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मंगलवार, 31 जुलाई 2012

कुछ पंक्तियाँ


ज़िन्दगी में सभी की , अफ़साने बहुत हैं
सुनाने को अब भी तराने बहुत हैं
किसी के पास सर छुपाने को छत भी नहीं 
तो किसी के पास आशियाँ बनाने को ठिकाने बहुत हैं |




अनु डालाकोटी पपनै

बुधवार, 18 जुलाई 2012

एक कदम पीछे हटा कर देखिये

एक कदम पीछे हटा कर देखिये

एक कदम पीछे हटा कर देखिये,

              मुश्किलें सब खुद ब खुद हट जायेगी
अहम् अपना छोड़ पीछे जो हटे,
              आने  वाली बलायें टल जायेगी
सामने वाला तो ये समझेगा तुम,
              उसके  डर  के मारे पीछे   हट गये
उसको खुश होने दो तुम भी खुश रहो,
             दूर तुमसे हो कई   संकट  गये
अगर तुमको पलट कर के वार भी,
              करना है तो पीछे हट  करना भला
जितनी ज्यादा पीछे खींचती प्रतंच्या,
              तीर उतनी ही गति से है चला
आप पीछे हट रहे यह देख कर,
               सामने वाला भी होता बेखबर
वक़्त ये ही सही होता,शत्रु पर,
               वार चीते सा करो तुम झपट कर
और यूं भी पीछे हटने से तुम्हे,
               सेकड़ों ही फायदे  मिल जायेंगे
नज़र  जो भी आ रहा ,पीछे हटो,
               बहुत सारे नज़ारे  दिख जायेंगे
बहुत विस्तृत नजरिया हो जाएगा,
                संकुचित जो सोच है,बदलाएगी
एक कदम पीछे हटा कर देखिये,
           मुश्किलें सब खुद ब खुद  हट जायेगी

   मदन मोहन बहेती'घोटू'
  

दुनिया की रंगत देख ली

i       दुनिया की रंगत देख ली

क्या बतायें,क्या क्या देखा,जिंदगी के सफ़र में,

        बहुत कुछ अच्छा भी देखा,बुरी भी गत   देख ली
भले अच्छे,झूठें सच्चे,लोगो से मिलना हुआ,
         धोखा खाया किसी से, कोई की उल्फत देख ली
स्वर्ग क्या है,नरक क्या है,सब इसी धरती पे है,
         देखा दोजख भी यहाँ पर,यहीं जन्नत देख ली
उनसे जब नज़रें मिली तो दिल में था कुछ कुछ हुआ,
         और जब दिल मिल गए,सच्ची मोहब्बत देख ली
कमाने की धुन में में थे हम रात दिन एसा लगे,
          चैन अपने दिल का खोकर,ढेरों दौलत   देख  ली
परायों का प्यार पाया,अपनों ने धोखा दिया,
           इस सफ़र में गिरे ,संभले,हर मुसीबत  देख ली
हँसते रोते यूं ही हमने काट दी सारी उमर,
          अच्छे दिन भी देखे और पतली भी हालत देख ली
गले मिलनेवाले कैसे पीठ में घोंपे छुरा,
           कर के अच्छे बुरे सब लोगों की संगत    देख ली
इतनी अच्छी दुनिया की रचना करी भगवान ने,
          घूम फिर कर हमने इस दुनिया  की रंगत  देख ली
जब भी आये हम पे सुख दुःख,परेशानी,मुश्किलें,
             हमने उसकी इबाबत की,और इनायत   देख ली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

 

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

कार चाहिये

        कार चाहिये

आदमी में होना अच्छे संस्कार चाहिये

प्रेमभाव मन में हो,नहीं विकार  चाहिये
बुजुर्गों की करना सेवा ,सत्कार  चाहिये
नहीं करना किसी का भी तिरस्कार  चाहिये
करना अपने सारे सपने ,जो साकार चाहिये
ईश का वंदन करो यदि चमत्कार  चाहिये
मैंने ये सब बातें शिक्षा की जो बेटे से कही,
बेटा बोला ठीक है पर  पहले कार चाहिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


