एक चुप्पी,
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ है ,
तुम्हारे इतने करीब होकर भी
बेशुमार दूरियाँ है ;
बाते तो कहने को हजार है
लेकिन कैसी मजबुरियाँ है
तुम्हारे लफ्ज,
मेरे लफ्जो पे संवर भी नहीं पाते है
क्यों शब्द बिखर-बिखर रह जाते है |
जुबान पे आते आते ऐसा क्यों
जज्बात आँखों से
पिघल पिघल के गिर रहे है
ऐसा लगे बरसो बाद
बिछड़े दिल मिल रहे है ...
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