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शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

अनंत की खोज


अनंत की खोज में भटकता ही रहा,
पंछी अकेला बस तरसता ही रहा,
दर-ब-दर, यहाँ वहाँ,
और न जाने कहाँ-कहाँ,
जो ढूंढा वो मिला ही नहीं,
जो मिला उसकी तो चाह ही नहीं थी |
अनंत तो अनंत है,
मिल जाये तो फिर अनंत कहाँ ?

9 टिप्‍पणियां:

  1. उद्वेलित मन कि सुंदर अभिव्यक्ती ...
    शुभकामनायें ...

    जवाब देंहटाएं
  2. ऐसा ही है ये मायावी संसार !
    सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं

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