सज,संवर मत जाओ छत पर
इस तरह तुम सज संवर कर,नहीं जाया करो छत पर
मुग्ध ना हो जाए चंदा , देख कर ये रूप सुन्दर
है बड़ा आशिक तबियत,दिखा कर सोलह कलायें
लगे ना कोशिश करने , किस तरह् तुमको रिझाये
और ये सारे सितारे, टिमटिमा ना आँख मारे
छेड़खानी लगे करने ,पवन छूकर अंग सारे
है बहुत बदमाश ये तम,पा तुम्हे छत पर अकेला
लाभ अनुचित ना उठाले ,और करदे कुछ झमेला
देख कर कुंतल तुम्हारे,कुढ़े ना दल बादलों के
लाख गुलाबी लब,भ्रमर, गुंजन करें ना पागलों से
समंदर मारे उंछालें ,रात पूनम की समझ कर
इसलिए जाओ न छत पर,रात में तुम सज संवर कर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ
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कोहरे का घूंघट,
हौले से उतार कर।
चम्पई फूलों से,
रूप का सिंगार कर।
अम्बर ने प्यार से,
धरती को जब छुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ।
धूप गुनगुनाने ...
4 घंटे पहले
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