सोमवार, 16 जुलाई 2012

चार चतुष्पदी

      चार चतुष्पदी
              १
बाजुओं में आपके होना बहुत दम चाहिये
जिंदगानी के सफ़र में सच्चा हमदम चाहिये
अरे'मै'मै'मत करो,'मै 'से झलकता अहम् है,
साथ सबका चाहिये तो 'मै'नहीं'हम 'चाहिये
                २
किटकिटाते दांतों को,होंठ छुपा देते है
चेहरे की रौनक में,चाँद  लगा देते है
होंठ मुस्कराते तो फूल बिखरने लगते,
होंठ मिले,चुम्बन का स्वाद बढ़ा देते है
               ३
दूध में खटास डालो,दूध  फट जाता है
रिश्तों में खटास हो तो घर टूट जाता है
जीवन तो पानी का ,एक बुलबुला भर है,
हवा है तो जिन्दा है,वर्ना फूट जाता है
                ४
मुझे,आपको और सभी को ये  पता है
अँधा भी रेवड़ी,अपनों को ही बांटता है
सजे  से शोरूम से जो तुम उतारो सड़क पर,
पैरो तले कुचलने से,जूता भी काटता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


मेरे दिल का मकां खाली

मेरे दिल का मकां खाली

घुमड़ कर छातें है बादल,पर बरसते हैं नहीं

आप खुश तो नज़र आते,मगर हँसते है नहीं
खामखाँ ही आशियाना,ढूँढने को  भटकते ,
मेरे दिल का मकां  खाली ,इसमें बसते हैं नहीं
पड़े तनहा बिस्तरे पर ,रहते हैं तकिया लिए,
हमें तकिया समझ बाँहों में यूं  कसते है  नहीं
करते रहते खुद से बातें,आईने के सामने,
मुस्करा ,दो घडी ,बातें,हमसे करते है नहीं
बेपनाह इस हुस्न को लेकर न यूं इतराइये,
इश्क के बिन हुस्न वाले,भी उबरते है नहीं
करने इजहारे मुहब्बत,आपके दर आयेंगे,
हम वो आशिक ,जो किसी से,कभी डरते है नहीं
क्या कभी देखा है तुमने,जिनके दिल हो धधकते,
वो हमारी तरह ठंडी आहें भरते है   नहीं
आपकी इस बेरुखी ने,कितना तडफाया हमें,
खुद भी तड़फे होगे क्या ये ,हम समझते हैं नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

क्या जरूरी गाय घर में पालना?

    क्या जरूरी गाय घर में पालना?

क्या जरूरी गाय घर में पालना,

                      दूध मिलता है बहुत बाज़ार में
क्यों उठायें सेकड़ों हम जहमतें,
                      दूध पाने के लिए    बेकार में
चंद महीने दूध देती गाय  है,
                        कुछ दिनों के बाद होती ड्राय है
साथ में बछड़ा पड़ेगा पालना,
                        दूध पीने का  अगर जो   चाव है
दूध देती गाय मारे लात भी,
                         दूध के  संग  लात भी तो खाइये
मार  से बचना अगर है आपको,
                        प्यार से पुचकारिये, सहलाइये
 घास भी सूखी,हरी चरवाईये ,
                        दाना,पानी,खली ,बंटा दीजिये
बांध कर रखिये,न तो भग जायेगी,
                        सौ तरह की मुश्किलें सर लीजिये
सींगों से भी बचना होगा संभल कर,
                          बहुत पैनापन है  इनकी  मार में
क्या जरूरी गाय घर में पालना,
                          दूध मिलता है बहुत   बाज़ार में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

   
 

रविवार, 15 जुलाई 2012

सत्ता का खेल

         सत्ता का खेल

मेरे मोहल्ले में,

कुछ कुत्तों ने,
 अपना कब्ज़ा जमा रखा है
जब भी किसी दूसरे मोहल्ले से,
कोई कुत्ता हमारे मोहल्ले में ,
घुसने की जुर्रत करता है,
ये कुत्ते ,भोंक भोंक कर,
उसके पीछे पड़,उसे खदेड़ देते है
पर जब ,हमारे ही मोहल्ले की,
तीसरी या चौथी मंजिल की गेलरी से,
कोई पालतू कुत्ता भोंकता है,
ये कुत्ते ,सामूहिक रूप से,
गर्दन उठा,उसकी तरफ देख,
कुछ देर तक तो भोंकते रहते है,
पर अंत में,बेबस से बोखलाए हुए,
उस घर के  नीचे की दीवार पर,
एक टांग उठा कर,
मूत कर चले जाते है
अपनी एक छत्र सत्ता को ऐसे ही चलाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'



शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

मुस्कराना सीख लो

         मुस्कराना सीख लो

जिंदगी में हर ख़ुशी मिल जायेगी,

                        आप थोडा  मुस्कराना  सीख लो
रूठ जाना तो बहुत आसन है,
                      जरा रूठों  को मनाना   सीख लो
जिंदगी  है चार दिन की चांदनी,
                       ढूंढना    अपना ठिकाना  सीख लो
अँधेरे में रास्ते मिल जायेंगे,
                      बस जरा  अटकल लगाना  सीख लो
विफलताएं सिखाती है बहुत कुछ,
                    ठोकरों से  सीख पाना,    सीख लो
सफलता मिल जाये इतराओ नहीं,
                     सफलता को तुम पचाना  सीख लो
कौन जाने ,नज़र कब,किसकी लगे,
                     नम्रता सबको दिखाना सीख लो
बुजुर्गों के पाँव में ही स्वर्ग है,
                     करो सेवा,मेवा पाना सीख लो
सैकड़ों आशिषें हैं बिखरी पड़ी,
                    जरा झुक कर ,तुम उठाना सीख  लो
जिंदगी एक नियामत बन जायेगी,
                    बस सभी का  प्यार पाना  सीख लो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'



पति -दो दृष्टिकोण

         पति -दो दृष्टिकोण
      1
पति वो प्राणी है,
जो नहीं होता बीबी का नौकर
क्योंकि नौकर,
कब रहा है किसी का होकर
जरा सी ज्यादा पगार मिली,
दूसरे   का हो जाता है
पति तो प्रेम में अभिभूत,
वो शरीफ बंदा है,
जो उमर भर ,
बीबी के हुकुम बजाता है
          २
भगवान वो शक्ति है
जो इस संसार को चलाये रखती है
हम सबको है इस बात का ज्ञान
कि भावनाओं के भूखे है भगवान
हम भगवान को प्रसाद चढाते है
नाम उनका होता है पर खुद खाते है
वो मिटटी का माधो सा,मूर्ती बना,
 बिराजमान रहता है मंदिर के अन्दर
और सभी काम होते है,
उसका नाम लेकर
पति कि गती भी,
ऐसी ही होती है अक्सर
वो भी मूर्ती बना ,
चुपचाप रहता है घर के अन्दर
और उसकी पत्नी,पुजारन बनी,
उसका नाम लेकर ,
घर  का सब काम काज संभालती है
ठीक हो तो यश खुद लेती है,
गलत हो तो जिम्मेदारी उस पर डालती है
और पति मौन,
सब कुछ सहता जाता है
फिर भी मुस्कराता है
इसीलिये पति को परमेश्वर कहा जाता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 11 जुलाई 2012

आज फिर मौसम सुहाना हो गया है

आज फिर मौसम सुहाना हो गया है

शुरू तेरा मुस्कराना  हो गया है

आज फिर मौसम सुहाना हो गया है
 जिंदगी बदली है जब से इस गली में,
शुरू तेरा आना जाना हो गया है
तरसती आँखें तेरे दीदार को,
आरजू बस तुझको पाना हो गया है
दिखा कर हुस्नो अदाये, नाज़ से,
काम  बस हमको   सताना हो गया है
अब भी आतिश है हमारे जिगर में,
जिस्म का चूल्हा पुराना हो गया है
बारिशों में भीगता देखा तुम्हे,
बेसबर ये दिल दीवाना हो गया है
ऐसी तडफन बस गयी दिल में मेरे,
हँसे खुलके,एक ज़माना हो गया है
क्या बतायें,आजकल अपना मिजाज़,
कुछ अधिक ही आशिकाना हो गया  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कंसल्टंट(consultant )

 कंसल्टंट(consultant )

जिंदगी की राह   में कुछ लोग,

जब मुश्किलों से घिर जाते है
ठोकर खाते है और गिर जाते है
और फिर उठ कर जब खड़े होते है
उनके पास अनुभव बड़े होते है
मैदाने जंग में गिरने वाले शहसवार
जब फिर से होते है घोड़े पर सवार
अनुभवों की धूल से सन जाते है
और कुछ बने न बने,
कंसल्टंट  जरूर बन जाते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

