मन बिरहन का
बरस बरस कर रीते मेघा,
उमर कट गयी बरस बरस कर
बरस बरस तक ,बहते बहते,
आंसू सूखे,बरस बरस कर
मन में लेकर,आस दरस की,
रह निहारी,कसक कसक कर
हमने साड़ी,उम्र गुजारी,
यूं ही अकेले, टसक टसक कर
गरज गरज ,छाये घन काले,
बहुत सताया ,घुमड़ घुमड़ कर
आई यादों की बरसातें,
आंसू निकले ,उमड़ उमड़ कर
नयन निगोड़े,आस न छोड़े,
रहे ताकते,डगर डगर पर
मेरे सपने,रहे न अपने,
टूट गए सब,बिखर बिखर कर
ना आना था,तुम ना आये,
रही अभागन,तरस तरस कर
बरस बरस कर,रीते मेघा,
उमर कट गयी,बरस बरस कर
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पुस्तक समीक्षा : बुद्धिनाथ मिश्र को समझने का सफल प्रयास — रामनारायण रमण
-
समीक्षित पुस्तक : बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता, सम्पादक : अवनीश सिंह चौहान
, प्रकाशक : प्रकाश बुक डिपो, बड़ा बाज़ार, बरेली-243003, दूरभाष:
0581-2572217,...
8 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।