खोज- भगवान् के कण की
बनायी किसने ये दुनिया, पहाड़,नदिया,समंदर
पेड़ और पौधे बनाये ,कीट, पक्षी , जानवर
चाँद तारों से सजाया , प्यारा सा सुन्दर जहाँ
बनाये आदम और हव्वा, उनको फिर लाया यहाँ
और फिर इन दोनों ने आ,गुल खिलाये नित नये
मिले दोनों इस तरह ,मिल कर करोड़ों बन गये
इतना सब कुछ रचा जिसने,शक्ति वो भगवान है
आज उस भगवान के कण ,खोजता इंसान है
समाया कण कण में जो,जिसके अनेकों वेश है
वो अगोचर है अनश्वर, आत्म भू,अखिलेश है
खोज में जिसकी लगे है,ज्ञानी,ध्यानी,देवता
कोई ढूंढें काबा में , काशी में कोई ढूंढता
करो तुम विस्फोट कितनी कोशिशें ही रात दिन
उस अनादि ईश्वर का पार पाना है कठिन
उसको पाना बड़ा मुश्किल,ढूंढते रह जाओगे
सच्चे मन से,खुद में झांको,वहीं उसको पाओगे
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार
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पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
महर्षि पतंजलि अपनें कैवल्य पाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं ,
“ एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब ...
4 घंटे पहले
मोकू कहाँ ढूंढें रे बंदें मैं तो तेरे ....न काबा न काशी ...
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