मेरे महबूब न मांग
मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग
बड़े जलते हुए अंगारे थे हम जवानी में
लगा हम आग दिया करते ठंडे पानी में
नहीं कुछ रखा हैअब बातें इन पुरानी में
ऐसी जीवन में बुढ़ापे में अड़ा दी है टांग
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग
गए वह दिन जब मियां फाख्ता मारा करते आती जाती हुई लड़कियों को ताड़ा करते
अब तो जो पास में है उससे ही गुजारा करते
पड़े ढीले ,मगर मर्दानगी का करते स्वांग
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग
हर एक बॉल पर हम मार देते थे छक्का
हमारा जीतना हर खेल में होता पक्का
मगर इस बुढापे ने हमे कहीं का ना रक्खा
जरा सी दूरी तक भी अब न लगा सकते
छलांग
मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग
हमारे साथ नहीं सबके साथ यह होता
अपनी कमजोरियों से करना पड़ता समझौता
आदमी अपनी सारी चुस्ती फुर्ती है खोता
हरकतें करने लगता बुढ़ापे में ऊट पटांग
मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग
मदन मोहन बाहेती घोटू
सुन्दर
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