करने के लिए ,
करनी पड़ती है मेहनत 
तभी सपने बनते है हकीकत
सपना तब टूटता है
जब प्रयास करते करते ,हमारा धीरज टूटता है
जिसे अच्छी नींद आती है,सपने आते है 
अच्छी नींद,चिंतामुक्त व्यक्ति  को आती है
जो मेहनत  करके ,थक कर सोता है
सपने उसी को आते है
और मेहनती आदमी  के ,सारे सपने सच हो जाते है
क्योंकि मेहनत और लगन से किया गया प्रयास
हमेशा सफलता देता है,नहीं करता निराश
मेरी ही बात ले लो,
मैंने जब पहली बार प्यार किया
तो उस हसीं नाजनीन के सपने देखना शुरू किया
और फिर उसे पाने का भरसक प्रयास किया
औए ये मेरी खुशनसीबी है
कि वो आज मेरी बीबी है
अगर मन में हो सच्ची लगन
तो पूरे होते है सपन
मै इसीलिये कहता हूँ,खूब सपने देखो
और उनको पूरा करने के प्रयास में जुट जाओ
और अपना जीवन उन्नत बनाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्नी जी का व्रत

         पत्नी जी का व्रत

पत्नी जी है सहचरी , पति सहचर कहलाय
पत्नीजी जब व्रत करे ,तो पति कैसे खाय
तो पति कैसे खाय ,कवि 'घोटू' बतलाते
संग संग चरते ,इसीलिये सहचर कहलाते
पत्नी करवा चौथ करे ,पति खावे  पीज़ा
करके देखो,इसका होगा ,बुरा नतीजा
घोटू 

मीठा ही मीठा

           मीठा ही मीठा

ना मइके की धोंस है ,ना झगडा ,तकरार 
ऐसी भी क्या जिन्दगी ,सिर्फ प्यार ही प्यार
सिर्फ प्यार ही प्यार ,रूठना नहीं मनाना
दिन भर केवल मीठा ही मीठा हो खाना
 'घोटू' बिन नमकीन,नहीं   मीठा है  भाता
 हो  षट व्यंजन साथ ,स्वाद खाने में आता

घोटू 

शनिवार, 7 सितंबर 2013

प्यार कुछ ऐसा दिखाया आपने

 प्यार कुछ ऐसा दिखाया आपने

प्यार कुछ ऐसा दिखाया आपने
जगाया भी,और सुलाया ,आपने
           देख कर हुस्नो अदा हम मर मिटे
            प्यार तुम्हारा मिला,फिर जी उठे
मारा  भी और फिर जिलाया आपने
प्यार कुछ एसा दिखाया  आपने
             इस तरह बांधा हमें आगोश में
             रह नहीं पाये हम अपने होंश में
लबों से अमृत पिलाया आपने
प्यार कुछ एसा दिखाया आपने
            दिल की महफ़िल,सूनी थी,वीरान थी
             आप आये,आयी उसमे  जान थी
रंग कुछ  एसा जमाया आपने
प्यार कुछ एसा दिखाया आपने
              बावरे हम हो गए ,अब क्या कहे
               नाचते ही इशारों पर हम रहे
जादू  कुछ एसा चलाया आपने
प्यार कुछ एसा दिखाया  आपने

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन लता

          जीवन  लता

लताएँ और बेलें
नहीं बढ़ती है अकेले
जब थोड़ी पनपती है
कुछ आगे बढ़ती है
उन्हें आगे बढ़ने को
और ऊपर चढ़ने को
होती है जरूरत ,किसी सहारे की
जिससे लिपट कर के ,वो आगे बढ़ जाए
जीवन की लताओं को
आगे बढाने को
ऊंचा उठाने को
सुख दुःख बाटने को
जीवन काटने को
होती है जरूरत ,किसी प्यारे की,
जिसके संग खुशी खुशी ,ये जीवन कट जाए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मूंछें -साजन की

            मूंछें -साजन की

मर्दाने चेहरे पर  लगती तो है प्यारी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
        जब होता है मिलन,शूल से मुझे चुभोती
         सच तो ये है ,मुझको बड़ी गुदगुदी होती
लब मिलने के पहले रहती खडी अगाडी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
           बाल तुम्हारी मूंछों के कुछ लम्बे ,तीखे
           कभी नाक में घुस जाते  तो आती छींके
होती दूर ,प्यार करने की इच्छा सारी
साजन मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी

मदन मोहन बाहेती;घोटू'     

