उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है
चोंट इतनी जमाने की खा चुके है
जितने भी आंसू थे आने,आ चुके है
विदारक घड़ियाँ दुखों की टल गयी है,
सैंकड़ों ही बार अब मुस्का चुके है
मुकद्दर में लिखा है वो ही मिलेगा,
अपने दिल को बारहा समझा चुके है
किये होंगे करम कुछ पिछले जनम में,
जिसका फल इस जनम में हम पा चुके है
मोहब्बत के नाम से लगने लगा डर,
मोहब्बत का सिला एसा पा चुके है
हम तो है वो फूल देशी गुलाबों के,
महकते है ,गो जरा कुम्हला चुके है
रहे वो खुश और सलामत ये दुआ है,
उनकी सारी गलतियाँ बिसरा चुके है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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2025 में विभिन्न लग्न और राशियों के लिए विवाह का योग vivah shubh muhurat
2025
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