विसंगति
एक बच्ची के कन्धों पर,
स्कूल के कंधे का बोझ है
एक बच्ची घर के लिए,
पानी भर कर लाती रोज है
एक को ब्रेड,बटर,जाम,
खाने में भी है नखरे
एक को मुश्किल से मिलते है,
बासी रोटी के टुकड़े
एक को गरम कोट पहन कर
भी सर्दी लगती है
एक अपनी फटी हुई फ्राक में
भी ठिठुरती है
एक के बाल सजे,संवरे,
चमकीले चिकने है
एक के केश सूखे,बिखरे,
घोंसले से बने है
एक के चेहरे पर गरूर है,
एक में भोलापन है
इसका भी बचपन है,
उसका भी बचपन है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पंछी इक दिन उड़ जाएगा
-
पंछी इक दिन उड़ जाएगा जरा, रोग की छाया डसती मृत्यु, मुक्ति की आस
बँधाये, पंच इंद्रियाँ शिथिल हुई जब जीवन में रस, स्वाद न आये !कुछ करने की
चाह न जागे फिर ...
1 घंटे पहले
बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंविसुअल बेसिक पाठ नंबर - 8 अब हिंदी में
उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंthanks for liking my poem
जवाब देंहटाएं