प्यार और जिन्दगी

     प्यार और जिन्दगी

नज़र जब तुमसे मिली
प्यार की कलियाँ खिली
मन मचलने  लग गया
हुआ था कुछ  कुछ नया
प्यार में   यूं  गम  हुए
बावरे हम तुम  हुए
       प्रीत के थे बीज बोये
        तुम भी खोये,हम भी खोये
रात कुछ ऐसी कटी
सुहानी पर अटपटी
ख्वाब में तुम आई ना
नींद हमको  आई ना
और तुमसे क्या कहें
बदलते करवट रहे
           मिलन के सपने संजोये
            जगे हम, तुम भी न सोये
ये हमारी जिन्दगी
थोडा गम,थोड़ी खुशी
आई कितनी दिक्कतें
रहे चलते,ना थके
बस यूं ही बढ़ते रहे
गमो से  लड़ते  रहे
           आस की माला  पिरोये
           हम हँसे भी और रोये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

नेताओं से

         नेताओं से

आप में आया अहम् है
इस तरह जो गए तन है
जिस जगह पर ,आप पहुंचे ,
हमारा  रहमो करम  है
भूल हमको ही गए है ,
आप कितने  बेशरम है
आदमी तो आम है हम,
मगर हम में बहुत दम है
कमाए तुमने करोड़ों,
और हमको दिए गम है
दिक्कतों से जूझते सब ,
आँख सबकी हुई नम है
हुई थी गलती हमी से ,
आ रही ,हमको शरम  है
सुनो ,जाओ सुधर अब भी ,
अब तुम्हारा समय कम है
उठा जन सैलाब जब भी ,
मुश्किलों से सका थम है
वादे कर फुसलाओगे फिर,
आपके मन का बहम है
पाठ सिखला तुम्हे देंगे ,
खायी हमने ये कसम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आज की वर्ण व्यवस्था

       आज की वर्ण व्यवस्था

ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य ,शुद्र ये,चारों वर्ण हुआ करते थे
अलग अलग सारे वर्णों के ,अपने कर्म  हुआ करते  थे
ब्राह्मण ,पूजा ,शिक्षण करते ,क्षत्रिय वीर लड़ाई लड़ते
वैश्य ,वणिक व्यापारी होते,बाकी काम शुद्र थे  करते
आज शुद्र सब शुद्ध हो गए ,बचा न  कोई शुद्र वर्ण है
सभी मिल गए अन्य वर्ण में,अब बस केवल तीन वर्ण है
तन मन और जमीर बेचते ,वैश्य न,वैश्या बने कमाते
अलग क्षेत्र हित लड़ते रहते ,क्षत्रिय ना,क्षेत्रीय  कहाते
धर्म कर्म को छोड़ आजकल ,ब्राह्मण ना ,हो गए भ्रष्ट मन
पर सत्ता के गलियारे में ,अब भी होता इनका पूजन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जी हाँ भ्रष्टाचार हूँ मै

        जी हाँ  भ्रष्टाचार हूँ मै

भले कानूनी किताबों में  बड़ा अपराध हूँ
हर जगह मौजूद हूँ मै ,हर जगह आबाद हूँ
रोजमर्रा जिन्दगी का ,एक हिस्सा बन गया ,
हो रहा खुल्लम खुला ,स्वच्छंद हूँ,आज़ाद हूँ
कोई भी सरकारी दफ्तर में मुझे तुम पाओगे ,
चपरासी से साहब तक के ,लगा  मुंह का स्वाद हूँ
घूमता मंत्रालयों में ,सर उठाये शान से ,
मंत्री से संतरी तक के लिए आल्हाद  हूँ
फाइलों को मै चलाता ,गति देता काम को ,
गांधीजी के चित्र वाला ,पत्र ,पुष्प,प्रसाद हूँ
अमर बेलों की तरह,हर वृक्ष पर फैला हुआ ,
खुद पनपता ,वृक्ष को ,करता रहा बर्बाद हूँ 
प्रवचनों में ज्ञान देते ,जो चरित्र निर्माण का ,
ध्यान की उनकी कुटी में ,वासना उन्माद हूँ
मिटाने जो मुझे आये वो स्वयं ही मिट गए ,
होलिका जल गयी मै जीवित बचा प्रहलाद हूँ
जी हाँ,भ्रष्टाचार हूँ मै ,खा रहा हूँ देश को ,
व्यवस्था में लगा घुन सा ,कर रहा बरबाद हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