प्याज और प्यार

          प्याज  और प्यार

प्याज                                      प्यार

आज                                       मेरे यार
कितने ही रसोईघरों में,             जीवन का
कर रहा है राज                          है सच्चा  सार
कितनी ही परतों में,                  दिल की गहराइयों में
छुपा हुआ रहता है                     बसा हुआ रहता है
बाहर सूखा दिखता पर,              उम्र बीत जाने पर भी,
अन्दर ताज़ा रहता है                 सदा जवान रहता है
 अगर काटतें है तो,                  विरह की रातों में,
आंसू भी लाता है                       आंसू बन बहता है
लेकिन वो खाने का,                  जीवन के जीने का,
 स्वाद भी बढाता है                     स्वाद भी बढाता है
दबाये ना दबती,                        छुपाये ना छुपती,
पर इसकी गंध है                       पर इसकी सुगंध है
पर सेहत के लिये,                     प्यार हो जीवन में,
फायदेबंद  है                              आता आनंद है
                   प्याज का आकार
                  दिल के आकार से,
                   कितना मिलता जुलता है
                   प्याज हो या प्यार,
                   दोनों में सचमुच में,
                   कितनी समानता है
 मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 
  

रविवार, 8 जुलाई 2012

आशा की डोर

        आशा की डोर

आसमां को देखते थे रोज इस उम्मीद से,

          घुमड़ कर बादल घिरें,और छमाछम  बरसात हो
ताकते थे अपनी खिड़की से हम छत पर आपकी,
          दरस पायें आपका और आपसे  कुछ   बात हो
बादलों ने तो हमारी बात ससरी मान ली,
          और वो दिल खोल बरसे,  बरसता है प्यार ज्यूं
हम तरसते  ही रहे पर आपके दीदार को,
          आपने पूरी नहीं की,मगर दिल की आरजू
हो गयी निहाल धरती ,प्यार की बौछार  से,
            सौंधी सौंधी महक से वो गम गमाने लग गयी
और हम मायूस से है,मिलन के सपने लिये,
            बेरुखी ये आपकी  दिल को जलाने  लग गयी
मोर नाचे पंख फैला,बीज  बिकसे खेत में,
            बादलों की बरस से मन सभी का हर्षित  रहा
भीगने को बारिशों में तुम भी छत पर आओगी,
              ये ही सपने सजा छत को देखता  मै नित रहा
और मुझको आज भी है,आस और विश्वास  ये,
              तमन्नायें मेरे दिल की एक दिन रंग लायेगी
बारिशों में आई ना तो  सर्दियों में  आओगी,
               कुनकुनी सी धुप जब छत पर  तुम्हारे छायेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


    
       
                

बदलते मौसम

 बदलते मौसम

जब ज्यादा गर्मी पड़ती है

तो कितनी मुश्किल बढती है
बार बार बिजली  जाती है
पानी की दिक्कत आती है
और जब आती बारिश ज्यादा
वो भी हमको नहीं सुहाता
सीलन,गीले कपडे, कीचड
और जाने कितनी ही गड़बड़
और जब पड़ती ज्यादा सर्दी
तो मौसम लगता बेदर्दी
तन मन की ठिठुरन बढ़ जाती
गरम धूप है हमें सुहाती
जब भी मौसम कोई बदलता
थोड़े दिन तो अच्छा लगता
लेकिन फिर लगता चुभने
क्यों होता सोचा क्या तुमने?
क्योंकि लालसा जिसकी मन में
जब वो आता है जीवन में
थोड़े दिन तो मन को भाता
लेकिन फिर है जी उकताता
ये तो मानव का स्वभाव है
कुछ दिन रहता बड़ा चाव है
किन्तु चाहता फिर परिवर्तन
स्वाद चाहिये  नूतन,नूतन
प्रकृति काम करे है अपना
ठिठुरन कभी बरसना,तपना
वैसे ही निज काम करें हम
और मौसम से नहीं डरें हम
मौसम तो है आते ,जाते
मज़ा सभी का लो मुस्काते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम

