जंगल का कानून
आजकल तो हो गया जंगल का ये कानून है ,
की यहाँ पर कोई भी ,चलता नहीं क़ानून है
आम जनता सांस भी ले ,तो है ये उसका कसूर ,
और दबंगों के लिए तो,माफ़ सारे खून है ,
रुपय्ये की साख गिरती जा रही है दिन ब दिन,
और चढ़ते आसमां पर ,जा रहे सब दाम है
आजकल बेख़ौफ़ होकर घूमते है दरिन्दे ,
औरतों की अस्मतों को ,लूटना अब आम है
जेल भरने के जो काबिल ,जेब भरते नेता बन,
करते खुल के गुंडा गर्दी , छूट है उनको खुली
हो गयी है बड़ी गंदी ,राजनीति इस तरह ,
माफिया को बचाने ,मासूम चढ़ते है सुली
शेर ने तो बाँध रख्खी ,अपने मुंह पर पट्टियाँ ,
रंगे सियारों के हाथों ,चल रही सरकार है
खाने के अधिकार का भी ,बन रहा क़ानून है ,
खूब खाओ,खाने का अब ,कानूनी अधिकार है
राजनीति ,आजकल ,पुश्तेनी धंधा बन गया ,
जिधर भी तुम हाथ डालोगे,उधर ही पोल है
गोलमालों का यहाँ पर ,सिलसिला थमता नहीं ,
इसका कारण ,ये भी है ,संसद भवन ही गोल है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
आजकल तो हो गया जंगल का ये कानून है ,
की यहाँ पर कोई भी ,चलता नहीं क़ानून है
आम जनता सांस भी ले ,तो है ये उसका कसूर ,
और दबंगों के लिए तो,माफ़ सारे खून है ,
रुपय्ये की साख गिरती जा रही है दिन ब दिन,
और चढ़ते आसमां पर ,जा रहे सब दाम है
आजकल बेख़ौफ़ होकर घूमते है दरिन्दे ,
औरतों की अस्मतों को ,लूटना अब आम है
जेल भरने के जो काबिल ,जेब भरते नेता बन,
करते खुल के गुंडा गर्दी , छूट है उनको खुली
हो गयी है बड़ी गंदी ,राजनीति इस तरह ,
माफिया को बचाने ,मासूम चढ़ते है सुली
शेर ने तो बाँध रख्खी ,अपने मुंह पर पट्टियाँ ,
रंगे सियारों के हाथों ,चल रही सरकार है
खाने के अधिकार का भी ,बन रहा क़ानून है ,
खूब खाओ,खाने का अब ,कानूनी अधिकार है
राजनीति ,आजकल ,पुश्तेनी धंधा बन गया ,
जिधर भी तुम हाथ डालोगे,उधर ही पोल है
गोलमालों का यहाँ पर ,सिलसिला थमता नहीं ,
इसका कारण ,ये भी है ,संसद भवन ही गोल है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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