एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 14 अप्रैल 2024

मैं 


पूरा जगत जीत लेने की जिद जिंदा है

भरा हुआ है जोश जिगर में और जुनून है

रहा बुलंदी पर हरदम ही मेरा हौसला

और रग रग में उबल रहा वह  गरम खून है


मुझको भी गाली देना बस इतना आता

जिससे सकूं निकाल भडासें अपने मन की

कभी किसी का कोई बुरा मैं नहीं मानता

यही प्रवृत्ति रही सदा मेरे जीवन की 


भला आदमी बनने के चक्कर में मैंने

कई बार चांटे खाए हैं ,दुख झेले हैं 

क्या बदलाऊं मेरे संग क्या-क्या गुजरी है

 मेरे अनुभव कितने उलझे ,अलबेले हैं


कई बार अरमान उड़ गए गुब्बारे बन 

कई बार कोई ने फोड़ा , पिने चुभा कर

कई बार यह लगा सरल कितना जीवन पथ, 

पड़ी असलियत मालूम पर जब खाई ठोकर 


कई बार भूख सोया तो कभी प्रभु ने

मेरी थाली में भर भर कर पकवान परोसे

तूफानों में भी यह मेरे जीवन की किश्ती चलती रही ,नहीं डूबी भगवान भरोसे


मुझको मत कोसो ,मेरे व्यवहार ना कोसो

जैसे तुमने सिखलाया वैसे जीता हूं

महाभारत के महासमर की ज्ञान लुटाती

प्रभु के मुख से प्रकट हुई भगवत गीता हूं 



इसीलिए अब जीवन के अंतिम वर्षों में 

मैं अपना ध्यान केंद्रित किया स्वयं पर

करने लगा वही सब कुछ जो मुझको सुख दे 

मुझको लड़ने की शक्ति दे मेरा ईश्वर 


मदन मोहन बाहेती घोटू

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-