यादें
रात की नीरवता में,
जब तन और मन दोनों शिथिल होतें है,
और चक्षु बंद होते है,
मष्तिष्क के किसी कोने से,
सहसा एक फाइल खुलती है
जो कभी थपकी देकर,नन्ही परी सी,
मन को सहला देती है,
या कभी कठोरता से,
मन को दहला देती है
कभी सूखते घावों की,
जमती हुई पपड़ी को,
अपने तीखे नाखुनो से खुरच,
घाव को फिर से हरा कर देती है
तो कभी रिसते घावों पर,
मलहम लगा कर राहत देती है
कभी हंसाती है,
कभी रुलाती है
कभी तडफाती है,
कभी झुलसाती है,
मीठी भी होती है
खट्टी भी होती है
कडवी भी होती है
चटपटी भी होती है
कभी पूनम की चांदनी सी
कभी मावस की कालिमा सी
कभी सुनहरी,कभी रुपहरी
कभी गुलाब की खुशबू भरी,
बड़ी ही द्रुत गति से,
जीवन के कई काल खण्डों को,
कूदती फांदती हुई,
स्मृति पटल पर ,छा जाती है,
यादें
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
1440
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*1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा*
*अँधेरे में टटोलती हूँ*
*बाट जोहती आँखें*
*मुट्ठी में दबाए*
*शगुन के रुपये*
*सिर पर धरे हाथों का*
*कोमल अहसास*
*सुबह ...
3 घंटे पहले
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