स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम

 एक बार भगवान विष्णु,
 अपने वहां गरुड़ पर बैठ कर,
 शिवजी से मिलने,
पहुंचे पर्वत कैलाश   पर
शिवजी के गले में पड़ा सर्प,
गरुड़ को देख कर,गर्व से फुंकार मारता रहा
तो मन मसोस कर गरुड़ ने कहा
स्थानं प्रधानम न बलं प्रधानम
तेरा मेरा बैर हर कोई जानता है
पर इस समय तू शिवजी के गले में है,
इसलिए फुफकार मार रहा है,
ये तेरे बल की नहीं,स्थान की प्रधानता है
आदमी की पोजीशन,
उसके व्यवहार में,स्पष्ट दिखलाती है
सुहागरात को दुल्हन बनी गधी भी इतराती है
गरीब से गरीब आदमी भी,
जब घोड़ी चढ़ता है,दूल्हा राजा बन जाता है
कुर्सी पर बैठा,छोटा सा जज  भी,
बड़े बड़े लोगों को जेल भिजवाता है
अदना सा ट्रेफिक हवालदार,सड़क के चोराहे पर
बड़े बड़े लोगों की,गाड़ियाँ ,
रोक दिया करता है,हाथ के इशारे पर
बाल जब सर पर उगते है ,
तो कुंतल बन लहराते,सवाँरे जाते है
वो ही बाल,जब गालों पर उगने का दुस्साहस करते है,
रोज रोज शेविंग कर,काट दिए जाते है
बड़े  बड़े अफसर,जब होते कुर्सी पर,
तो उनके आगे ,दफ्तर भर डरता है  
पर घर पर तो उसकी,बॉस उसकी बीबी है,
उसी के इशारों पर ,नाच किया करता है
रौब दिखलाने में,आदमी के रुतबे की,
बड़ी  सहायता होती है
हमेशा देखा है,बल की प्रधानता नहीं,
आदमी की पोजीशन की प्रधानता होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 7 जुलाई 2012

कुछ परिभाषायें

              कुछ परिभाषायें
                   1
             राष्ट्रपिता      
    ये वो महान आत्मा है,जो राष्ट्र  को बनाता है
    भूखा रहता है,उपवास करता है
    दुश्मनों से लड़ता है,आन्दोलन करता है
राष्ट्र को गुलामी के फंदे से छुड़ाता है
और गोलियां खाकर के,शहीद हो जाता  है
दीवारों पर तस्वीर बन कर बन कर लटक जाता है
या फिर नोटों पर छाप दिया जाता  है
साल में एक दिन छुट्टी दिलाता है और याद किया जाता है
 वो महा पुरुष,राष्ट्रपिता कहलाता है
                     २
           राष्ट्रपति
ये वो निरीह प्राणी है,
जो घर का मुखिया तो कहलाता है
पर सारे फैसले  उसकी बीबी,
याने कि केबिनेट लेती है,
वो तो सिर्फ मोहर लगाता है
पति कि तरह सारे सुख पाता है
पर खुद कुछ  नहीं कर पाता है
पति कि तरह रहता है,
इसलिए राष्ट्र पति कहलाता है
                  ३
   सांसद निधि
ये जनता से करों द्वारा वसूला गया वो धन है,
जो जनता के नुमाइंदो को,
विकास के लिये बांटा  जाता है,
और जिससे वे,पहले अपना ,
फिर अपने    परिवार का विकास करते है,
और बची हुई सारी राशि,
अगले चुनाव में,
जनता को  लुटा दिया करते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


खंडहर बोलते हैं

     खंडहर बोलते हैं

जब भी मै कोई पुरानी इमारत के ,

खंडहर देखता हूँ,
मेरी कल्पनायें,पर लग कर उड़ने लगती है,
और पहुँच जाती है उस कालखंड में,
जब वो इमारत  बुलंद हुआ करती थी
जब वहां जीवन का संगीत गूंजता था
क्योंकि खंडहर काफी कुछ बोलते है
बस आपको उनकी भाषा की समझ होनी चाहिए
और कल्पना शक्ति होनी चाहिये ये देखने की,
कि आज जहाँ घिसी और उखड़ी हुई फर्श है,
कभी  वहां,गुदगुदे कालीन पर,
किसी के मेंहदी से रचे कोमल पांवों की,
पायल की छनछन सुनाई देती थी
और आज की इन बदरंग दीवारों ने,
जीवन के कितने रंग देखे  होंगें
अगर आपकी कल्पनाशक्ति तेज़ है,
और नज़रें पारखी है,
तो आप इतना कुछ देख सकते हो,
जो किसी ने नहीं देखा होगा
आप जब भी किसी बूढी महिला  को देखें ,
तो कल्पना करें,
कि जवानी के दिनों में,
उनका स्वरूप कैसा रहा होगा
झुर्री वाले गालों में कितनी लुनाई  होगी
ढले हुए तन पर ,कितना कसाव होगा
आज जो वो इतनी गिरी हुई हालत में है,
जवानी में उनने कितनी बिजलियाँ गिराई होगी
और जब आप उनकी जवानी कि तस्वीरों को,
अपने ख्यालों में उभरता हुआ साकार देखेंगे,
सच आपको बड़ा मज़ा आएगा
ये शगल इतना मनभावन होगा,
कि आसानी से वक़्त गुजर जाएगा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

