स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
एक बार भगवान विष्णु,
अपने वहां गरुड़ पर बैठ कर,
शिवजी से मिलने,
पहुंचे पर्वत कैलाश पर
शिवजी के गले में पड़ा सर्प,
गरुड़ को देख कर,गर्व से फुंकार मारता रहा
तो मन मसोस कर गरुड़ ने कहा
स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
तेरा मेरा बैर हर कोई जानता है
पर इस समय तू शिवजी के गले में है,
इसलिए फुफकार मार रहा है,
ये तेरे बल की नहीं,स्थान की प्रधानता है
आदमी की पोजीशन,
उसके व्यवहार में,स्पष्ट दिखलाती है
सुहागरात को दुल्हन बनी गधी भी इतराती है
गरीब से गरीब आदमी भी,
जब घोड़ी चढ़ता है,दूल्हा राजा बन जाता है
कुर्सी पर बैठा,छोटा सा जज भी,
बड़े बड़े लोगों को जेल भिजवाता है
अदना सा ट्रेफिक हवालदार,सड़क के चोराहे पर
बड़े बड़े लोगों की,गाड़ियाँ ,
रोक दिया करता है,हाथ के इशारे पर
बाल जब सर पर उगते है ,
तो कुंतल बन लहराते,सवाँरे जाते है
वो ही बाल,जब गालों पर उगने का दुस्साहस करते है,
रोज रोज शेविंग कर,काट दिए जाते है
बड़े बड़े अफसर,जब होते कुर्सी पर,
तो उनके आगे ,दफ्तर भर डरता है
पर घर पर तो उसकी,बॉस उसकी बीबी है,
उसी के इशारों पर ,नाच किया करता है
रौब दिखलाने में,आदमी के रुतबे की,
बड़ी सहायता होती है
हमेशा देखा है,बल की प्रधानता नहीं,
आदमी की पोजीशन की प्रधानता होती है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार
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पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
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4 घंटे पहले
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