बुढापे में बहुत सुख दे रही ........
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको,
बुढापे में बहुत सुख दे रही ,बुढ़िया ,मुझे मेरी
भले मन में उमंगें थी,और तन में भी ताकत थी ,
मगर खाने कमाने में,बहुत हम व्यस्त रहते थे
और पत्नी भी रहती व्यस्त ,घर के काम काजों में ,
रात होती थी तब तक ,दोनों ही हम पस्त रहते थे
इधर मै थक के सो जाता ,उधर खर्राटे भरती वो ,
कभी ही चरमरा ,सुख देती थी,खटिया मुझे मेरी
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको ,
बुढ़ापे में बहुत सुख दे रही बुढ़िया मुझे मेरी
बहुत थोड़ी सी इनकम थी,बड़ा परिवार पलता था,
बड़ी ही मुश्किलों से,बच्चों को ,हमने पढ़ाया था
काट कर पेट अपना ,ध्यान रख कर उनकी सुविधा का,
बड़े होकर ,कमाए खूब ,इस काबिल बनाया था
तरक्की खूब कर बेटा हमारा ख्याल रखता है,
बड़ी चिन्ता से करती याद है,बिटिया मुझे मेरी
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको,
बुढापे में में बहुत सुख दे रही ,बुढिया ,मुझे मेरी
आजकल मै हूँ,मेरी बीबी है ,फुर्सत में हम दोनों,
इस तरह हो गए है एक कि दोनों अकेले है
धूमते फिरते है मस्ती में ,रहते प्यार में डूबे ,
उमर आराम की ,चिंता न कुछ है ना झमेले है
कभी तलती पकोड़ी है ,कभी फिर खीर और पूरी ,
खिलाती ,प्रिय मेरा खाना ,बहुत बढ़िया ,मुझे डेली
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको,
बुढ़ापे में बहुत सुख दे रही , बुढ़िया ,मुझे मेरी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको,
बुढापे में बहुत सुख दे रही ,बुढ़िया ,मुझे मेरी
भले मन में उमंगें थी,और तन में भी ताकत थी ,
मगर खाने कमाने में,बहुत हम व्यस्त रहते थे
और पत्नी भी रहती व्यस्त ,घर के काम काजों में ,
रात होती थी तब तक ,दोनों ही हम पस्त रहते थे
इधर मै थक के सो जाता ,उधर खर्राटे भरती वो ,
कभी ही चरमरा ,सुख देती थी,खटिया मुझे मेरी
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको ,
बुढ़ापे में बहुत सुख दे रही बुढ़िया मुझे मेरी
बहुत थोड़ी सी इनकम थी,बड़ा परिवार पलता था,
बड़ी ही मुश्किलों से,बच्चों को ,हमने पढ़ाया था
काट कर पेट अपना ,ध्यान रख कर उनकी सुविधा का,
बड़े होकर ,कमाए खूब ,इस काबिल बनाया था
तरक्की खूब कर बेटा हमारा ख्याल रखता है,
बड़ी चिन्ता से करती याद है,बिटिया मुझे मेरी
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको,
बुढापे में में बहुत सुख दे रही ,बुढिया ,मुझे मेरी
आजकल मै हूँ,मेरी बीबी है ,फुर्सत में हम दोनों,
इस तरह हो गए है एक कि दोनों अकेले है
धूमते फिरते है मस्ती में ,रहते प्यार में डूबे ,
उमर आराम की ,चिंता न कुछ है ना झमेले है
कभी तलती पकोड़ी है ,कभी फिर खीर और पूरी ,
खिलाती ,प्रिय मेरा खाना ,बहुत बढ़िया ,मुझे डेली
जवानी में भी जितना सुख नहीं ,जिसने दिया मुझको,
बुढ़ापे में बहुत सुख दे रही , बुढ़िया ,मुझे मेरी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
संवेदनशील रचना , बेटियों से घर चहकता रहता है ...
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन की बधाई ओर शुभकामनायें ...