काश तुम समझ पाते


काश तुम समझ पाते,
कि जब चुना था तुम्हें,
तो कितना विश्वास था तुमपे,
अच्छा जँचे थे तुम;

बेहतर लगे थे सबसे,
सबसे सच्चे भाते,
बहुत आस था तुमसे,
काश तुम समझ पाते |

थे तो कई,
मैदान में लेकिन,
तेरे ही नाम को,
पसंद किया हमने;

इन बातों पे थोड़ा,
तुम गौर तो फरमाते,
भावनाओं को हमारी,
काश तुम समझ पाते |

यूं सिला दोगे,
यूं रुलाओगे हुमे,
भूल जाओगे सबकुछ,
ये सोचा न था;

चुनाव को हमारे,
तुम सही तो ठहराते,
बहुत खुशी होती हमे,
काश तुम समझ पाते |

चुन करके गए,
फिर दर्शन भी न हुए,
ज्यों जन-प्रतिनिधि नहीं,
ईद का चाँद हो गए;

कभी-कभार तो आते,
बस हाल ले के जाते,
गर्व होता हमको,
काश तुम समझ पाते |

आज हम परेशान हैं,
तरह तरह की समस्याओं से,
हमारे बीच के होके भी,
तुम हमारे न रहे;

हर वोट की कीमत,
ऐ काश तुम चुकाते,
बन जाते महान,
काश तुम समझ पाते |

जन-जन है लाचार,
दो रोटी को तरसते,
और लगे हो तुम,
झोली अपनी भरने में;

निःस्वार्थ होकर थोड़ा,
परमार्थ भी दिखाते,
सच्चा नेता कहलाते,
काश तुम समझ पाते |

गुरुवार, 5 जुलाई 2012

प्राण प्रिये

वेदना संवेदना निश्चल कपट
को त्याग बढ़ चली हूँ मैं
हर तिमिर की आहटों का पथ
बदल अब ना रुकी हूँ मैं
साथ दो न प्राण लो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

निश्चल हृदय की वेदना को
छुपते हुए क्यों ले चली मैं
प्राण ये चंचल अलौकिक
सोचते तुझको प्रतिदिन
आह विरह का त्यजन कर
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

अपरिमित अजेय का पल
मृदुल मन में ले चली मैं
तुम हो दीपक जलो प्रतिपल
प्रकाश सौरभ बन चलो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।

मौन कर हर विपट पनघट
साथ नौका की धार ले चली मैं
मृत्यु की परछाई में सुने हर
पथ की आस ले चली मैं
दूर से ही साथ दो अब
चलने दो मुझे ओ प्राण प्रिये ।
--- दीप्ति शर्मा 

रोबोट बन कर रह गये

      रोबोट बन कर रह गये

चाहते थे मंगायें जापान से रोबोट हम,
                  शादी करली और खुद  रोबोट बन कर रह गये
हम तो थे बाईस केरट, जब से पर हीरा जड़ा,
                चौदह केरट हुए ,बाकी खोट बन कर   रह गये
कभी किशमिश की तरह थे,मधुर ,मीठे, मुलायम,
                एसा   बदला  वक़्त ने, अखरोट  बन कर रह गये
बुदबुदा सकते हैं लेकिन बोल कुछ सकते नहीं,
              किटकिटाते दांतों के संग,  होंठ  बन कर रह गये
गाँधी जी का चित्र है पर आचरण विपरीत है,
               रिश्वतों में देने वाले    ,नोट बन कर  रह गये
आठ दस भ्रष्टों में से ही नेता चुनना है तुम्हे,
               लोकतंत्री व्यवस्था के, वोट बन कर रह गये
कभी टेढ़े,कभी सीधे,कभी चलते ढाई घर,
               बिछी शतरंजी बिसातें,  गोट बन कर रह गये
चाहते थे बनना हम क्या, और 'घोटू' क्या बने,
               टीस देती हमेशा वो चोंट    बन कर  रह गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

कौनसा वो तत्व है-जिसमे छुपा अमरत्व है?

      कौनसा वो तत्व है-जिसमे छुपा अमरत्व है?

