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मंगलवार, 19 मई 2020

कहीं ऐसा न हो

हम आये थे महानगरों में ,कर काम ,कमाने कुछ पैसे
जब धंधा पानी बंद हुआ ,हम इन नगरों को छोड़ चले
इस कोरोना बिमारी ने ,कर डाला जीवन तहस नहस
ना  धन है ना ही अन्न बचा  ,मजबूर हो रिश्ता तोड़ चले
हम निकल पड़े है पैदल ही, मालूम है लम्बा कठिन सफर
घर जाना है ,घर जाना  है ,सबने ये मन में  ठान  लिया
पहुंचेंगे भी या ना पहुंचेंगे  , जो किस्मत में है ,वो होगा
मुश्किल से बचने को हमने ,मुश्किल का दामन थाम लिया
अब तक हमने ये सोचा नहीं,वहां जाके हमें क्या करना है ,
क्योँकि जब हम घर पहुंचेंगे ,खर्चा  घर का बढ़  जाएगा
हम भेजते शहरों से पैसे ,तब गाँव का घर चलता था ,
गाँवों में कमाई  ना होगी , कैसे फिर घर चल पायेगा  
 हो सकता है थोड़े दिन में ,गाँव की हुड़क कम हो जाए ,
और कन्ट्रोल में आ जाए ,ये कोरोना की महामारी  
शहरों में काम काज धंधे ,वापस पटरी पर आ जाए ,
हमको भी आने लगे  याद ,शहरों की सुख सुविधा सारी
गावों के सीमित साधन से  ,करने में गुजारा मुश्किल हो ,
मंहगाई में  करना जुगाड़ ,बच्चों की  पढाई और कपडे
ऐसा न हो कि कुछ दिन में रोजी रोटी के चक्कर में,
फिर लौट के बुद्धू घर आये और शहर हमें आना न पड़े
,
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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