घन बरसे
घन बरसे पर मन ना हरषा
पिया मिलन को रह रह तरसा
घिर घिर बादल रहे घुमड़ते ,
पर मन था सूने अम्बर सा
भीगे वृक्ष ,लता सब भीगी
होकर तृप्त ,धरा सब भीगी
लेकिन अविरल रही बरसती ,
मेरी आँखे ,भीगी,भीगी
भीगी मेरी चूनर सारी ,
नीर नयन से इतना बरसा
घन बरसे पर मन ना हरषा
सावन आया ,बादल आये
वादा किया ,पिया ना आये
जितना ज्यादा बरसा पानी,
उतने ज्यादा वो याद आये
बादल गरजे ,बिजली कडकी ,
मन में लगा रहा एक डर सा
घन बरसे पर मन ना हरषा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
घन बरसे पर मन ना हरषा
पिया मिलन को रह रह तरसा
घिर घिर बादल रहे घुमड़ते ,
पर मन था सूने अम्बर सा
भीगे वृक्ष ,लता सब भीगी
होकर तृप्त ,धरा सब भीगी
लेकिन अविरल रही बरसती ,
मेरी आँखे ,भीगी,भीगी
भीगी मेरी चूनर सारी ,
नीर नयन से इतना बरसा
घन बरसे पर मन ना हरषा
सावन आया ,बादल आये
वादा किया ,पिया ना आये
जितना ज्यादा बरसा पानी,
उतने ज्यादा वो याद आये
बादल गरजे ,बिजली कडकी ,
मन में लगा रहा एक डर सा
घन बरसे पर मन ना हरषा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हरिआरी भइ रस मगन , घनघर घन तै घीर ।
जवाब देंहटाएंनैना हेरत कहाँ गए , भँवर पंथ के हीर /५२१ /
भावार्थ : -- हरियाली, गगन के घन से घिर कर रस मग्न हो उठी । अब हरियाली के नयन, भ्रमण पथ के हीरे को ढूँडते हुवे कह रहे हैं कि कहाँ गए सूर्य //