जीवन लेखा
जीवन के इस दुर्गम पथ पर,पग पग पर भटकाव लिखा है
कहीं धूप का रूप तपाता, कहीं छाँव का ठावं लिखा है
तड़क भड़क है शहरों वाली,बचपन वाला गाँव लिखा है
गीत लिखे कोकिल के मीठे, कागा का भी काँव लिखा है
पासे फेंक खेलना जुआ ,हार जीत का दाव लिखा है
कहीं किसी से झगडा,टंटा ,कहीं प्रेम का भाव लिखा है
अच्छे बुरे कई लोगों से,जीवन भर टकराव लिखा है
प्रीत परायों ने पुरसी है,अपनों से अलगाव लिखा है
लिखी जवानी में उच्श्रन्खलता ,वृद्ध हुए ,ठहराव लिखा है
वाह रे ऊपरवाले तूने,जीवन भर उलझाव लिखा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पुस्तक समीक्षा : बुद्धिनाथ मिश्र को समझने का सफल प्रयास — रामनारायण रमण
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समीक्षित पुस्तक : बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता, सम्पादक : अवनीश सिंह चौहान
, प्रकाशक : प्रकाश बुक डिपो, बड़ा बाज़ार, बरेली-243003, दूरभाष:
0581-2572217,...
8 घंटे पहले
जीवन का नाम ही उलझन है..
जवाब देंहटाएंएक से पीछा छुटा नहीं की दूसरी उलझन तैयार खड़ी रहती है...