सत्ता का खेल
मेरे मोहल्ले में,
कुछ कुत्तों ने,
अपना कब्ज़ा जमा रखा है
जब भी किसी दूसरे मोहल्ले से,
कोई कुत्ता हमारे मोहल्ले में ,
घुसने की जुर्रत करता है,
ये कुत्ते ,भोंक भोंक कर,
उसके पीछे पड़,उसे खदेड़ देते है
पर जब ,हमारे ही मोहल्ले की,
तीसरी या चौथी मंजिल की गेलरी से,
कोई पालतू कुत्ता भोंकता है,
ये कुत्ते ,सामूहिक रूप से,
गर्दन उठा,उसकी तरफ देख,
कुछ देर तक तो भोंकते रहते है,
पर अंत में,बेबस से बोखलाए हुए,
उस घर के नीचे की दीवार पर,
एक टांग उठा कर,
मूत कर चले जाते है
अपनी एक छत्र सत्ता को ऐसे ही चलाते है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ
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कोहरे का घूंघट,
हौले से उतार कर।
चम्पई फूलों से,
रूप का सिंगार कर।
अम्बर ने प्यार से,
धरती को जब छुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ।
धूप गुनगुनाने ...
1 दिन पहले
कुत्ते को लेकर कही गयी गंभीर बात
जवाब देंहटाएंसुंदर व्यंग्य ...
बधाई !!
जैसा माहौल होता है
जवाब देंहटाएंकुत्ते भी वैसे ही हो जाते है
कटखन्ने होते है जिस
घर के लोग
वहाँ के कुत्ते भी काट
खाते हैं।
कुत्तों का दोष नहीं है ।