समंदर में भरा है जल

जल से फिर बनते है बादल
और वो बादल बरस के,
पानी की बूंदों  में झर झर
कभी सींचें ,खेत बगिया
कभी जमता बर्फ बन कर
कभी नदिया बन के बहता,
और फिर बनता समंदर
ये ही है जीवन का चक्कर
जो कि चलता  है निरंतर
ये ही तो वो तत्व है
जिसमे बसा अमरत्व है
बना है माटी का ये तन
बड़ा क्षण भंगुर है जीवन
पंच तत्वों से बनी है,
तुम्हारी काया अकिंचन
सांस के डोरी रुकेगी,
जाएगी जब जिंदगी थम
जाके  माटी में मिलेगा,
फिर से माटी जाएगा बन
ये ही जीवन का चक्कर
जो कि चलता है निरंतर
ये ही तो वो तत्व है
जिसमे बसा अमरत्व है
 हवायें जीवन भरी है,
सांस बन कर सदा चलती
और कार्बन डाई ओक्साइड
बनी बाहर   निकलती
फिर उसे ये पेड़ ,पौधे,
पुनः ओक्सिजन बनाये
विश्व में हर एक जगह ,
पर सदा रहती हवायें
ये ही है जीवन का चक्कर
जो कि चलता है निरंतर
ये ही तो वो तत्व है
जिसमे बसा  अमरत्व है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


बुधवार, 4 जुलाई 2012

खोज- भगवान् के कण की

      खोज- भगवान् के कण की

बनायी किसने ये दुनिया, पहाड़,नदिया,समंदर

पेड़ और पौधे   बनाये ,कीट, पक्षी , जानवर 
चाँद तारों से सजाया , प्यारा सा सुन्दर जहाँ
बनाये आदम और हव्वा, उनको फिर लाया यहाँ
और फिर इन दोनों ने आ,गुल खिलाये  नित नये
मिले दोनों  इस तरह ,मिल कर करोड़ों  बन गये
इतना सब कुछ रचा जिसने,शक्ति वो भगवान है
आज उस भगवान के कण ,खोजता इंसान है
समाया  कण कण में जो,जिसके अनेकों वेश है
वो अगोचर है अनश्वर, आत्म भू,अखिलेश है
खोज में जिसकी लगे है,ज्ञानी,ध्यानी,देवता
कोई ढूंढें  काबा में , काशी में  कोई   ढूंढता
करो तुम विस्फोट कितनी कोशिशें  ही रात दिन
उस अनादि ईश्वर का पार पाना  है   कठिन
उसको पाना बड़ा मुश्किल,ढूंढते  रह जाओगे
सच्चे मन से,खुद में झांको,वहीं उसको पाओगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
 

मार दी

        मार दी

हुस्नवाले हो गए है ,देखो कितने बेरहम,

              गिराई बिजलियाँ हम पर, नज़र तिरछी मार दी
वो भी थे कुछ में और हम भी थे कुछ सोच में,
               जरा सी गफलत हुई, आपस  में टक्कर   मार दी
 देख उनको आँख फडकी,बंद सी कुछ हो गयी,
                हम पे है आरोप हमने ,  आँख उनको   मार दी
व्यस्त थे हम देखने में ,जलवा उनके हुस्न का,
                 दिलजले ने मौका पा,पाकिट हमारी मार दी
दिखाये थे हमको उनने,सपन सुन्दर,सुहाने,
                  वक़्त कुछ देने का आया ,उनने डंडी मार दी
वोट के बदले में हमको नेताजी ने क्या दिया,
                    दाम चीजों के बढ़ा,   मंहगाई की बस मार दी
बड़ा लम्बा लेक्चर था,और वो भी बेवजह,
                    हमने देखा,हमसे कितनो ने थी झपकी  मार दी
आ रहा था बड़ा आलस,मूड था आराम का,
                     बिमारी के बहाने हमने     भी छुट्टी   मार दी
लोग इतने प्रेक्टिकल हो गये है आजकल,
                     जिसको भी मौका मिला  तो दूसरों की  मार दी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'         

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

चार दिन की चांदनी

         चार दिन की चांदनी

कौन कहता है कि होती चांदनी है चार दिन,

                         और उसके बाद फिर होती अँधेरी रात है
आसमां की तरफ को सर उठा ,देखो तो सही,
                         अमावास को छोड़ कर ,हर रात आता चाँद है
सर्दियों के बाद में चलती है बासंती हवा,
                       और  तपती गर्मियों के    बाद में  बरसात है
वो ही दिख पाता है तुमको,जैसा होता नजरिया,
                      सोच  जो आशा भरा है,  तो सफलता  साथ  है
  देख कर हालात को ,झुकना,  बदलना  गलत है,
                     आदमी वो है कि जो खुद ,बदलता    हालात है
 सच्चे मन से चाह है,कोशिश करो,मिल जाएगा,
                      उस के दर पर ,पूरी होती ,सभी की  फ़रियाद  है
      