विज्ञापन

           विज्ञापन
जब भी मै विज्ञापन देखता हूँ,सोचता हूँ,
जब सफोला नहीं होता था ,
लोग अपने दिल का ख्याल कैसे रखते थे
जब हिट नहीं होता था,
मलेरिया के मच्छर से कैसे बचते थे
जब होर्लिक्स या बोर्नविटा नहीं होता था ,
बिना विटामिन डी के ,
दूध का केल्शियम कैसे मिलता होगा
बिना लक्स या ब्यूटी क्रीमों  के,
औरतों का रूप कैसे खिलता होगा
बिना शेम्पू के ,बाल कैसे धोये जाते होंगे
बिना टी वी के लोग वक़्त कैसे बिताते होंगे
बिना मोबाईल के ,बात कैसे होती होगी
बिना बिजली की रोशनी के,रात कैसी होती होगी
घर में ढेर सारे बच्चे और संयुक्त परिवार सारा
इतनी भीड़ में कैसे करते होंगे गुजारा
पर ये सच है ,बिना इन सुविधाओं के भी,
खुशी खुशी जीते थे  ,लोग सारे
हाँ,वो थे ,पुरखे हमारे
घोटू 


हमारा धर्म-हमारे संस्कार

            हमारा धर्म-हमारे संस्कार

हम जब भी गुजरते है ,किसी मंदिर,मस्जिद ,
या  किसी अन्य  धार्मिक स्थल के आगे से ,
सर नमाते  है 
क्योंकि हमारे संस्कार ,हमें ,
सभी धर्मो का आदर करना सिखलाते है
बचपन से ही हमारे मन में भर दी जाती,
यह आस्था और विश्वास है
कि हर चर अचर में,इश्वर का वास है
भगवान ने भी जब अवतार लिया
तो सबसे पहले जलचर मत्स्य याने मछली ,
और फिर  कश्यप याने कछुवे का रूप लिया
फिर वराह बन प्रकटे ,पशु रूप धर
फिर नरसिंह बने,याने आधे पशु ,आधे नर
गणेश जी ,जिनकी हर शुभ  कार्य में,
पहले पूजा की जाती है
नीचे से नर है,ऊपर से हाथी है
हम आज भी गाय को गौ माता कहते है
और वानर रुपी हनुमानजी का
 पूजन करते रहते है
अरे पशु क्या ,हम तो वृक्ष और पौधों में भी ,
करते है भगवान का दर्शन
इसीलिए करते है ,वट,पीपल,
आंवला और तुलसी का पूजन 
हम पर्वतों को भी देवता स्वरूप मानते है ,
कैलाश पर्वत हो या गोवर्धन
पत्थर की पिंडी या मूर्ती को भी ,
देव स्वरूप मान कर करते है आराधन
पूजते है सरोवर
अमृतसर हो या पुष्कर
नदियों को  देवी का रूप मान कर ,
स्नान, पूजा, ध्यान करते रहते है
गंगा को गंगा मैया और,
 यमुना को यमुना मैया कहते है 
नाग को भी देवता मान कर दूध पिलाते है
कितने ही पशु पक्षियों को ,
देवी देवता का वाहन बतला कर ,
उनकी महिमा बढाते है
प्रकृति की हर कृति का करते सत्कार है
ये हमारा धर्म है,हमारे संस्कार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

आँख का क्या ,लड़ गयी सो लड़ गयी

      आँख का क्या ,लड़  गयी सो लड़ गयी

इधर दिल धड़का ,उधर धड़कन बढ़ी ,
हुआ कुछ कुछ,बात आगे  बढ़ गयी
नहीं इस पर बस कभी भी ,किसीका ,
आँख का क्या,लड़ गयी सो लड़ गयी
बहुत हसरत थी कि उनसे हम मिलें
बढ़ें आगे,प्यार के फिर सिलसिले
ललक उनसे मिलने की मन में लगी ,
चाह का क्या, जग गयी सो जग गयी
लालसा थी लबों की मदिरा  पियें
जिन्दगी भर झूम मस्ती से जियें
इस तरह आगोश में उनके बंधे,
प्यास का क्या ,बढ़ गयी सो बढ़ गयी
भावनाएं,आई,ठहरी ,बह गयी,
चाह मन की ,कुछ अधूरी रह गयी
सुहानी  यादें मधुर के भरोसे,
उम्र का क्या ,कट गयी सो कट गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुढापे की झपकियाँ

