गुस्सा या शृंगार
(घोटू के छक्के )
पत्नी अपनी थी तनी,उसे मनाने यार
हमने उनसे कह दिया,गलती से एक बार
गलती से एक बार,लगे है हमको प्यारा
गुस्से में दूना निखरे है रूप तुम्हारा
कह तो दिया,मगर अब घोटू कवी रोवे है
बात बात पर वो जालिम गुस्सा होवे है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सदा रहे उपलब्ध वही मन
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सदा रहे उपलब्ध वही मन यादों का इक बोझ उठाये मन धीरे-धीरे बढ़ता है, भय आने
वाले कल का भर ऊँचे वृक्षों पर चढ़ता है !वृक्ष विचारों के ही गढ़ताभीति भी
केवल एक ...
3 घंटे पहले
शानदार तरीका है मनाने का | बधाई स्वीकारें |
जवाब देंहटाएंगुस्सा क्यूँ दिलाया ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया नोक-झोंक ....