इतना ही काफी है
बच्चे ,अब बढे हो गये है
अपने पैरों पर खड़े हो गये है
ख़ुशी है ,कुछ बन गये है
गर्व से पर तन गये है
कभी कभी जब मिलते
लोकलाज या दिल से
चरण छुवा करते है
कमर झुका लेते है
ये भी क्या कुछ कम है
खुश हो जाते हम है
नम्रता कुछ बाकी है
इतना ही काफी है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ
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कोहरे का घूंघट,
हौले से उतार कर।
चम्पई फूलों से,
रूप का सिंगार कर।
अम्बर ने प्यार से,
धरती को जब छुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ।
धूप गुनगुनाने ...
4 घंटे पहले
सटीक पंक्तियाँ - इतना ही काफी है समझाने को, मन को.
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