संगत का असर
सुबह की शीतल हवा,
सूरज का साथ पा,
लू बन, सताती है
संगत के असर से,
आदमी की फितरत भी,
कितनी बदल जाती है
अलग अलग बादल की,
अलग अलग बूँदें भी,
मिल कर धरती पर से
साथ साथ रहती है,
नदिया बन बहती है,
मिलने समंदर से
खेल है किस्मत का,
मगर असर संगत का,
बड़े रंग दिखता है
शादी हो जाने पर,
आदमी के जीवन का,
रुख ही बदल जाता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शिक्षक पुरस्कारों के आवेदन के बोझ तले दबी शिक्षक गरिमा
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*शिक्षक पुरस्कारों के आवेदन के बोझ तले दबी शिक्षक गरिमा*
*खुद की प्रशंसा करने को मजबूर, वो क्या आदर्श बन पाएंगे,*
*खुद को ही साबित करने में जुटे, दूसरों को...
18 घंटे पहले
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