एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 7 मई 2020

खिसकती हवा

हवा अब हमारी ,खिसकने लगी है
कल तक थी प्यारी
जो बिल्ली हमारी
हमें म्याऊं कह कर ,बिदकने लगी है
जिगर जान हम पर
जो करती निछावर
पिलाती थी शीतल
मोहब्बत भरा जल ,
वो अब हम पे कीचड़ ,छिड़कने लगी है
थी जो मेरी हमदम
हो चाहे ख़ुशी गम
कभी  जिसके दिल में ,
बसा करते  थे हम
वो ढाती सितम है ,झिड़कने लगी है
क्यों हमसे खफा है
हुई बेवफ़ा  है
वो नज़रें चुराती ,
दिखे हर दफ़ा है
दिखाते वफ़ा तो ,बिगड़ने लगी है
हवा अब हमारी ,खिसकने लगी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

1 टिप्पणी:

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-