प्रार्थना
हे प्रभु!मुझे रहने के लिए ,
बस इतनी जगह चाहिए ,
कि हाथ पैर फैला सकूं
मुझे सोने के लिए,
बस इतनी जगह चाहिए ,
कि करवट बदल सकूं
इतनी खुली जगह हो ,
कि जब तक जियूं ,
खुल कर सांस ले सकूं
इतनी कमाई हो ,
कि दो वक़्त दाल रोटी खा सकूं
इतना समय दो ,
कि तेरे गुण गा सकूं
मेरी आपसे बस इतनी सी ही विनती है
क्योंकि मुझे मालूम है ,
राख की एक ढेरी बन,
गंगा की लहरों में विलीन होना ही,
मेरी नियती है
मदन मोहन बहेती'घोटू'
कितनी प्यारी रचना .... ईश्वर से की गयी एक मार्मिक प्रार्थना ..
जवाब देंहटाएंदिल से बधाई स्वीकार करे.
विजय कुमार
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dhanywaad
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