मूंछें -साजन की
मर्दाने चेहरे पर लगती तो है प्यारी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
जब होता है मिलन,शूल से मुझे चुभोती
सच तो ये है ,मुझको बड़ी गुदगुदी होती
लब मिलने के पहले रहती खडी अगाडी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
बाल तुम्हारी मूंछों के कुछ लम्बे ,तीखे
कभी नाक में घुस जाते तो आती छींके
होती दूर ,प्यार करने की इच्छा सारी
साजन मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
मदन मोहन बाहेती;घोटू'
मर्दाने चेहरे पर लगती तो है प्यारी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
जब होता है मिलन,शूल से मुझे चुभोती
सच तो ये है ,मुझको बड़ी गुदगुदी होती
लब मिलने के पहले रहती खडी अगाडी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
बाल तुम्हारी मूंछों के कुछ लम्बे ,तीखे
कभी नाक में घुस जाते तो आती छींके
होती दूर ,प्यार करने की इच्छा सारी
साजन मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
मदन मोहन बाहेती;घोटू'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।