बुढापे की झपकियाँ
बचपन में ऊंघा करते थे जब हम क्लास में,
टीचर जगाता था हमें तब चाक मार कर
यौवन में कभी दफ्तरों में आती झपकियाँ ,
देता था उड़ा नींद ,बॉस ,डाट मार कर
लेकिन बुढ़ापा आया,जबसे रिटायर हुए ,
रहते है बैठे घर में कभी ऊंघते है हम,
कहती है बीबी ,लगता है डीयर तुम थक गए,
कह कर के सुलाती हमें ,वो हमसे प्यार कर
घोटू
बचपन में ऊंघा करते थे जब हम क्लास में,
टीचर जगाता था हमें तब चाक मार कर
यौवन में कभी दफ्तरों में आती झपकियाँ ,
देता था उड़ा नींद ,बॉस ,डाट मार कर
लेकिन बुढ़ापा आया,जबसे रिटायर हुए ,
रहते है बैठे घर में कभी ऊंघते है हम,
कहती है बीबी ,लगता है डीयर तुम थक गए,
कह कर के सुलाती हमें ,वो हमसे प्यार कर
घोटू
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