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रविवार, 29 सितंबर 2013

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें

रात से सुबह तक -चार छोटी कवितायें
                       १
                  झपकी
दिन भर के काम की थकावट
पिया से मिलन की छटपटाहट 
जागने का मन करे ,नींद आये लपकी
                                        झपकी
                    २
             खर्राटे
अधूरी कामनाये ,दबी हुई बांते
जिन्हें दिन में हम ,बोल नहीं पाते
रात को सोने पर ,निकलती है बाहर
                         बन कर खर्राटे
                      ३
             उबासी 
चूम चूम बार बार ,बंद किया मुंह द्वार
निकल ही नहीं पायी ,हवाएं बासी
उठते जब सोकर ,बेचैन होकर ,
निकलती बाहर है ,बन कर  उबासी
                       ४
              अंगडाई
प्रीतम ने तन मन में ,आग सी लगाई
रात भर रही लिपटी ,बाहों में समायी
प्रेम रस लूटा ,अंग अंग टूटा ,
उठी जब सवेरे तो आयी अंगडाई

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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