मेरे एक मित्र ने बात चीत में यह बताया कि वह किसी रिश्तेदार के घर ,रात्रि विश्राम के लिए गये थे।
शेष उनके अनुभव कुछ ऐसे थे।
।।।।।मेहमान का सत्कार।।।
बात चीत होगी जी भरकर।
पहुंचा था मैं यही सोचकर।
कुशल क्षेम जल पान हुआ।
भोजन का निर्माण हुआ।
बैठक कक्ष में खुल गया टी0वी0।
साथ-साथ बैठ गये तब हम भी।
सब के हाथ तब फोन आ गया।
टी0वी0 का आभाष चला गया।
सब टप-टप करने लगे फोन पर।
किसकी किसको सुध वहां पर?
व्यक्ति पांच पर सभी अकेले।
थे गुरु को हाथ उठाये चेले।
सब दुनिया से बेखबर वे।
भ्रांति लोक में पसर गये वे।
मन ही मन वे कभी मुस्कराते।
कभी मुख भाव कसैला लाते।
फिर मैंने भी फोन उठाया।
भ्रांति लोक में कदम बढाया।
पल ,मिनट,घंटे बीत गये।
यहां किसी को सुध नहीं रे।
तभी किसी का फोन बज उठा।
अनचाहे वह कान में पहुंचा।
बात हुई कुछ झुंझलाहट में।
नजर गयी दीवाल घडी़ में।
रात्रि के दस बज गये थे।
शीतल सब पकवान पेड़ थे।
इतनी जल्दी दस बज गये।
व्यन्जन सारे गर्म किये गये
खाना खाया फिर सो गये।
सुबह समय से खडे हो गये।
फिर मैं अपने घर आ गया।
सत्कार मेरे ह्रदय छा गया।
।।।विजय प्रकाश रतूडी़।।।
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