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शनिवार, 16 मई 2020

हमको जाना है अपने घर

बेटी अम्मा की गोदी में ,बेटा पापा के कंधो पर
पीठों पर लटके बैकपैक ,सामान गृहस्थी का भर कर
टूटी चप्पल ,पैरों छाले ,आसान नहीं ,है कठिन डगर
हम निकल पड़े है गावों को ,मन में विश्वास भरा है पर
हम अपनी मंजिल पहुंचेंगे ,धीरे धीरे ,चल कर पैदल
मुश्किल कितनी भी आये मगर ,हमको जाना है अपने घर

हो गए बंद सब काम काज ,मिलती न कहीं भी मजदूरी
घर में खाने को अन्न नहीं , कैसी आयी है  मजबूरी
अब बंद पड़े ,बाजार सभी ,है लगा दुकानों पर ताला
ये कैसी आयी है बिमारी बर्बाद सभी को कर डाला
 बिमारी से तो लड़ सकते ,पर नहीं भूख से सकते लड़
मुश्किल कितनी भी आये पर ,हमको जाना है अपने घर

कुछ प्यास बुझाई कुवों ने ,कुछ छाया दे दी पेड़ो ने
अपनापन दिखा, दिया भोजन कुछ सेवाभावी ,गैरों ने
जब आँख लगी तो लेट गए जब आँख खुली तो निकल पड़े
थी लगन और उत्साह बहुत ,हर आफत से ,जी तोड़ लड़े
डगमग डगमग करते थे पग ,चलना भी भले हुआ दूभर
मुश्किल कितनी भी आये पर ,हमको जाना है अपने घर  

ना बसें,रेल,कोई साधन,जिसमे हम घर तक पहुँच सकें
धीरे धीरे पैदल चल कर ,घर तो पहुंचेंगे ,भले थके
यूं गिरते पड़ते ,कैसे भी ,हमको मंजिल ,मिल जायेगी
जब मिल जाएगा परिवार ,सारी थकान ,मिट जायेगी
है तेज धूप  ,भीषण गर्मी ,पैरों में चुभ जाते कंकर
मुश्किल कितनी भी आये पर ,हमको जाना है अपने घर

गाँव की मिटटी तो अपनी है ,वो तो हमको अपना लेगी
माँ का दुलार मिल जाएगा ,शीतल वायु भी सुख देगी
 गावों के खेत और खलिहान  ,सींचेंगे खून पसीने से
ये सब करना  ,बेहतर होगा ,शहरों में घुट घुट जीने से
जिस माटी में हम जन्मे है ,उस माटी में जाएंगे मर
मुश्किल कितनी भी आये पर ,हमको जाना है अपने घर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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