है डालरों से हम
बचपन से जवानी तलक ,पाबंदी थी लगी ,
ना स्कूलों में ऊँघे और ना दफ्तरों में हम
पर जबसे आया बुढ़ापा ,हम रिटायर हुए,
जी भर के ऊंघा करते है ,अपने घरों में हम
बीबी को मगर इस तरह ,आलस में ऊंघना ,
बिलकुल नहीं पसंद है ,रहती है डाटती ,
कहती है दिन में सोने से ,जगते है रात को,
सोने न देते ,सताते,है बिस्तरों में हम
अब ये ज़माना आ गया ,घर के घाट के,
अंकल जी कहके लड़कियां ना घास डालती,
कितने ही रंग लें बाल और हम फेशियल करें,
उड़ने का जोश ला नहीं ,सकते परों में हम
टी वी से या अखबार से अब कटता वक़्त है,
घर का कोई भी मेंबर ,हमको न पूछता ,
पावों को छुलाने की बन के चीज रह गए,
त्यौहार,शादी ब्याह के ,अब अवसरों में हम
हम दस के थे,डालर की भी ,कीमत थी दस रूपये ,
छांछट का है डालर हुआ ,छांछट के हुए हम,
फिर भी हमारे बच्चे है ,इतना न समझते ,
होते ही जाते कीमती, है डालरों से हम
मदन मोहन बाहेती'घोटू;
बचपन से जवानी तलक ,पाबंदी थी लगी ,
ना स्कूलों में ऊँघे और ना दफ्तरों में हम
पर जबसे आया बुढ़ापा ,हम रिटायर हुए,
जी भर के ऊंघा करते है ,अपने घरों में हम
बीबी को मगर इस तरह ,आलस में ऊंघना ,
बिलकुल नहीं पसंद है ,रहती है डाटती ,
कहती है दिन में सोने से ,जगते है रात को,
सोने न देते ,सताते,है बिस्तरों में हम
अब ये ज़माना आ गया ,घर के घाट के,
अंकल जी कहके लड़कियां ना घास डालती,
कितने ही रंग लें बाल और हम फेशियल करें,
उड़ने का जोश ला नहीं ,सकते परों में हम
टी वी से या अखबार से अब कटता वक़्त है,
घर का कोई भी मेंबर ,हमको न पूछता ,
पावों को छुलाने की बन के चीज रह गए,
त्यौहार,शादी ब्याह के ,अब अवसरों में हम
हम दस के थे,डालर की भी ,कीमत थी दस रूपये ,
छांछट का है डालर हुआ ,छांछट के हुए हम,
फिर भी हमारे बच्चे है ,इतना न समझते ,
होते ही जाते कीमती, है डालरों से हम
मदन मोहन बाहेती'घोटू;
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः9
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