दावतों का खाना
हालत हमारी होती है कैसी क्या बताये,
जब भी बुलाये जाते बड़ी दावतों में हम
खाने का शौक है बहुत ,पर हाजमा नहीं,
मुश्किल से काबू पाते ,दिल की चाहतों पे हम
टेबल पर बिछे सामने ,पकवान सैकड़ों ,
मीठा है कोई चटपटा ,लगते लज़ीज़ है
जी चाहे जितना खाओ तुम,ये छूट है खुली,
पर खा न पाते,मन में होती बड़ी खीज है
मनभाती चाट सामने ,ललचाती है हमें,
जब देशी घी में सिकती है ,आलू की टिक्कियाँ
गरमागरम जलेबियाँ,हलवा बादाम का,
मुंह में है आता पानी भर ,दिखती जब कुल्फियां
ढेरों लुभाती सब्जियां,पूरी है ,नान है,
पुलाव,दाल माखनी ,और बीसियों सलाद
भर लेते चीजें ढेर सारी ,अपनी प्लेट में,
मिल जाती सारी इस तरह,आता अजीब स्वाद
होती है कुफ्त ,ढंग से ,खा पाते कुछ नहीं,
चख चख के भरता पेट,होता बुरे हाल में
पर मन नहीं भरता है मगर सत्य है यही ,
मिलती है सच्ची तृप्ती घर की रोटी दाल में
दावत में मज़ा ले न पाते ,किसी चीज का,
ये खाएं या वो खाएं ,इसी पेशोपश में हम
हालत हमारी होती है,ऐसी क्या बताएं,
जब भी बुलाये जाते बड़ी दावतों में हम
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
हालत हमारी होती है कैसी क्या बताये,
जब भी बुलाये जाते बड़ी दावतों में हम
खाने का शौक है बहुत ,पर हाजमा नहीं,
मुश्किल से काबू पाते ,दिल की चाहतों पे हम
टेबल पर बिछे सामने ,पकवान सैकड़ों ,
मीठा है कोई चटपटा ,लगते लज़ीज़ है
जी चाहे जितना खाओ तुम,ये छूट है खुली,
पर खा न पाते,मन में होती बड़ी खीज है
मनभाती चाट सामने ,ललचाती है हमें,
जब देशी घी में सिकती है ,आलू की टिक्कियाँ
गरमागरम जलेबियाँ,हलवा बादाम का,
मुंह में है आता पानी भर ,दिखती जब कुल्फियां
ढेरों लुभाती सब्जियां,पूरी है ,नान है,
पुलाव,दाल माखनी ,और बीसियों सलाद
भर लेते चीजें ढेर सारी ,अपनी प्लेट में,
मिल जाती सारी इस तरह,आता अजीब स्वाद
होती है कुफ्त ,ढंग से ,खा पाते कुछ नहीं,
चख चख के भरता पेट,होता बुरे हाल में
पर मन नहीं भरता है मगर सत्य है यही ,
मिलती है सच्ची तृप्ती घर की रोटी दाल में
दावत में मज़ा ले न पाते ,किसी चीज का,
ये खाएं या वो खाएं ,इसी पेशोपश में हम
हालत हमारी होती है,ऐसी क्या बताएं,
जब भी बुलाये जाते बड़ी दावतों में हम
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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