जवानी पर चढ़ गयी है सर्दियां
रात की ठिठुरन से बचने, भूल सब शिकवे ,गिले
शाम ,डर कर,उलटे पैरों,दोपहर से जा मिले
ओढ़ ले कोहरे की चादर ,धूप ,तज अपनी अकड़
छटपटाये चमकने को ,सूर्य पीला जाये पड़
हवायें जब कंपकंपाये ,निकलना मुश्किल करे
चूमने को चाय प्याला ,बारहां जब दिल करे
जेब से ना हाथ निकले ,दिखाये कन्जूसियाँ
पास में बैठे रहे बस ,लगे मन भाने पिया
लिपट तन से जब रजाई ,दिखाये हमदर्दियाँ
तो समझ लो ,जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ
घोटू
मनुज प्रकृति से दूर गया है
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मनुज प्रकृति से दूर गया है वृक्षों के आवाहन पर ही मेघा आकर पानी
देते, कंकरीट के जंगल आख़िर कैसे उन्हें बुलावा दे दें ! सूना सा नभ तपती
वसुधा शुष्क हुई हैं ...
1 घंटे पहले