चांदनी छिटकी हुई है ..
चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
वृक्ष जैसा खड़ा मै बाहें पसारे ,
बावरी सी लता जैसी आ लिपटना
इस तरह से हो हमारे मिलन के पल
एक हम हो जाएँ जैसे दूध और जल
बांह में मेरी सिमटना प्यार से तुम,
लाज के मारे स्वयं में मत सिमटना
चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
तुम विकसती ,एक नन्ही सी कली हो
महक फैला रही, खुशबू से भरी हो
भ्रमर आ मंडरायेंगे तुमको लुभाने,
भावना के ज्वार में तुम मत बहकना
चांदनी छिटकी हुई है चाँद मेरे ,
बांह से मेरी ,मगर तुम मत छिटकना
कंटकों से भरी जीवन की डगर है
बड़ा मुश्किल और दुर्गम ये सफ़र है
होंसला है जो अगर मंजिल मिलेगी ,
राह से अपनी मगर तुम मत भटकना
चांदनी छिटकी हुई है चाँद मेरे ,
बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
वृक्ष जैसा खड़ा मै बाहें पसारे ,
बावरी सी लता जैसी आ लिपटना
इस तरह से हो हमारे मिलन के पल
एक हम हो जाएँ जैसे दूध और जल
बांह में मेरी सिमटना प्यार से तुम,
लाज के मारे स्वयं में मत सिमटना
चांदनी छिटकी हुई है ,चाँद मेरे ,
बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
तुम विकसती ,एक नन्ही सी कली हो
महक फैला रही, खुशबू से भरी हो
भ्रमर आ मंडरायेंगे तुमको लुभाने,
भावना के ज्वार में तुम मत बहकना
चांदनी छिटकी हुई है चाँद मेरे ,
बांह से मेरी ,मगर तुम मत छिटकना
कंटकों से भरी जीवन की डगर है
बड़ा मुश्किल और दुर्गम ये सफ़र है
होंसला है जो अगर मंजिल मिलेगी ,
राह से अपनी मगर तुम मत भटकना
चांदनी छिटकी हुई है चाँद मेरे ,
बांह से मेरी मगर तुम मत छिटकना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।