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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

जगाया न होता

           जगाया न होता

हमें नींद से जो जगाया न होता
हिला  इस तरह जो उठाया न होता
बड़ी मुद्दतों में जो आया था हमको ,
वो सपना हमारा ,भगाया न  होता
और फिर ये कह के,कि डर लग रहा है,
हमें अपने सीने लगाया न होता
दिखा करके अपनी मोहब्बत के जलवे ,
मेरी हसरतों को ,जगाया न होता
लगा कर अगन ना यूं अपने बदन से ,
लबों से वो अमृत ,पिलाया न होता
तो फिर हमसुहबत हुए हम न होते ,
मज़ा वो मोहब्बत का आया न होता
बड़ी देर तक मै  ,यूं सोया न रहता ,
थकावट में एक दिन ,यूं जाया न होता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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