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तेरी रहमत चाहिये

      तेरी रहमत चाहिये

कोई नक़्शे को इमारत में बदलने के लिये,

                     थोड़ी ईंटें,थोडा गारा, थोड़ी मेहनत   चाहिये
चाँद को पाने की मन में हो  कशिश तो मिलेगा,
                     हो बुलंदी हौंसले में,  सच्ची चाहत    चाहिये
खूब सपने देखिये,अच्छा है सपने देखना,
                     सपने पूरे करने को ,करनी कवायत   चाहिये
जिंदगी के इस सफ़र में,आयेंगे रोड़े कई,
                     मन में मंजिल पाने का जज्बा और हिम्मत चाहिये
हँसते हँसते ,जिंदगी ,कट जाएगी आराम से,
                      एक सच्चे हमसफ़र  का संग,सोहबत    चाहिये
जन्म देकर ,पाला पोसा और लायक बनाया,
                     साया हो माँ बाप का सर पर,न जन्नत  चाहिये
खुदा ने बोला कि बन्दे,मांग  ले जो मांगना,
                      मैंने  बोला मिल गया तू, तेरी रहमत    चाहिये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 2 जुलाई 2012

तैरना

          तैरना

ये दुनिया,

पानी भरा  तालाब है
इसमें तुम जब उतरते  हो
डूबने लगते हो
पानी में हाथ पैर मारोगे,
तो बदले में पानी भी,
तुम्हे ऊपर की तरफ उछालेगा
और तुम्हारा ये हाथ पैर मारना ही,
तुम्हे डूबने से बचा  लेगा
डर को भगाओगे
तो अपने आप तैरना सीख जाओगे
क्योंकि मुझे,आपको सबको पता है
की मार के आगे भूत भी भागता है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लज्जत

             लज्जत

जो मज़ा शादी के पहले,शादी के पश्चात् क्या
लुत्फ़ भूखे पेट का वो खाना खाने बाद क्या
सौ गुना बेहतर है सन्डे से सटरडे ईवनिग,
जल्दी उठने की फिकर में,सोवो वो भी रात क्या
देती है राहत जो आती, गर्मियों के बाद में,
झड़ी लग करती परेशां, ऐसी भी बरसात क्या
गोलगप्पे का मज़ा,पानी भरो और गटक लो,
देर की और गल गये  तो बचा उनमे  स्वाद क्या
समंदर के सीने से पैदा हो सीधे   भागती,
किनारे पर लहरों का देखा मिलन उन्माद क्या
कभी आइसक्रीम,कुल्फी,दही,रसगुल्ला कभी,
मज़ा दे हर रूप में जो,दूध की  है बात क्या
खाने की लज्जत है असली,लोग कहते उँगलियाँ,
मुंह में घुलता ही न जो रह जाये  फिर वो स्वाद क्या
पकड़ ऊँगली,सीखा चलना,अब दिखाते उँगलियाँ,
साथ में बढती उमर के,  बदलते हालात  क्या

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 1 जुलाई 2012

दूरियाँ

दूरियां हमेशा दर्द ही नहीं देती, 
कभी कभी खुशनुमा एहसास भी कराती है ये दूरियां; 
दूरियां हमेशा रिश्तों को नहीं तोडती, 
अक्सर टूटते रिश्तों को भी मजबूत कराती है ये दूरियां | 

दूरियाँ हमेशा नफरत ही नहीं फैलाती, 
कभी कभी अनुपम प्रेम की अनुभूति भी कराती है ये दूरियाँ; 
दूरियाँ हमेशा फासले ही नहीं बढ़ाती, 
कभी कभी दूर हुए दो दिलों को नजदीक भी लाती है ये दूरियाँ | 

दूरियाँ सिर्फ ओझल ही नहीं करती, 
कभी कभी दिल ही दिल मे दीदार भी करती है ये दूरियाँ; 
दूरियों का मतलब सिर्फ जुदाई नहीं "दीप", 
कभी कभी एक अनोखा मिलन भी कराती है ये दूरियाँ | 

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