पर्दा
कोई ने खिसका दिया इधर
कोई ने खिसका दिया उधर
लेकिन में अपनी पूर्ण उमर ,
बस रहा लटकता बीच अधर
अवरुद्ध प्रकाश किया करता
मै सबको पर्दे में रखता
मैं हूं परदा , मै हूं परदा
हर घर के खिड़की दरवाजे
की शान द्विगुणित हूं करता
बाहर की गर्मी ठंडक का ,
घर में प्रवेश से वर्जित करता
धूल कीटाणु और मच्छर
घर अंदर आने से डरता
मैं हूं परदा ,में हूं परदा
जब मैं गोरी के मुख पड़ता
तो मैं हूं घुंघट बन जाता
उसके सुंदर मुख आभा को
मै बुरी नजर से बचवाता
मैं लाज शर्म की चेहरे को
ढक कर रखवाली हूं करता
मैं हूं परदा , मैं हूं परदा
मदन मोहन बाहेती घोटू
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