            बुढापे की झपकियाँ

बचपन में ऊंघा करते थे जब हम क्लास में,
टीचर जगाता था हमें तब चाक  मार  कर
यौवन में  कभी दफ्तरों में  आती झपकियाँ ,
देता था उड़ा नींद ,बॉस ,डाट  मार कर
लेकिन बुढ़ापा आया,जबसे रिटायर हुए ,
रहते है बैठे घर में कभी ऊंघते है हम,
कहती है बीबी ,लगता है डीयर तुम थक गए,
कह कर के सुलाती हमें ,वो हमसे प्यार कर

घोटू

दावतों का खाना

        दावतों का खाना

हालत हमारी होती है कैसी क्या बताये,
                    जब भी बुलाये जाते बड़ी  दावतों में हम 
खाने का शौक है बहुत ,पर हाजमा नहीं,
                   मुश्किल से काबू पाते ,दिल की चाहतों पे हम
टेबल पर बिछे सामने ,पकवान  सैकड़ों ,
                     मीठा है कोई चटपटा  ,लगते  लज़ीज़ है
जी चाहे जितना खाओ तुम,ये छूट है खुली,
                       पर खा न पाते,मन में होती बड़ी खीज है
मनभाती चाट सामने ,ललचाती है हमें,
                      जब देशी घी में सिकती है ,आलू की टिक्कियाँ
 गरमागरम जलेबियाँ,हलवा बादाम का,
                        मुंह में है आता पानी भर ,दिखती जब कुल्फियां
ढेरों लुभाती सब्जियां,पूरी है ,नान है,
                            पुलाव,दाल माखनी ,और बीसियों सलाद
भर लेते चीजें ढेर सारी ,अपनी प्लेट में,
                          मिल जाती सारी इस तरह,आता अजीब स्वाद   
होती है कुफ्त ,ढंग से ,खा पाते कुछ नहीं,
                            चख चख के भरता पेट,होता बुरे  हाल में 
पर मन नहीं भरता है मगर सत्य है यही ,
                                मिलती है सच्ची तृप्ती घर की रोटी दाल में
दावत में मज़ा ले न पाते ,किसी चीज का,
                                ये खाएं या वो खाएं ,इसी पेशोपश में हम
हालत हमारी होती है,ऐसी क्या बताएं,
                                 जब भी बुलाये जाते बड़ी दावतों में हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

आइटम नंबर

        आइटम नंबर

ये आइटम नंबर वाले गाने भी गजब ढाते है
कभी इश्क को कमबख्त ,कभी कमीना बताते है
किसी जुबान पर जब नमक इश्क का चढ़ता
जिगर की आग से वो बीडी जलाया करता
इसी चक्कर में तो मुन्नी बदनाम होती है
अपने डार्लिंग के लिए,वो झंडू बाम होती है
जवानी हलकट है और क्या क्या कहा जाता है
यूं पी ,बिहार भी सब लूट लिया जाता है
कभी अनारकली ,डिस्को चली जाती है
कभी जलेबी बाई ,जलवे सब दिखाती है
कभी फेविकोल सा होता है मन चिपकने का
कभी चिकनी चमेली ,होता मन फिसलने का
कभी छम्मा छम्मा करके खनकती पायल है
कभी कजरारे नयना ,करते सब को घायल है
कभी लैला को ढूंढा करते ,फाड़   कुरता  है
ढूंढते है कभी के चोली के पीछे क्या है
कभी दिल मुफ्त का ,यूं ही लुटाया जाता है
कैसे भी ,फिल्म को बस ,हिट  बनाया जाता है

घोटू

सोमवार, 2 सितंबर 2013

माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!


अब तक नहीं आयी
कहां तू लुकाई
भूख ने पेट में
हलचल मचाई
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

गयी जिस ओर
निगाह उस ओर
घर में तो जैसे
सन्नाटे का शोर
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!
ये हरे भरे पत्ते
बैरी हैं लगते
कहते हैं मां गई
तेरी कलकत्ते
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

जल्दी से आओ
दाना ले आओ
इन सबके मुंह पे
ताला लगाओ
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

अब हम न मानेंगे
उड़ना भी जानेंगे
तेरे पीछे-पीछे हम
आसमान छानेंगे
माँ !...ओ माँ !!...ओ माँ !!!

