एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

भगवती शांता परम

भगवती शांता परम (मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी) सर्ग-१  प्रस्तावना

भगवती शांता परम (मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सहोदरी)-सर्ग-२  शिशु-शांता 

 सर्ग-3 

भाग-2 

कौला और दालिम की कथा  

एवं 

कन्या का नामकरण 

कौशल्या दशरथ कहें, रुको और महराज |
चंपा रानी रोम्पद,  ज्यों चलते रथ साज ||

राज काज का हो रहा, मित्र बड़ा नुक्सान |
चलने की आज्ञा मिले, हमको काल्ह विहान ||

सुबह सुबह दो पालकी, दशरथ की तैयार |
अंगराज  रथ पर हुए, मय परिवार सवार ||

दशरथ विनती कर कहें, देते एक सुझाव |
सरयू  में  तैयार है,  बड़ी राजसी  नाव ||

धारा के संग जाइए, चंगा रहे शरीर |
चार दिनों की यात्रा, काहे होत अधीर ||

चंपानगरी  दूर  है, पूरे  दो सौ  कोस |
उत्तम यह प्रस्ताव है, दिखे नहीं कुछ दोष ||


पहुंचे उत्तम घाट पर, थी विशाल इक नाव |
नाविक-गण सब विधि कुशल, जाने नदी बहाव ||


बैठे सब जन चैन से, नाव बढ़ी अति मंद |
घोड़े-रथ तट पर चले, लेकर सैनिक चंद ||

धीरे धीरे गति बढ़ी, सीमा होती पार |
गंगा में सरयू मिली, संगम का आभार ||
 
चार घरी रूककर वहां, पूजें गंगा माय  |
सरयू को परनाम कर, देते नाव बढ़ाय ||

हर्ष और उल्लास का, देखा फिर अतिरेक |
नगर रास्ते में मिला, अंगदेश का एक || 

धरती पर उतरे सभी, आसन लिया जमाय |
नई कुमारी का करें, स्वागत जनगण आय |

लगे कुमारी  खुब प्रसन्न, कौला रखती ख्याल |
धरती पर धरती कदम, रानी रही संभाल ||

वैद्यराज की औषधी, वह गुणकारी लेप |
रस्ते भर मलती चली, तीन बार खुब घेप ||

आठ माह की बालिका, मंद-मंद मुसकाय |
कंद-मूल फल प्रेम से, अंगदेश के खाय |


रानी के संग खेलती, बाला भूल कलेश ||
राज काज के काम कुछ, निबटा रहे नरेश |

एक अनोखा वाद था,  नगर प्रमुख के पास |
बात सौतिया डाह की, सौजा करती नाश ||

सौतेला  इक  पुत्र  है, सौजा  के  दो  आप |
इक खाया कल बाघ ने, करती घोर विलाप  ||

रो रो कर वह बक रही, सौतेले का दोष |
यद्दपि वह घायल पड़ा, बेहद है अफ़सोस ||

जान लड़ा कर खुब लड़ा, हुआ किन्तु बेहोश |
बचा लिया इक पुत्र को, फिर भी न संतोष ||

बड़ी दिलेरी से लड़ा, देखा चौकीदार |
बड़े पुत्र को ले भगा, फिर भी वह खूंखार ||

सौजा को विश्वास है, देने को संताप |
सौतेले ने है किया, घृणित दुर्धुश पाप ||

घर न रखना चाहती, वह अब अपने साथ |
ईश्वर की  खातिर अभी, न्याय कीजिए नाथ ||

दालिम को लाया गया, हट्टा-कट्टा वीर |
चेहरे पर थी पीलिमा, घायल बहुत शरीर ||

सौजा से भूपति कहें, दालिम का अपराध |
नगर निकला सामने, किन्तु रहे हितसाध ||

दालिम से मुड़कर कहें, जा जहाज में बैठ |
छू ले माता के चरण, बेमतलब मत ऐंठ ||

राजा पक्के पारखी,  है हीरा यह वीर |
पुत्री का रक्षक लगे, कौला की तकदीर ||


सेनापति से यूँ कहें, रुको यहाँ कुछ रोज |
नरभक्षी से त्रस्त जन, करिए उसकी खोज ||

जीव-जंतु जंगल नदी, सागर खेत पहाड़ |
बंदनीय हैं ये सकल, इनको नहीं उजाड़ ||

रक्षा इनकी जो करे, उसकी रक्षा होय |
शोषण गर मानव करे, जाए जल्द बिलोय ||

केवल क्रीडा के लिए, मत करिए आखेट |
भरता शाकाहार भी, मांसाहारी पेट ||

जीव जंतु वे धन्य जो, परहित धरे शरीर |
हैं निकृष्ट वे जानवर, खाएं उनको चीर ||

नरभक्षी के लग चुका, मुँह में मानव खून |
जल्दी उसको मारिये, जनगण पाय सुकून ||

अगली संध्या में करें, रजधानी परवेश |
अंग-अंग प्रमुदित हुआ, झूमा पूरा देश ||

गुरुजन का आशीष ले, मंत्री संग विचार |
नामकरण की शुभ तिथी, तय अगले बुधवार || 

नामकरण के दिन सजा, पूरा नगर विशेष |
ब्रह्मा-विष्णु देखते, देखें उमा महेश ||

महा-पुरोहित कर रहे, थापित महा-गणेश |
राजकुमारी आ गई, आये अतिथि विशेष ||

रानी माँ की गोद में, चंचल रही विराज |
टुकुर टुकुर देखे सकल, इत-उत होते काज ||

कौला दालिम साथ में, राजकुमारी पास |
हम दोनों कुछ ख़ास हैं, करते वे एहसास ||

महापुरोहित बोलते, हो जाओ सब शांत |
शान्ता सुन्दर नाम है, फैले सारे प्रांत ||

शान्ता -शान्ता कह उठा, वहाँ जमा समुदाय |
मात-पिता प्रमुदित हुए, कन्या खूब सुहाय ||

कार्यक्रम सम्पन्न हो, विदा हुए सब लोग |
पूँछे कौला को बुला, राजा पाय सुयोग ||

शान्ता की तुम धाय हो, हमें तुम्हारा ख्याल |
दालिम लगता है भला, रखे तुम्हे खुशहाल ||

तुमको गर अच्छा लगे, दिल में तेरे चाह |
सात दिनों में ही करूँ, तेरा उससे व्याह ||

कौला शरमाई तनिक, गई वहाँ से भाग |
दालिम की किस्मत जगी, बढ़ा राग-अनुराग ||

दोनों की शादी हुई, चले एक ही राह |
शान्ता के प्रिय बन रहे, राजा केर पनाह ||

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह बहुत खूब ... दिनेश जी ... आपका सतत प्रवाह जाती है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बहुत खूब ... दिनेश जी ... आपका सतत प्रवाह जाती है ...

    जवाब देंहटाएं
  4. Recommendable article. I learn something more challenging on different blogs everyday. Useful stimulating to see content from other writers and study a little something there.

    From Indian Transport

    जवाब देंहटाएं

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-