साथ छोड़ कर भागी ममता.....
साथ छोड़ कर भागी ममता,अब क्या होगा रे
नज़र आ रहा सूरज ढलता, अब क्या होगा रे
नहीं मुलायम,रहते कायम,अपने वादों पर
नज़र बड़ी आवश्यक रखना,गुप्त इरादों पर
उनका सपना,पी एम् पद का,अब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
माया महा ठगिनी हम जानी,आनी जानी है
कब इसका रुख बदल जाए, ये घाघ पुरानी है
यदि उसने जो पाला पलता,तब क्या होगा रे
नज़र आ रहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
अब तो करूणानिधि से ही करुणा की आशा है
सी बी आइ का दबाब भी अच्छा खासा है
साम दाम से काम न बनता,तब क्या होगा रे
नजर आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
सब चीजों के दाम बढ़ गए,जनता है अकुलायी
सुरसा जैसी मुख फैलाती,रोज रोज मंहगाई
साथ छोड़ देगी यदि जनता,तब क्या होगा रे
नज़र आरहा सूरज ढलता,अब क्या होगा रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
ढाई आखर सभी पढ़ रहे
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ढाई आखर सभी पढ़ रहे प्रेम अमी की एक बूँद हीजीवन को रसमय कर देती, दृष्टि एक
आत्मीयता की अंतस को सुख से भर देती ! प्रेम जीतता आया तबसे जगती नजर नहीं आती
थी, ...
7 घंटे पहले
घोटुजी आपकी कविता बिलकुल सामयिक है और अच्छा व्यंग है. कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग में पधारे ;ह्त्त्प://कपक-विचार.ब्लागस्पाट.इन
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