- विशाल चर्चित

रविवार, 1 सितंबर 2013

खजूर

खजूर

खुरदरा सा तना, पत्ते नुकीले,
छाँव देते नहीं , फल भी दूर है
भूल जड़ को , इतने ऊंचे बढ गए,
नहीं नेता, मंत्री ,हम तो खजूर है
घोटू

लड़ाई

  लड़ाई

लड़ाई ,एक ऐसी मानवीय प्रवृत्ति है
जो युगों युगों से आई चलती है
यूं तो देवता दानव हमेशा आपस में लड़ते है
पर अमृत प्राप्ति के लोभ में,
साथ साथसाथ मिलकर ,समुद्र मंथन भी करते है
कभी राज्य और सत्ता के चक्कर में,
कौरव पांडव ,महाभारत कर लेते है
कभी पत्नी के चक्कर में ,समन्दर पर पुल बना,
राम लंका को ध्वंस कर देते है
अक्सर लड़ाई के कारण होते है तीन
जर याने पैसा ,जोरू याने औरत और जमीन
आजकल एक चौथी वजह भी नज़र आती है
मज़हब के नाम पर भी ,खूब लड़ाई लड़ी जाती है
कभी लड़ाई ,सरहदें बनाती है ,
कभी सरहदें लड़ाई कराती है
कभी मूंछों की शान ऊंची रखने के लिए भी ,
लड़ाई की जाती है
कभी बच्चों की लड़ाई ,
बड़ों की लड़ाई में बदल जाती है
बच्चे  तो थोड़ी देर में दोस्त बन जाते है ,
पर बड़ों में तलवारें खिंच जाती है
कई आपसी और व्यक्तिगत लड़ाइयाँ,
अदालत में लड़ी  जाती है
जो मुकदमा कहलाती है
पर एक बात जो मेरी समझ में नहीं आती है
जो बिना फ़ौज के लड़ा जाय,वो मुकदमा फौजदारी ,
और जो बिना दीवानगी के लड़ा जाए ,
वो मुकदमा दीवानी क्यों कहलाता है
पर ऐसी लड़ाइयों में ,लड़नेवाले तो बर्बाद हो जाते है,
पर वकील कमाता है
नेता लोग सत्ता में आने के लिए ,चुनाव लड़ते है
और चुनाव में जीतने के बाद,संसद में लड़ते है
लोकसभा में इनका दंगल ,दर्शनीय होता है
हक की लड़ाई लड़ने वालो को ,
लड़ाई का भी हक होता है
वक़्त काटने के लिए ,गप्पें लड़ाई जाती है
और प्यार करने के लिए चोंचें लड़ाई जाती  है
यूं तो सारी लड़ाइयाँ,
खून खराबा और नफरत फैलाती है 
पर एक लड़ाई ऐसी है,जो प्यार बरसाती  है
जी हाँ ,जब नज़रें लड़ाई जाती है ,
तो फिर  पनपता प्यार है
ऐसी लड़ाई लड़ने के लिए,
ये बन्दा हरदम तैयार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बच्चा नहीं चच्चा !!!!


जच्चा के पेट का जब
हुआ अल्ट्रासाउन्ड,
नर्स हिल गयी 
अस्पताल हिल गया
देखा जब पेट के
अन्दर का बैकग्राउन्ड...
मां खुद देख रही थी
स्क्रीन पर आंखें फाड़,
जिसको समझी थी तिल
वो तो दिख रहा ताड़...
बच्चा नहीं ये चच्चा
दुनिया में आने से पहले ही
फेसबुक से यारी कर रहा,
अपने आने की खबर वाली
पोस्ट वाल पर जारी कर रहा...
सोचो और समझो बालक
क्या संकेत दे रहा है,
एक नये युग का सूत्रपात
किये दे रहा है...
मां बाप इस उम्र तक
जितना भी सीख पाये हैं,
लाल पेट में ही
वहां से आगे कदम बढ़ाये है...
सुनी होगी आप सबने 
अभिमन्यु वाली कहानी,
मां की पेट में ही सीखा
चक्रव्यूह तोड़ डालना
अपने बाप की जुबानी...
ये किस्सा बहुत पुराना है
अब आया नया जमाना है
बच्चों के जरिये मां बाप को
अब अपना ज्ञान बढ़ाना है...
बच्चे स्कूल जाते हैं
न जाने क्या - क्या
सीख के आते हैं
और होम वर्क के जरिये
अपने मां बाप को सिखाते हैं,
लेकिन बात यहीं तक होती
तो कोई बात नहीं थी,
पर बात - बात पे अक्सर
अब तो उल्लू भी बनाते हैं...
इसलिये आंख खोल कर
होशो हवास में रहिये,
मां बाप बने रहना है तो
नया - नया सीखते रहिये,
वर्ना तो कल को केवल
पछताना रह जायेगा,
देखते ही देखते आपका बच्चा
आपका मां बाप बन जायेगा...

- विशान चर्चित 

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