सवेरे सवेरे नींद बड़ी जोर से आती है
बेटियां,
यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर सुबह जब,
उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बेटियां,
यूं तो माइके में,नोर्मल सी ,
हंसी ख़ुशी रहती है,
पर गले मिल मिल कर रोती है,
जब ससुराल जाती है
राजनेतिक पार्टियाँ,
यूं तो दुनिया भर के टेक्स लगाती है,
पर चुनाव के पहले,
राहत का अम्बार लुटाती,
सुनहरे सपने दिखाती है
दीपक की लौ ,
यूं तो नोर्मल सी जलती रहती,
पर जब बुझने को होती,
बहुत चमक देती है,
फडफडाती है वैसे ही नींद सारी रात ,
यूं ही आती जाती रहती है ,
पर सुबह जब,
उठने का समय होता है
सवेरे नींद बड़ी जोर से ही आती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सच में ये कुछ कडवी सच्चाइयां हैं ----बहुत अच्छा लिखा --बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह क्या घोटा है
जवाब देंहटाएंजरा सा नार्मल कब हो
जाता है ऎबनार्मल
और हो जाता लोटा है !