मैं
मैं जो भी हूं ,जैसा भी हूं,
मुझको है संतोष इसी से
सबकी अपनी सूरत,सीरत
क्यों निज तुलना करूं किसी से
ईश्वर ने कुछ सोच समझकर
अपने हाथों मुझे गढ़ा है
थोड़े सद्गुण ,थोड़े दुर्गुण
भर कर मुझको किया बड़ा है
अगर चाहता तो वह मुझको
और निकृष्ट बना सकता था
या चांदी का चम्मच मुंह में,
रखकर कहीं जना सकता था
लेकिन उसने मुझको सबसा
साधारण इंसान बनाया
इसीलिए अपनापन देकर
सब ने मुझको गले लगाया
वरना ऊंच-नीच चक्कर में,
मिलजुल रहता नहीं किसी से
मैं जो भी हूं जैसा भी हूं ,
मुझको है संतोष इसी से
प्रभु ने इतनी बुद्धि दी है
भले बुरे का ज्ञान मुझे है
कौन दोस्त है कौन है दुश्मन
इन सब का संज्ञान मुझे है
आम आदमी को और मुझको
नहीं बांटती कोई रेखा
लोग प्यार से मुझसे मिलते
करते नहीं कभी अनदेखा
मैं भी जितना भी,हो सकता है
सब लोगों में प्यार लुटाता
सबकी इज्जत करता हूं मैं
इसीलिए हूं इज्जत पाता
कृपा प्रभु की, मैंने अब तक,
जीवन जिया, हंसी खुशी से
मैं जो भी हूं ,जैसा भी हूं
मुझको है संतोष इसी से
मदन मोहन बाहेती घोटू
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