प्रकृति और मानव
समंदर का खारा पानी,
प्रकृति के स्पर्श से,
सूरज की गर्मी पा,
बादल बन बरसता है
मीठा बन जाता है
सब को हर्षाता है
और वो ही शुद्ध जल,
पीता जब है मानव,
तो मानव का स्पर्श पा,
शुद्ध जल ,शुद्ध नहीं रह पाता
मल मूत्र बन कर के,
नालियों में बह जाता
प्रकृति के संपर्क से ,
बुरा भी बन जाता भला,
और मानव के संपर्क से,
भला भी जाता बिगड़ है
प्रकृति और मानव में,
ये ही तो अंतर है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पुस्तक समीक्षा : बुद्धिनाथ मिश्र को समझने का सफल प्रयास — रामनारायण रमण
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समीक्षित पुस्तक : बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता, सम्पादक : अवनीश सिंह चौहान
, प्रकाशक : प्रकाश बुक डिपो, बड़ा बाज़ार, बरेली-243003, दूरभाष:
0581-2572217,...
7 घंटे पहले
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