आंचती हुई काजल को
वो कैसे मुस्कुरा रही है |,
लुफ्त उठा जीवन का
मोहब्बत की झनकार में
अपनी धुन में मस्त उसकी
पायलियाँ गीत गा रही हैं |
केशो को सवारकर
चुनरी ओढ़ वो घूँघट में
लज्जा से सरमा रही है |
साज सज्जा से हो तैयार
खुद को निहार आइने में
नजरे झुका और उठा रही है |
इंतज़ार में मेरे वो सजके
भग्न झरोखे में छिपकर
मेरा रास्ता ताक रही है |
- दीप्ति शर्मा
सुन्दर प्रस्तुति की बहुत बहुत बधाई ||
जवाब देंहटाएंsukriya amrendra ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर्।
जवाब देंहटाएंइंतज़ार म मेरे वो सजके भन झरोखे म िछपकर मेरा राता ताक रह है |
जवाब देंहटाएंbhut sundar bhaw hai.
Sachmuch yeh kalpana hi roomaani hai ki intjaar ka phal kaisa hoga.
Thanks once again.
इंतज़ार म मेरे वो सजके भन झरोखे म िछपकर मेरा राता ताक रह है |
जवाब देंहटाएंbhut sundar bhaw hai.
Sachmuch yeh kalpana hi roomaani hai ki intjaar ka phal kaisa hoga.
Thanks once again.
आंचती हुई काजल को
जवाब देंहटाएंवो कैसे मुस्कुरा रही है
मोहब्बत की झंकार कुछ होती ही ऐसी है .....:))
बहुत सुंदर रचना लिखने की बधाई...
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट में स्वागत है
bahut hi bhawnaon se bhari bemisaal rachanaa .bahut badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंमुझे ये बताते हुए बड़ी ख़ुशी हो रही है , की आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स मीट वीकली (१६)के मंच पर प्रस्तुत की गई है /आप हिंदी की सेवा इसी तरह करते रहें यही कामना है /आपका
ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर स्वागत है /आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए / जरुर पधारें /
सुन्दर भावपूर्ण कृति !
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
har kuwari sanjh ka vivah hoga der hai bus nischhal pyar milne ki
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