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मंगलवार, 21 मई 2013

सीटियाँ

    
जवानी में खूब हमने बजाई थी सीटियाँ,
                     लड़कियों को छेड़ने या फिर  पटाने  वास्ते 
और चौकीदार भी सीटी बजाता रात भर,
                     चौकसी रखने को  और सबको जगाने वास्ते 
स्कूलों के दिनों में ,करने किसी को हूट हम,
                      जीभ उंगली से दबाते ,निकलती थी सीटियाँ 
और पिक्चर हॉल में,हेलन का आता डांस जब ,
                      याद है हमको बहुत थी बजा करती  सीटियाँ 
सनसनाती जब  हवाएं,बजाती है सीटियाँ,
                        करके विसलिंग ,कई आशिक ,बात दिल की सुनाते 
डरते है सुनसान रस्ते पर अकेले लोग जब,
                          पढ़ते है हनुमान चालीसा या सीटी   बजाते 
होठ करके गोल हम सीटी बजा कर बोलते ,
                          यारों 'आल इज वेल'है ,ये सीटियों का खेल है 
चलने से पहले या रस्ता साफ़ करने के लिए,
                            हमने देखा,हमेशा सीटी बजाती रेल है 
बस में कंडक्टर बजाता ,सड़क पर ट्राफिक पुलिस ,
                              ड्रिल कराता 'पी .टी .'टीचर और बजाता सीटियाँ 
और प्रेशर कुकर में जब ,जाते सब्जी ,दाल पक,
                               ध्यान तुम्हारा दिलाने  ,वो बजाता सीटियाँ  
जब किसी को देख कर के,मन में सीटी सी बजे ,
                                तो समझ लो इश्क का है पहला सिग्नल मिल गया 
उस हसीना स्वीटी से ,शादी करी,सीटी बजी ,
                                तो गए तुम काम से और तुम्हारा दिल भी गया 
फाउल हो तो छोटी बजती ,गोल तो लम्बी बजे,
                                 बजाता रहता है सीटी ,रेफरी फूटबाल  में 
इश्क की या चौकसी की,मस्ती की या खुशी की ,
                                  सीटियाँ तो बजती ही रहती ,सदा ,हर हाल में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
 

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