चौरासी के फेरे में
पल-पल करके जीवन बीता
हर दिन सांझ सवेरे में
तिर्यासी की उम्र हो गई
चौरासी के फेरे में
बादल जैसे आए बरस
और बरस बरस कर चले गए
गई जवानी आया बुढ़ापा
उम्र के हाथों छले गए
मर्णान्तक बीमारी आई ,
आई, आकर चली गई
ढलते सूरज की आभा सी
उम्र हमारी ढली गई
यूं ही सारी उम्र गमा दी ,
फंस कर तेरे, मेरे में
तीर्यासी की उम्र हो गई
चौरासी के फेरे में
चौरासीवां बरस लगा अब
आया परिवर्तन मन में
भले बुरे कर्मों का चक्कर
बहुत कर लिया जीवन में
पग पग पर बाधाएं आई,
विपदाओं से खेले हैं
इतने खट्टे मीठे अनुभव
हमने अब तक झेले हैं
अब जाकर के आंख खुली है
अब तक रहे अंधेरे में
तीर्यासी की उम्र हो गई
चौरासी के फेरे में
अब ना मोह बचा है मन में
ना माया से प्यार रहा
अपने ही कर रहे अपेक्षित
नहीं प्रेम व्यवहार रहा
अब ना तन में जोश बचा है
पल-पल क्षरण हो रहा तन
अब तो बस कर प्रभु का सिमरन
काटेंगे अपना जीवन
जब तक तेल बचा, उजियारा
होगा रैन बसेरे में
तीर्यासी की उम्र हो गई
चौरासी के फेरे में
मदन मोहन बाहेती घोटू
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