नींद
बिन बुलाये चली आती,नींद ऐसी मेहमां
किन्तु ये होती नहीं है,हर किसी पे मेहरबां
नरम बिस्तर रेशमी,आना नहीं,ना आयेगी
भरी बस या ट्रेन में भी,आना है,आ जायेगी
जब किसी से प्यार होता,और दिल जाता है जुड़
बड़े लम्बे पंख फैला,नींद फिर जाती है उड़
देखने जिसकी झलक को,तरसते है ये नयन
उन्हें आँखों में बसाती,नींद ला सुन्दर सपन
बहुत जब बेचैन होता,मन किसी की याद में
नींद भी आती नहीं है,उस विरह की रात में
और मिलन की रात में भी,नींद उड़ जाती कहीं
हो मिलन दो प्रेमियों का,बीच में आती नहीं
उठ रहा हो ज्वार दिल में,और प्रीतम संग है
प्रीत के उन मधु क्षणों में,नहीं करती तंग है
ये थकन की प्रेमिका है,बंद होते ही पलक
एक मुग्धा नायिका सी,चली आती बेझिझक
है बडी बहुमूल्य निद्रा,स्वर्ण के भण्डार से
आती है तो कहते सोना आ गया है प्यार से
गरीबों की दोस्त,खुशकिस्मत बहुत होते है वो
चैन सोने की नहीं ,पर चैन से सोते है वो
अमीरों से मगर इसका बैर है दिन रैन का
पास में सोना बहुत पर नहीं सोना चैन का
नींद है चाहत सभी की,दोस्त के मानिंद है
नींद क्या है,क्या बताएं,नींद तो बस नींद है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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*1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा*
*अँधेरे में टटोलती हूँ*
*बाट जोहती आँखें*
*मुट्ठी में दबाए*
*शगुन के रुपये*
*सिर पर धरे हाथों का*
*कोमल अहसास*
*सुबह ...
13 घंटे पहले
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